मुंबई के मीरा रोड स्टेशन से ‘निशा गार्डन’ अपार्टमेंट की दूरी मात्र एक किलोमीटर है। पैदल चलते हुए इस दूरी को मात्र पंद्रह-बीस मिनट में तय किया जा सकता है। परन्तु, दीपक को आज यही दूरी मीलों लम्बी लग रही थी।
धीमे-धीमे कदमों को बढ़ाता वह आगे बढ़ रहा था। हर कदम में एक थकावट थी। आस-पास के शोरगुल और ट्रैफिक की आवाज़ उससे दूर भागती जान पड़ रही थी । एक अजीब-सा सन्नाटा उसे अपनी आगोश में समेट रहा था। यह सन्नाटा इतना गहराता गया कि अपने जूतों के नीचे से निकलते हर कदम की आवाज़ उसे सुनाई देने लगी। बीते लम्हें तस्वीरों की तरह स्ट्रीट लैम्प पोस्ट पर लटके नजर आने लगे।
आज से सात महीने ग्यारह दिन पहले अपनी पत्नी अर्पिता को पानी पिलाकर जब वह करवा-चौथ व्रत की पूर्णाहुति कर रहा था, तब उसकी आंखों में आंखें डालकर उसने एक वादा किया था कि अगले वेडिंग एनिवर्सरी पर वह उसे सोने का एक हार गिफ्ट में देगा। उस दिन से वह लगातार बचत करने लगा।दीपक एक कौशलपूर्ण, ईमानदार एवं चतुर सेल्समैन था।
वेस्ट बांद्रा में नूतन नगर के समीप एक शोरूम थी “साड़ी महल”, जिसमें वह विगत तीन वर्षों से काम कर रहा था। पगार थी पैंतीस हजार रुपए प्रति माह। पंद्रह हजार रुपये फ्लैट के किराए में चले जाते थे और शेष राशि किसी तरह से परिवार का गुजारा चला पाती थी।
शारदीय नवरात्रि के अवसर पर जब उसने अपने विशेष कौशल का प्रदर्शन करते हुए उन्तीस साड़ियां एक साथ बेच दी, तो शोरूम के मालिक सेठ केदारनाथ जी ने उसे प्रत्येक साड़ी की बिक्री पर दस प्रतिशत कमीशन देने की घोषणा कर दी। बस, यही वजह था कि वह अपनी पत्नी अर्पिता से सोने का एक हार उपहार में देने का दुस्साहसिक वादा कर बैठा।
अपने आकर्षक व्यक्तित्व और विनम्र स्वभाव के दम पर वह सफलता की सीढ़ियों पर लगातार चढ़ता गया। अर्थ-संग्रह का बढ़ता ग्राफ उसके चेहरे पर चमक के रूप में साफ देखी जा सकती थी। मन में उत्साह हिलोरें भरता गया।
सुमीत, उसके सहकर्मी सेल्समैन ने जब उससे पूछा, “क्या बात है दीपक, तुम रविवार को भी लिंकिंग रोड पर साड़ियां बेचने लगे हो? कुछ तो अपने हेल्थ के बारे में सोचो।”
“जब तक है जां, जान-ए-जहां, मैं बेचूंगा।” दीपक पैरोडिक लहज़े में मुस्कुराते हुए गुनगुनाया।
सुमीत के बार-बार पूछने पर उसने सारी बात कह सुनाई। उस दिन से बांद्रा के लिंकिंग रोड पर रविवार के दिन दो सेल्समैन रंग-बिरंगी साड़ियां बेचते नजर आने लगे। दीपक ने लाख कोशिश की परन्तु, सुमीत ने कमीशन के रुपए लेने से इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप, धन-लक्ष्मी तीव्र गति से दीपक की जेब में संग्रहीत होने लगी।
एक दिन कॉस्ट एनालिसिस के उद्देश्य से वह ‘कल्याण ज्वैलर्स’ के शोरूम में पहुंच गया।
“निन्यानबे हजार, नौ सौ चौंतीस रुपए ।” सेल्सगर्ल ने आकर्षक मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
शोरूम से निकलते समय दीपक मन ही मन बोला, “बस, एक रविवार और!”
शुक्रवार के दिन जब वह पंजाब नेशनल बैंक से अपने पासबुक को अपडेट कराकर बाहर निकला, तो उसके अकाउंट में पंचानबे हजार सात सौ तेरह रुपए थे। अब वह गोल्ड-नेकलेस उसकी मुट्ठी में आती नज़र आ रही थी।
शनिवार के दिन साड़ियों की एक नई खेप आई। सेठ केदारनाथ जी नगर से बाहर गए हुए थे। दीपक एक महिला ग्राहक को ‘फ्यूजन साड़ी’ की विशेषता बताने में व्यस्त था।
“सुमीत सम्भाल कर इन साड़ियों को गाड़ी से उतारकर स्टोररूम में पहुंचा दो।” उसने आवाज लगाई।
लगभग पंद्रह मिनट ही बीते होंगे कि एक शोर सुनाई दिया। उत्सुकतावश दीपक बाहर आ गया, जहां एक भीड़ इकट्ठा हो गई थी। किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल धक्क कर गया। एक पल में भीड़ को चीरता जब वह घटना-स्थल पर पहुंचा, तो देखा कि सुमीत लहूलुहान, बेहोश पड़ा था। “सुमीत!” उसके मुख से एक हृदयविदारक चीख निकल गई।
“अरे, कोई एम्बुलेंस बुलओ।” उसने सुमीत को अपने गोद में उठाते हुए गिड़गिड़ाती आवाज में कहा। वहां इकट्ठे लोगों ने मानवता का श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए शोरूम को बंद करने में एवं एम्बुलेंस को बुलाने में उसकी सहायता की।
दीपक अगले आधे घंटे तक ‘कूपर हॉस्पिटल’ की गैलरी में बेचैनी से टहलता रहा।
“मरीज की हालत नाज़ुक है, सर्जरी करनी पड़ेगी । आप काउंटर पर जाकर अस्सी हजार रुपए जमा कर दीजिए।” डॉक्टर ने गम्भीरता से कहा। बिना कोई पल गंवाए दीपक काउंटर पर जाकर क्यू आर स्कैन किया और मनी ट्रांसफर कर दिया। अभी रशीद लेकर वह मुड़ा ही था कि सुमीत की पत्नी प्रभा अपने बेटे को गोद में समेटे रोती-बिलखती बेतहाशा दौड़ती हुई आ गई। दीपक की जिम्मेदारी अब दोगुनी हो चुकी थी।
लगभग तीन घंटे बाद जब डॉक्टर ने आकर बताया कि सुमीत खतरे से बाहर था, तब जाकर उसके जान में जान आई।रात में मरीज़ के साथ कोई एक व्यक्ति ही ठहर सकता था, इसलिए उसे घर लौटना पड़ा।उस रात, उसने अर्पिता को कुछ भी नहीं बताया और सुबह तड़के ही वह घर से निकल गया। पूरे दिन हॉस्पिटल में सुमीत के साथ रहा। रात में प्रभा को ज़रुरी इंस्ट्रक्शन्स देकर वह घर लौट आया। तीन दिन बाद सुमीत को डिस्चार्ज कर दिया गया।अगले दो दिनों तक वह शोरुम में बेजान पुतले की तरह बैठा रहा। सेठ केदारनाथ जी अभी तक लौटे नहीं थे। वह खुश था कि उसके मित्र की जान बच गई थी, परन्तु यह बात उसे घाव की तरह टीस दे रही थी कि वह अपनी पत्नी से किया हुआ वादा नहीं निभा पाएगा।आखिरकार वह दिन आ ही गया, जिसकी प्रतीक्षा उसकी पत्नी बेसब्री से करती आ रही थी। दीपक को पता था कि पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी अर्पिता ने पूरी तैयारी कर रखी होगी। रात के दस बज रहे होंगे जब सुस्त कदमों से चलता वह अपने अपने अपार्टमेंट “निशा गार्डन” तक आ पहुंचा। कॉल-बेल बजाते समय उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। वह आज अपनी पत्नी से क्या कहेगा ? उसके खाली हाथ आने पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? क्या अर्पिता उसे माफ़ कर पाएगी?
दरवाजा खुला तो वह अपनी पत्नी को देखता रह गया।सुन्दर साड़ी में सुसज्जित वह सादगी और सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण नज़र आ रही थी।”अर्पिता, आज तुम मुझे माफ़ कर दो। मैं तुमसे किया अपना वादा नहीं निभा सका,” दीपक ने धीमी आवाज में कहा।
अर्पिता शांत निगाहों से उसे देखे जा रही थी, मानो वह कुछ समझ नहीं पा रही हो।
“मैं अपना वादा निभा नहीं सका। आज मैं तुम्हें कोई उपहार नहीं दे पाऊंगा।”
“तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?” अर्पिता ने कहा और साथ ही उसका हाथ थामे ड्राइंग रुम तक आई।
दीपक एक पल के लिए ठिठक गया। सामने सोफे पर सेठ केदारनाथ जी और सुमीत दोनों बैठे हुए दिखाई दिए। साथ में, सुमीत की पत्नी प्रभा अपने बेटे को गोद में लिए बैठी थी।
“कॉन्ग्रैचुलेशन्स” , इस आवाज के साथ ड्राइंग रूम की दीवारें हिल-सी गई।
एक पल के लिए तो दीपक को लगा जैसे वह कोई सपना देख रहा हो। उसकी तन्द्रा तो तब टूटी जब सेठ केदारनाथ जी ने एक पैकेट दीपक के हाथों में थमाते हुए कहा, “तुम्हें क्या लगा, हम तुम्हें त्याग की मूर्ति बनकर उदास और अकेला रहने देंगे? देखो, इसमें वही गोल्ड-नेकलेस है ना, जिसे तुमने पसंद किया था?”
वह अब भी किंकर्तव्यविमूढ़ जड़वत खड़ा था।
उसे झिंझोड़ते हुए अर्पिता ने कहा, “मुझे सब पता चल गया है दीपक कि तुमने कितना परिश्रम किया है और फिर ऐसा त्याग, जिसपर मैं सैकड़ों नेकलेस न्यौछावर कर दूं।” उसकी पलकें भींगी हुई थी और आवाज रुंध-सी गई थी।
दिनेश कुमार राय
चंद्रशेखर नगर, गोला रोड, पटना
97712 94806
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