साहित्य क्षितिज पर भोपाल के रचनाकार अभियंता निरंतर नवाचार करते दिखते हैं । काव्य के रंग से हर घर तिरंगा अभियान मनाने अभियंता कवियों ने साहित्य यांत्रिकी की गोष्ठी आयोजित की ।
गायक , कवि अशेष श्रीवास्तव ने गोष्ठी का प्रारंभ करते हुए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर अपने अपने घरों, कार्यस्थलों, मोहल्लों, धार्मिक स्थलों को दीप मालाओं बिजली की सीरीज़ ,मोमबत्तियों से सजा कर देश के प्रति अपना प्रेम व सम्मान जताने की अपील की । उन्होंने कहा कि…
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अच्छी पर किसमें ?
नफ़रत फैलाने में या प्यार फैलाने मे ?
घृणा की आग जलाने में या प्रेम से आग बुझाने में ?
लोगों को बाँटने में या लोगों को जोड़ने में ?
गोष्ठी को आगे बढ़ाया सशक्त कवि श्री अजेय श्रीवास्तव ने , उन्होंने विभिन्न संदर्भ में तिरंगे के महत्व को लंबी कविता में प्रस्तुत किया।
गांधी के शांति पाथ की खोज है तिरंगा
क्रांतिकारी चन्द्र, भगत का जयघोष है तिरंगा
शास्त्री के जय जवान, जय किसान को ले आगे बढ़े
नेता जी के दिल से निकाला ओज है तिरंगा
रवींद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय वैशाली के कुलाधिपति श्री व्ही के वर्मा ने अपनी रचना पढ़ी …
नया भारत नया भारत सपनों की उड़ान है
जोश है जुनून है
एक नई पहचान है
वरिष्ठ रचनाकार अभियंता श्री प्रियदर्शी खैरा जी ने
घर शहीदों के हैं मंदिरों की तरह
देहरी पे नज़र बस झुकी रह गई।
तथा पावस पर गजलें पढ़कर मन मोह लिया।
भारतीय रेल में कार्यरत इंजी राकेश प्रहर ने व्यंग्य के प्रहार किए । उनकी देश प्रेम की रचना ने तालियां बटोरी…
देश के अभिमान का, वीरों के सम्मान का,
प्यारा ये तिरंगा वीर, गाथाओं का गान है।
राष्ट्र के निशान पे, आन बान शान पे ,
तिरंगे के लिए मेरी, ये जान कुर्बान है।।
गोष्ठी का संचालन कर रहे व्यंग्य , नाटक , काव्य , समीक्षा के बहुविध वरिष्ठ रचनाकार अभियंता विवेक रंजन श्रीवास्तव ने काव्य पाठ करते हुए कहा …
राजनीति रंगों की करते भावनाओं से खेल रहे जो जनता ने उनको ललकारा कोई कतर कर इसकी पट्टीयां
बना रहा संकीर्ण झनडियां सजा उन्हें देगा जन सारा झंडा ऊंचा रहे हमारा
श्री मुकेश मिश्रा ने अपनी बात रखी और नए जमाने पर कटाक्ष किया…
ओटीपी लेकर मुझे टोपी पहना गया,
चोरी के तरीके कितने आसान हो गये।
गोष्ठी के समापन में श्री प्रमोद तिवारी ने विगत को याद किया …
बूढ़ी दादी नानी के आंचल में वो ठंडी छांव बहुत ,
गोबर से लिपा पुता वो घर देहरी पर दीपक होता था ।
आँगन में हाथ बुनी रस्सी की खटिया भी एक होती थी ।
होता डुलार भी एक वहां और आले चिमनी होती थी
आंखों में पानी होता था और बोली शीरी होती थी ।
सभी ने अभियंताओ के साहित्यिक अवदान को रेखांकित किया । अभियंता रचनाकारों के व्यंग्य , कविता , नाटक संग्रह के प्रकाशन के सिवाय अन्य योजनाओं पर चर्चा हुई। आभार , धन्यवाद ज्ञापन के साथ होटल कान्हा कैसल एमपी नगर में आयोजित यह गोष्ठी संपन्न हुई।