जासूसी शब्द के जनक कहे जाने वाले जासूसी उपन्यासकार गोपालराम गहमरी जी की पावन स्मृति में सैनिकों की वीर भूमि गहमर से प्रत्येक वर्ष होने वाले कला साहित्य के महामहोत्सव में लगभग चार वर्षों की लगातार अपनी सहभागिता को देखती हूँ तो दोनों ओर से प्रेम आशीर्वाद एवं वात्सल्य भरे अपनत्व के सिवा कुछ नजर नहीं आता।
इस सफल आयोजन का नेतृत्व भले ही संपादक प्रकाशक श्री अखंड प्रताप सिंह जी करते हों लेकिन उस नेतृत्व की प्राणशक्ति उनकी पत्नी ममता सिंह और पूरा परिवार है।यथा नाम तथा गुण वाली कहावत को चरितार्थ करती ममता जी का आने वाले ( जानकर या अजनबी ) प्रत्येक कलाकार साहित्यकार के प्रति जो अपनत्व का व्यवहार है उसे शब्दों में गढ़ पाना मुश्किल है।यदि उन सभी का आभार व्यक्त करें भी तो भार लगता है।20-12-2024 को पहुँचने से लेकर अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम की रूपरेखा के साथ कुशल संचालन से जो दी गई जिम्मेदारी पूरी की तो वही मन की बात कार्यक्रम में अपनी ओर से कुशल संचालन करने के बावजूद कुछ को शिकायत रही हमसे की किसी को ठीक से बोलने नहीं दिया या कोई बिना बोले ही रह गया।लेकिन मेरा हमेशा से उद्देश्य रहा है कि जो भी कार्य हमें सौपा जाता है उसे हम पूरी निष्ठा से निभाते हैं और वही हमने किया भी।
वैसे तो गहमर आने की मेरी कोई संभावना थी ही नहीं इसका कारण था पारिवारिक और आर्थिक समस्या के साथ स्वयं की मानसिक स्थिति का ठीक ना होना। इसका सबसे बड़ा कारण था मेरे पति महाराज का सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होना।
दूसरी ओर घर में पांच माह की छोटी बच्ची जिसकी जिम्मेदारी भी मुझ पर थी । ऊपर से आकाशवाणी मथुरा के नववर्ष में नवकथा के अंतर्गत कुछ तैयारी करने की टेंशन ….लेकिन इन सब परेशानियों के बीच साहित्य के प्रति जो समर्पण भाव था वह जीत गया और मेरे इष्ट ठाकुर जी की कृपा से सब आसान हो गया
और मै इस महोत्सव के अखंड दीप प्रज्ज्वलन में शामिल हो सकी
हमेशा की तरह इस बार भी बहुत से नये लोगों जो अपने अपने स्तर पर अपनी अपनी विधा में महारथी थे उनसे मिलने का अवसर मिला और सभी से कुछ ना कुछ सीखने को भी मिला
वही उस महोत्सव में
एक सैनिक जो हाड़ कंपा देने वाली बर्फीली चोटी पर देश की सेवा रक्षा करता है कर रहा है वही जब हमारे बीच एक आम नागरिक की तरह हमारे जलपान से लेकर भोजन तक की व्यवस्था करते नहीं थकता फिर हमें ही नहीं किसी और को भी धन्यवाद तक का अवसर नहीं देता तब ऐसे व्यक्तित्व के आगे हृदय नतमस्तक हो जाता है और अंदर से एक ही आवाज़ आती है जय हिन्द जय हिन्द की सेना वही दूसरी ओर एक सख्त सा दिखाई देने वाला फौजी जब अपनी हास्य रचना से हंसाते हंसाते सभी को लोटपोट करते देखते हैं तो दंग रह जाते हैं कि फौजी का ऐसा रूप भी होता है!?
यहाँ ये कहना गलत ना होगा कि यदि कार्यक्रम में सौ कलाकार साहित्यकार शामिल थे तो सब के सब अपनी विधा में पारंगत थे
फिर अपनी एकल प्रस्तुति पर जब माहौल में एक अजीब सी खामोशी देखी तो ऐसा लगा की हमारी कला विधा में बहुत कमी है लेकिन प्रस्तुति के बाद जब तालियों की गूँज उठी तब समझ आया कि सभी हमारे किरदार में खुद ही खो गए थे।
दूसरे दिन की हमारी गजल रचना तो कईयों की जुबान पर रच बस गई और कुछ तो अभी भी गुनगुनाते फिर रहें हैं दर-ब-दर इधर उधर
इससे गर्व भी होता है और हंसी भी आती है।
अंत में 2024 के इस महा महोत्सव को अपनी बहन बेटी की तरह रूंधे गले से विदाई देना तथा कुछ ना देकर भी बहुत कुछ न्योछावर करना अखंड सरजी का हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी हमारे आंखों को जल से डबडबा कर गई।ईश्वर इस कला संस्कृति संस्कार और साहित्य के मंच को वर्ष प्रति वर्ष शक्ति संबल और सामर्थ्य प्रदान करें यही माँ कामाख्या और ठाकुर जी से प्रार्थना है
एक बार फिर से सभी के पुनः मिलन एंव आगमन की आशा लिए सभी को राधे राधे
संतोष शर्मा ” शान “
हाथरस ( उ. प्र. )
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