दीपमाला की कहानी वादा

आज पूरे गांव में रौनक का माहौल है l ऐसे लग रहा था मानो दीवाली ही मना रहे हैं l छोटा सा गांव जहां लोग एक दूसरे को नाम व चेहरे से जानते थे l एक दूसरे को रिश्ते से पहचानते थे l पूरे गांव में हर्ष का माहौल था l घरों के सामने रंगोली बना हुआ था l बाजे वाले भी एकदम तैयार थे ढोल पीटने के लिए l आरती की थाली सजी हुई, जश्न मना रहे थे सभी l सबकी तैयारी हो चुकी थी और बच्चे, बुजुर्ग और कुछ युवा बस स्टैंड के तरफ रवाना हुये बाजे गाजे के साथ ,उसको लेने जिसके लिये पूरी तैयारी हो रही थी l
बस स्टैंड में बस रुकी और वहां से उतरा एक सुंदर नौजवान, हिष्ट-पुष्ट, गोरा-चिकटा गांव का प्यारा सा बेटा l आर्मी प्रशिक्षण के बाद पहली बार गांव लौटा था, मोहन l सबने पूरी आत्मीयता के साथ उसका स्वागत किया l गांव का पहला बेटा था जिसे फ़ौज में जाने का मौका मिला l बाजे गाजे व फटाकों के साथ उसका घर तक आगमन हुआ l
हम सब घर पर ही थे उसका स्वागत करने l जैसे ही घर के दहलीज पर पैर रखा उसने, उसके माता-पिता लिपट कर रोने लगे उससे l बहुत ही संतोष व खुशी के आंसू थे l मां ने बेटे को बहुत लाड़ किया l उसकी नजरें उतारी l पास ही खड़ी थी मैं, मैंने भी स्वागत किया l और मोहन से कहा तूने अपना वादा पूरा किया
तेरे जैसा बेटा भगवान सबको दे l
जब मैं ससुराल आई मोहन एक साल का था तब l बहुत ही प्यारा था, गोलू मोलू l जब भी काम से मुझे फुर्सत मिलती उसे घर ले आती, उसके साथ खेलती, उसको खिलाती, बहुत स्नेह था बच्चे के लिए l हम पड़ोसी थे तो आना जाना लगा रहता था l एक दिन उसके घर में पूजा था l सभी सदस्य आ चुके थे सिवा उसके पिताजी के l सभी अपने में मगन थे किसी को उसकी याद ही नहीं थी l पर मोहन की मां अपने पति का इंतजार कर रही थी l पर कहाँ, पूजा समाप्त होने के बाद वो घर आये और किसी को मतलब भी नहीं l उसकी मां मेरे पास बहुत रोई कि मेरे पति असाक्षर है तो उनका काम सिर्फ तबेले में है l और कोई अस्तित्व नहीं है उनका l घर में भैसें, गाय, बैल बहुत थे, मोहन के पिता का काम बस इन्ही का देखभाल करना था l उनको नहलाना, चराना, खिलाना, तबेला धोना l और समय मिले तो खेती का काम करना l सबने नया कपड़ा पहना था पर भाई साहब वही पुराना कपड़ा l क्योंकि साल भर में मुश्किल से दो जोड़ा कपड़ा ही घर वाले लेते थे उनके लिये l पर उनको कोई फर्क नहीं पड़ता था, बड़े बेटे की जिम्मेदारी समझकर, पशुवत जीवन जी रहे थे l पर मोहन की मां पढ़ी लिखी थी तो उसको ये सब अच्छा नहीं लगता था l मां को रोते देखकर मोहन को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, मोहन तब दसवीं कक्षा में था l पिताजी भी वहीं पर आ गये जहां हम बैठे थे l पत्नी ने पति के ऊपर पूरा भड़ास निकाला कि उनके कारण उनको भी सम्मान नहीं मिलता है क्योंकि पत्नी को ससुराल में कितना सम्मान मिलना है, ये पति की आमदनी से तय होती है l
मोहन को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और मेरे सामने उसने अपने माता पिता से”वादा” किया कि वो बहुत मेहनत करेगा, पढ़ेगा, कुछ बनकर दिखायेगा और अपने माता पिता को सम्मान दिलवायेगा l बस क्या, मोहन को फौजी बहुत पसंद थे तो उसको अपने जीवन का लक्ष्य भी मिल गया l उसी दिन से वो पढ़ाई के साथ साथ शारिरिक मेहनत भी करने लगा l और तीन साल के कड़ी मेहनत के बाद, मेहनत रंग लाया l फ़ौज में उसका चयन हुआ और वो प्रशिक्षण के लिए चला गया l
आज वापिस आया है सभी उसके माता पिता को बधाई दे रहे हैं l गर्व से उसके पिता का सीना फूला जा रहा है l एक वादा मोहन के माता पिता ने भी किया था अपने आप से ,वे रोजी मजदूरी करेंगे लेकिन अपने बच्चे को जी जान से पढ़ायेंगे l और आज उनकी भी कड़ी मेहनत व तपस्या का फल मिला l
आज बेटे व माता पिता दोनों ने अपने अपने वादे निभाये l लक्ष्य पर नजर व कड़ी मेहनत के साथ जुनून भी मिल जाये तो सभी वादे पूरे किये जा सकते हैं l जो कल उसके पिताजी को चरवाहा कहकर अव्हेलना करते थे वे सभी आज बधाई दे रहे हैं और उनकी खुशी में शामिल हो रहे हैं l

दीपमाला वैष्णव
कोंडागांव(cg)
9753024524

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