इंडियन कार्टून गैलरी (बेंगलुरु) गर्व के साथ पेश कर रही है “आर.के. लक्ष्मण की नजर से” — एक विशेष प्रदर्शनी जिसमें मशहूर कार्टूनिस्ट रसिपुरम कृष्णास्वामी लक्ष्मण, जिन्हें स्नेहपूर्वक आर.के. लक्ष्मण कहा जाता है, के चुने हुए कैरिकेचर शामिल हैं। अगर वे आज जीवित होते, तो उनकी उम्र 104 साल होती। यह प्रदर्शनी उनकी तीक्ष्ण बुद्धि और अद्भुत कलात्मक दृष्टि की झलक देती है, जो आज भी जीवंत है। दशकों तक उन्होंने भारतीय समाज को हास्य और गरिमा के साथ दर्शाया।
आर.के. लक्ष्मण को भारत के लोगों, उनके व्यवहार और संस्कृति को समझने और उसे हल्के-फुल्के अंदाज़ में प्रस्तुत करने में विशेष महारत हासिल थी। वे केवल एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार ही नहीं, बल्कि एक कुशल कैरिकेचर कलाकार भी थे। इस प्रदर्शनी में उनके लंबे करियर के विभिन्न चरणों से 78 कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं, जो उनकी कला की गहराई और प्रतिभा को दर्शाती हैं। नेता, अभिनेता, लेखक, विचारक या कलाकार—हर चित्र एक कहानी कहता है—एक व्यक्ति की, एक युग की, और उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत की।
यह प्रदर्शनी सिर्फ एक कला प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह आज़ाद भारत के इतिहास की एक दृश्य यात्रा है, जिसे लक्ष्मण की अनोखी शैली में—बुद्धिमत्ता, व्यंग्य और सम्मान के साथ—पेश किया गया है। जो लोग राजनीतिक व्यंग्य, कला या इतिहास में रुचि रखते हैं, उनके लिए “आर.के. लक्ष्मण की नजर से” एक भावनात्मक और यादगार अनुभव है।
आर.के. लक्ष्मण भारत के पहले ऐसे कार्टूनिस्ट थे जिनके कार्टून नियमित रूप से एक राष्ट्रीय अखबार के पहले पन्ने पर छपते थे। उनका प्रसिद्ध “कॉमन मैन” चरित्र वर्षों तक टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने की शोभा बना रहा। इस मौन दर्शक के माध्यम से लक्ष्मण ने देश की नब्ज—उसके संघर्ष, बदलाव, उम्मीदें और सपनों—को गहराई से दर्शाया। अपनी आत्मकथा द टनल ऑफ टाइम में उन्होंने ‘कॉमन मैन’ को देश की रोज़मर्रा की घटनाओं का मूक दर्शक बताया है।
लक्ष्मण ने अपने करियर की शुरुआत पार्ट-टाइम कार्टूनिस्ट के रूप में की, और अखबारों व पत्रिकाओं में काम किया। छह दशकों से अधिक लंबे करियर में वे भारत के सबसे सम्मानित और प्रिय कार्टूनिस्ट बन गए। कई भारतीयों के लिए उनके कार्टून सुबह की चाय जितने ज़रूरी हो गए थे।
उनके कार्टून सरल होते हुए भी गहरी बात कहते थे। ‘कॉमन मैन’ के चेहरे के भावों से जीवन की विडंबनाओं, मौन विरोध और स्वीकार्यता को सहजता से दर्शाया जाता था। कभी केवल हँसी के लिए, तो कभी व्यवस्था के खिलाफ लोगों की अंतर्निहित प्रतिक्रिया को उजागर करने के लिए। लक्ष्मण अकसर अपनी बात कहने के लिए जाने-पहचाने प्रतीकों और रूपकों का प्रयोग करते थे, जो समाज और राजनीति की स्थिति से सीधा जुड़ाव बनाते थे। उनका प्रसिद्ध कार्टून “वेल टू द वेल” इसकी एक बेहतरीन मिसाल है, जिसमें साधारण छवि भी गहराई से बात करती है।
भारतीय कार्टूनिस्ट संस्थान के प्रबंध ट्रस्टी वी.जी. नरेंद्र ने इस प्रदर्शनी के बारे में जानकारी दी और उन सभी दर्शकों व प्रशंसकों का आभार व्यक्त किया, जो लक्ष्मण के कालजयी कार्यों को आज पहली बार देख रहे हैं या पहले से सराहते रहे हैं।
यह प्रदर्शनी आर.के. लक्ष्मण की प्रतिभा का सच्चा उत्सव है — उनकी उस क्षमता का, जिससे वे साधारण में भी असाधारण देख लेते थे। उनकी कला की हर रेखा और भाव आज भी प्रेरणा देती है। जब हम उनके कार्यों को दोबारा देखते हैं, तो न केवल भारत का अतीत, बल्कि सार्थक और हास्यपूर्ण अभिव्यक्ति की स्थायी शक्ति को भी फिर से खोजते हैं।
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