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जब मैं छोटा बच्चा था-डॉ. प्रदीप कुमार

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -02 जब मैं छोटा बच्‍चा था (संस्‍मरण)। शब्द सीमा- 700-1000 शब्द।

 यह बात तब की है, जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था । एक दिन पिताजी ने मुझे अपने पास बुलाकर कहा, “बेटा प्रदीप, अब तुम बड़े हो चुके हो । तुम्हारी दीदी भी शादी के बाद अपनी ससुराल चली गई है । इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब से तुम हमारे घर के वे सभी छोटे – मोटे काम कर लिया करो, जो कि शादी के पहले तुम्हारी दीदी किया करती थी ।”मैंंने भी अच्छे बच्चों की तरह कहा, “ठीक है पापा, आप जो भी काम करने के लिए कहेंगे, मैं वो सब कर लिया करूंगा । आप बताइए मुझे क्या – क्या काम करने हैं ?”उन्होंने कहा, “देखो बेटा, अब तुम्हारी मम्मी जो भी सामान किराने की दुकान से लाने के लिए कहेंगी, वे सब ले आया करना । मेरे और अपने कपड़े खुद इस्तरी कर लेना ।” मैंने कहा, “पापा, किराना सामान तो मैं ला ही दूंगा, पर कपड़े इस्तरी करना तो मैं जानता ही नहीं । सो मैं वह काम कैसे कर पाऊंगा ?” पापा ने कहा, “इसमें कौन – सी बड़ी बात है । कपड़े इस्तरी करना मैं तुम्हें सिखा दूंगा ।” मैंने आश्चर्य से पूछा, “वावो, सो नाइस पापा । आप सिखायेंगे मुझे कपड़े इस्तरी करना  ?”

पापा ने कहा, “इसमें इतने आश्चर्य की क्या बात है ? कपड़े इस्तरी करना कोई मुश्किल काम तो है नहीं  । हाँ, इतना जरूर है कि हर वह काम जो हम पहले नहीं किए होते हैं, शुरुआत में कठिन ही लगता है । वैसे मैं तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि  तुम्हारी दीदी को भी कपड़े इस्तरी करना मैंने ही सिखाया था  ।”उल्लेखनीय है कि उस जमाने में आजकल की तरह इलेक्ट्रिक आयरन नहीं हुआ करता था । तब लोहे के आयरन में कुछ कोयला और दो-तीन अंगारे डालकर पहले उसे गरम करते थे, फिर उसे कपड़ों पर सावधानीपूर्वक फेरते थे ।पिताजी को एक-दो बार कपड़े इस्तरी करते हुए देखने के बाद ही मैंंने कहा, “पापा, अब मैं ये कार्य खुद से ही कर लूँगा।”पिताजी ने हौंसला अफजाई की, “व्हेरी गुड । मुझे पता था, कि तुम एक बार में ही सीख जाओगे ।”परंतु ये क्या, कुछ ही दिन बाद आयरन करते हुए पिताजी की एक नई शर्ट पर एक छोटा – सा अंगारा गिर गया और एक सिक्का के आकार का छेद हो गया। मैं डर गया कि अब तो पापा की डाँट पड़ेगी ।डरते हुए मैंने उन्हें यह बात बताई । आशा के विपरीत वे बिल्कुल भी नाराज नहीं हुए । बोले, “कोई बात नहीं बेटा, तुम चिंता मत करो ।  शुरुआत में ऐसा हो जाना कोई नई बात नहीं है ।”

मैंने कहा, “पर पापा, मेरी लापरवाही से आपकी एक नई शर्ट जल गई ।” पापा ने प्यार से कहा था, “शर्ट ही जली है न बेटा, तुम्हारा हाथ तो नहीं जला है । तुम्हें याद है, जब तुम पहले साइकिल चालाना नहीं जानते थे, तो सीखते हुए कई बार गिर जाते थे । साइकिल तो खराब होता ही था, कई बार तुम्हारे हाथ – पैर में भी चोटें आती थीं । लेकिन अब तुम बहुत ही अच्छे से साइकिल चालाना सीख गए हो, तो कभी गिरते नहीं हो । बेटा सोचो, यदि उस समय तुम गिर जाने या चोट लग जाने के डर से साइकिल चालाना ही छोड़ दिए होते, तो क्या आज साइकिल चला पाते ? नहीं न ? इसलिए ट्राई करते रहो । बेटा, तुमने महाकवि वृन्वद का वह लोकप्रिय दोहा तो सुना ही होगा, “करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान । रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निशान ।।””   पापा की बातें सुनकर मन का डर जाता रहा । मैंने उत्साह के साथ कहा, “हाँ पापा, अब मैं धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक कपड़े इस्तरी करूंगा ।

पापा ने उत्साहित करते हुए कहा, “गुड, मुझे पूरा विश्वास है कि अब से तुम बहुत अच्छे से कपड़े इस्तरी कर लोगे । इस शर्ट के बारे में ज्यादा मत सोचना । वैसे भी यह शर्ट मुझे ज्यादा पसंद नहीं थी । अच्छा हुआ जल ही गया । वैसे भी हो जाती है सीखते समय ऐसी छोटी-मोटी गलती । हाँ बेटा, लेकिन आगे से ध्यान रखना । ठीक है ।” आज इस बात को याद कर सोचता हूँ कि यदि पिताजी उस दिन मुझे डाँटते और भविष्य में इस्तरी करने से मना कर दिए होते, तो शायद मैं कभी यह काम सीख ही नहीं पाया होता । मुझे गर्व है कि जब तक मैं पिताजी के साथ रहा, उनके सभी कपड़े मैं ही इस्तरी करता । आज भी मैं अपने कपड़े खुद ही इस्तरी करके पहनता हूँ । इससे मुझे न केवल आत्म-संतुष्टि मिलती है, बल्कि प्रतिमाह सैकड़ों रुपए की बचत भी होती है ।

-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
विद्योचित  ग्रंथालायाध्यक्ष 
छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक,
निगम,ऑफिस काम्प्लेक्स,
सेक्टर 24, ब्लाक बी, नवा रायपुर
जिला – रायपुर, छत्तीसगढ़
मोबाइल नंबर  9827914888 

परिणाम 15 सितम्‍बर 2023, सम्‍मान पत्र 17 सितम्‍बर 2023

 

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