दीपमाला का संस्‍मरण

दीपमाला का संस्‍मरण

संस्मरण
हंसती, खिलखिलाती, अल्हड़पन, जोश इन सभी में जीते बचपन और युवा के बीच का काल l बस वर्तमान में जीने की चाह न भविष्य की चिंता न अतीत का गम l जीना है बस अपने ही मगन में l
बात उन दिनों की है जब हम ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ते थे l सभी विषयों की अलग-अलग कक्षा लगती थी l पर कभी कभी ग्यारहवीं/बारहवीं विज्ञान संकाय को एक साथ व कला संकाय को एक साथ बैठाया जाता था l एक कक्षा में मित्रा सर् जी जो वरिष्ठ शिक्षक थे वो अंग्रेजी लेते थे और दूसरे में चौधरी सर् जी जो युवा वर्ग से थे l मित्रा सर् जी छः महीने में सेवानिवृत्त होने वाले थे तो वो हमेशा कैरियर को लेकर समझाते, कुछ पुराने अनुभव बताते, कुछ सीख देते तो हमें ये सब झेलाऊ लगता था और चौधरी सर् जी हंसी मजाक करते हुए पढ़ाते थे तो हमें अच्छा लगता था l
एक दिन फिर ऐसे ही कक्षा लगी l हमारे कक्षा में चौधरी सर् आने वाले थे पर आ गये मित्रा सर् जी l हम सभी विज्ञान की लड़कियां चुपके से निकल कर बगल में चौधरी सर् के कक्षा में चले गये l वहां पर कुछ लड़कियों को बर्दाश्त नहीं हुआ तुरंत शिकायत l फिर क्या वहाँ से भगा दिये गये l अब क्या, पहले कक्षा में जाते तो डांट पड़ती और अगर प्रिंसिपल मैडम को पता चलता तो खैर नहीं l अब थोड़ा मैंने दिमाग का बत्ती जलाया और सबको ले गई वॉशरूम में l
वहां पर पांच कक्ष था l तीन हमारे लिए, एक शिक्षिकाओं के लिए और एक कक्ष का दरवाजा थोड़ा जाम था तो उसे कोई उपयोग नहीं करता था l बस क्या मैंने दरवाजा जैसे भी खोला और सबको वहाँ घुसा दिया और दरवाजा को इतना बंद कर दिया कि थोड़ा हवा जा सके l स्वयं मुख्य दरवाजा में खड़े हो गईl सबको समझा दिया अगर कोई शिक्षिका आयेंगे तो मैं सूचित कर दुंगी सब शांत रहना, किसी को खांसी भी आये तो मुंह बंद कर लेना lक्योंकि कक्षाएं लगी हुई थी तो कम ही संभव था किसी के आने की पर फिर भी हम तैयार थे l
पूरे चालीस मिनट मैं तो दरवाजे पर ही थी पर उन लोगों का हालत खराब था डर में और कम जगह में हवा की कमी के कारण l डर प्रिंसिपल का क्योंकि वो बहुत अनुशासन वाली थी कोई माफी नहीं, सबको तगड़ा सजा मिलता जरूर l जैसे-तैसे चालीस मिनट बीत गये और सबको मैंने बाहर निकाला l थोड़ी देर चैन की सांस लेने के बाद सब खिलखिलाकर ऐसे हंसे जैसे कोई जंग जीत लिया हो l सब बहुत खुश थे क्योंकि किसी को कुछ पता नहीं चला l
आज हम सभी सहेलियां बहुत दूर दूर है l सबकी अपनी अपनी जिंदगी है l कईयों से तो आज तक दोबारा मुलाकात नहीं हुआ l कुछ लोग मोबाइल के माध्यम से अभी भी जुड़े हुए हैं l
कभी अकेले बैठे रहने से आज भी उस घटना को याद करके एक प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर आ जाती है l कितना प्यारा होता है वो उम्र जहां कोई कपट नहीं, कोई छल नहीं बस जीते हैं अपने ही मगन में, एक दूसरे की मदद करते हुए l आज भी मैं सबको बहुत याद करती हूं और खास इस घटना को वो चालीस मिनट दहशत व रोमांच के l
दीपमाला
कोंडागांव, cg

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