रमेश, नरेश और आकाश तीनों अच्छे मित्र थे। पी. जी. में रहते, पढ़ते-खाते और भरपूर मौज -मस्ती करते । हर दिन कॉलेज और पढ़ाई के बाद जब वक्त मिलता तो सैर-सपाटे के लिए निकल जाते ।अचानक एक दिन लिफ्ट से नीचे उतरे ही थे कि सामने से गुजरती रैली, जिंदाबाद के नारे लगाते लोग! तीनों वहीं ठहरकर देखते रहे, इतने में रमेश बोला – “चल हम भी चलते हैं इनके साथ, देखते हैं कहां तक जाते हैं यह लोग !!” तीनों साथ चल दिए, हंसी- मजाक और ठहाके के साथ करीब दो घंटो पैदल चलते रहे।इतने में पूरी रैली एक भव्य आयोजन में थम गई ।सब ने अपना- अपना स्थान ग्रहण कर लिया। सभा की भव्यता बड़ी-बड़ी झूमर लाइटे, सुंदर सुसज्जित स्टेज ,तो कुर्सियों की भरमार और खचाखच लोगों से भरा पूरा पंडाल मानो देखते ही बन रहा था। कुछ वक्त के लिए तो उतने में ही पूरी दुनिया नजर आ रही थी। तीनों पीछे बैठ हंसी- ठहाका मौज- मस्ती कर आनंद उठा रहे थे। सभा का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । तुरंत बाद ही सभी को चाय- बिस्कुट से नवाजा गया ।वहीं दूसरी ओर सम्मान के कार्यक्रमों के तुरंत पश्चात ही लम्बे-लम्बे भाषण और हवा- हवाई बातों का सिलसिला शुरू हुआ । करीब डेढ़ घंटे का समारोह चुटकियों में खत्म हो गया। बाहर निकलते हुए कुछ खास कर्मचारियों ने सदस्यों को एक-एक 500 रुपए का नोट तो कुछ के हाथों में तो गर्म पानी की बोतले थमाते हुए कहा, “मिलते हैं, 26 अप्रैल को!” तीनों पीछे बैठ मुस्कुराते रहे। उन्हें भी वही 500 का नोट थमाया गया ।इतने में नरेश ने एक बोतल की ओर हाथ बढ़ा दिया। दोनों आश्चर्य से देखते रहे ।रमेश ने झट कह भी दिया , “नरेश! क्या ले रहा है? क्या करेगा तू इसका !!”इशारे से चुप्पी साधते….।आयोजन समाप्त होते ही कोई दो पहिए लिए, कोई चार पहिया तो कोई वहां से निकलने का इन्तज़ार कर रहा था। एक तरफ मोटर गाड़ियों की ध्वनि गूँजी तो दूसरी तरफ हंसी- ठहाके की गूंज ! कुछ रेस्टोरेंट की तरफ आगे बढ़े, कुछ शराबखाने की ओर, तो कुछ वहीं कोल्ड ड्रिंक की चुस्कियां लेते दिखे । तीनों खड़े सब कुछ देखते रहे लेकिन रमेश के लिए यह सब कुछ बिल्कुल नया और अटपटा – सा था। इतने में आकाश के भोजनालय जाने की इच्छा पर तीनों वहां खा पीकर कमरे की ओर चल दिए।
कमरे में पहुंचते ही नरेश ने अपनी बोतल निकाली और तीन ग्लास तैयार किये। रमेश को थोड़ा अटपटा तो जरूर लगा लेकिन वह इंकार नहीं कर पाया और उसने भी सेवन कर भरपूर मौज -मस्ती में रात बिताई, लेकिन सूरज की लाली के साथ एक तरफ पतले दस्त तो दूसरी तरफ सारी दुनिया घूमता उसका सर…। सप्ताह भी नहीं बीता था, कि उसी मोहल्ले में दूसरी पार्टी की सभा का आयोजन देखा । तीनों लुफ्त उठाने वहां पहुंचे। वहीं चाय- बिस्किट ,लम्बे-लम्बे भाषण और प्रस्थान के वक्त 500 के नोट पाकर सबके चेहरों की मुस्कुराहट अलग ही खुशी बयां कर रही थी, लेकिन नरेश चुस्कियों की बोतल न पाकर थोड़ा उदास- सा हुआ। अनायास ही आवाज निकली ,”चल दुकान से ले लेंगे । आखिर पैसे तो मिले ही हैं!” रमेश ने मना भी करना चाहा लेकिन दोनों ने एक नहीं सुनी और दोनों नशे के आदी बन गए। अब जब भी कहीं से पैसे मिलते यहां तक कि घर से भी पैसे आते तो उसका कुछ हिस्सा शराब के लिए अलग कर देते ।
रमेश को अब सभा में जाने में अलग ही आनंद आता। अचानक एक दिन वह सभा से निकल ही रहा था कि उसकी नजर चिलचिलाती सूरज की धूप में बैठी एक महिला पर पड़ी। सबके चेहरे की मस्ती मुस्कुराहट और उस गरीब महिला का हाथ फैलाए देख उसका दिल दहल उठा। उसने जेब से ₹20 के नोट निकाल उसकी और बढ़ाया। दुआओं का ढेर देख वह मन ही मन चिंतित स्वर सोचने लगा कि असल मायने में पैसे की जरूरत तो इन्हें है । अगले ही सप्ताह एक और पार्टी का आयोजन किया गया । जिसके मुखिया शिवमंगल सिंह थे। तीनों पुनः वहां पहुंचे। पूरी सभा का वही प्रारूप रहा और दोस्तों की बिगड़ती हालत देख मुख्य कार्यकर्ता शिवमंगल सिंह को रमेश जाकर बोला- “महोदय, यदि मुझे कुछ पैसे मिले तो शायद मैं आपके वोटो की संख्या बढ़ा सकूं ।”
मंगल सिंह बड़े गौर से उसे निहारते रहे और बोले , “मगर कैसे !!क्या गारंटी है कि तुमने उन्हें पैसे दिये तो वह हमारी पार्टी को ही वोट देंगे!!” ” महोदय यह गारंटी तो आप उनसे भी नहीं ले पाएंगे जो भरी सभा में आपके भाषण सुन जेब गर्म कर निकल जाते हैं। मैं तो उन गरीबों को दूंगा जिनको सही रूप में इसकी जरूरत है। वोट ना भी मिली तो दुआऐ जरूर मिलेंगी ” । मंगल सिंह को उनकी बातों में दम लगा और चुनाव की गहमा -गहमी देख फॉरेन दस 500 का नोट थमा बोले -“लो गरीबों में बांट देना! ” ।”जरूर -जरूर ,रमेश बहुत खुश हुआ और रास्ते में बैठे फुटपाथ पर गरीबों को बांटता गया । यहां तक कि उसने अपने खर्च के बचे पैसे भी बच्चों में बांट दिए जिससे पूरे गांव में रमेश की चर्चा होने लगी और उसकी चर्चा से शिवमंगल सिंह जी भी चर्चा में आ गए । युवा, वृद्ध, यहां तक कि बच्चे भी शिव चाचा कह कर बुलाने लगे। रमेश के कॉलेज का अवकाश होते ही वह घर आया।आते ही मिलने वालो का तांता- सा लग गया । कोई फूलों की माला लेकर, तो कोई सांस्कृतिक गमछा देकर उसका स्वागत करता। सब कुछ देख पिता सीना चौड़ा कर सिर्फ मुस्कुराते रहे । देखते-देखते उन्होंने रमेश से जानने की जिज्ञासा व्यक्त की – “बेटा, आखिर राजनीति में तुमने अपना कदम आगे बढ़ाया कैसे !! कौन है तुम्हारी प्रेरणा?? इससे पहले तो तुम राजनीति का चू तक नहीं जानते थे और इतने कम दिनों में इतनी ख्याति !!!”
रमेश मौन रहा, फिर बोला -“बाबूजी प्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो ये बड़ी-बड़ी चुनावी पार्टियां, जिसने मुझे कुछ करने के लिए बाध्य किया और अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो दादाजी की कही बात– “जन सेवा ही असली सेवा है” आज तक मुझे याद है। जब बाबूजी पसीने से लत -पथ थके हारे दुखी मन से गुमसुम बैठते थे , तो दादी के लाख पूछने पर कहते कि यदि थोड़ा पैसा और मिल जाता तो हमारी धरती सोना उगलती। यह बिचैलिये यदि नहीं होते तो हमारा पूरा वर्ष खुशी-खुशी से गुजर बसर हो जाता। एक दिन चुनावी सभा में जाकर नेताओं के पैसे देते देख मुझे उनकी बात स्मरण हो आई । पैसे की असल जरूरत तो उन गरीबों को है जो अपनी रोजी-रोटी जुटाने में असमर्थ है जो रेलवे स्टेशन पर ,सड़कों पर ,यहां तक कि मंदिरों के चबूतरे पर , तपती गर्मी में हाथ फैलाए रहते हैं ।” इसकी बात सुन पिता की आंखें भर आई । मां पीठ थपथपाते हुए आकर बोली-“वाह बेटा! भगवान तुम्हें ऐसे ही अच्छी बुद्धि दे, और तुम सदा आगे प्रशस्त रहो । बाप दादा का नाम रोशन करो ..!.”अगले दिन ही रमेश चुनाव की गहमा- गहमी देख पुनः शहर लौट आया । रमेश के कार्यों की प्रति लगन और उसकी कुशलता देख मात्र तीन महीने के अंदर ही मंगल सिंह का दाहिना हाथ बन गया। अब वह कोई भी कदम उठाता यहां तक कि कोई वित्तीय सहायता भी आती तो रमेश को जरूर पता होता । रमेश की गली, मोहल्ले ,छोड़ पूरा शहर उसकी वाह -वाही का डंका बजाने लगा । वक्त के साथ ही रैलियो , सभाओ में नए लोगों का जमावड़ा होने लगा ।यह देखते हुए शिवमंगल से अपनी पार्टी से खासकर रमेश से अत्यंत संतुष्ट रहने लगा।
चुनावी तारीख आ गई ।सभी पार्टियों के नेता चुनाव स्थल पर राउंड मारते नजर आए लेकिन रमेश के कहने पर शिवमंगल सिंह अपने घर बैठे टीवी का आनंद लेते रहे। रमेश उनसे इधर-उधर की बातें करता रहा और पोलिंग बूथ की पल-पल की खबर देता रहा। इतने में एक कर्मचारी से सूचना मिली कि पता नहीं शिवमंगल सिंह जी ने लोगों पर क्या जादू कर दिया है!! सभी उन्हीं का नाम जप रहे हैं। आभार जताते हुए मंगल सिंह पूछ बैठे-“रमेश तुमने इतनी छोटी उम्र में इतनी अच्छी राजनीति कहां से सीखी!!” सर बस देखते-देखते, लेकिन हां कभी बचपन में स्वर्गीय दादा जी के मुंह से सुना था- “जनसेवा ही असली सेवा है”। बस यही सोचकर आपसे पहली बार गरीबों में पैसे देने की विनती की थी।” रमेश की बातें और एग्जिट पोल के नतीजों को सुन मंगल सिंह बड़ा सुखद अनुभव कर रहे थे ।संध्या होते हैं रमेश अपने कमरे में चला गया। इतने में नरेश व्यंग्य करते हुए बोला–” आ गए हमारे नेता, रमेश! ” मुस्कुराया। इतने में आकाश पूछ बैठा , “क्या लाए हो हमारे लिए ..”रमेश जलेबी का थैला आगे बढ़ते हुए -“लो दोस्तों ,मुंह मीठा करो ,क्योंकि शायद आज का परिणाम सदुपयोग की विजय का कारण बने ।”नरेश ने हंस कर कहा-“तू खा ले! इससे अच्छा हमारे लिए कुछ और दिला देता…” ।”मुझे पता है कि तुम्हें पसंद नहीं आएगा लेकिन जो तुम चाहते हो वह गलत है, वह एक तरफ हमारी सेहत को खराब करेगा वही दूसरी तरफ माता-पिता ने हमें इतने विश्वास से खुद कष्ट झेल कर यहां पढ़ने के लिए भेजा है और हम …।
“अरे रमेश , तू हमसे यह संत महात्मा वाली बातें मत किया कर !!”
“चलो ,तुम्हें जो ठीक लगे वह करो ।”
देखते देखते लगभग 15 दिन बीत गए। चुनाव की मत गणना की प्रक्रिया शुरू हुई। रमेश और शिवमंगल जी दोनों घर में बैठ टीवी पर नज़रें गड़ाए पल-पल की खबर सुनते रहे । पहले वे सात सौ फिर कुछ घंटे बाद ही सत्रह सौ वोटो से और संध्या होते तक करीब सत्रह हजार वोटो से आगे निकल गए। दोनों की खुशी का ठिकाना ना रहा। वही शिव मंगल जी का पूरा परिवार आभार व्यक्त करते हुए रमेश को सम्मान की मूरत बना दिया। पत्नी कमला देवी आकर कहने लगी- “बेटा तुम हमारी जिंदगी में सचमुच एक फरिश्ता बनकर आए। वर्षों से बेटे की कमी को आज तुमने पूरी कर दी। हमारी सिर्फ दो बेटियां हैं दोनों अपने -अपने घर चली गई। अब हम बिल्कुल अकेले रह गए हैं।यदि तुम्हारे घर पर माता-पिता को परेशानी ना हो तो तुम हमारे साथ ही रह जाओ। जब जरूरत होगी तो चले जाना।”
रमेश खुशी से गद -गदाई ध्वनि से बोला-“वाह! मेरे दो-दो मां बाबूजी।” तीनों वहीं बैठे खुशियों की अठखेलीयाँ लगा ही रहे थे कि चांदनी ने कब सन्नाटा छा लिया पता भी ना चला। अगले दिन ही श्रीमती के कहे अनुसार मंगल सिंह ने रमेश को अपने घर रहने का पुनः आदेश दिया। रमेश खुशी-खुशी अपना बोरिया बिस्तर लेकर वहां पहुंचा। चुनाव की अवधि में रमेश की पढ़ाई थोड़ी ढीली तो जरूर हुई थी लेकिन अब यहां खाने -पहनने के साथ रमेश की पढ़ाई पर भी श्रीमती जी पूरा ध्यान लगा दिया, जिससे रमेश पढ़ाई में भी बहुत अच्छा कर गया। शिवमंगल सिंह सभापति के पद पर आसीन हो गए, तो रमेश को उन्होंने भी अपने दम पर उसे उपसभापति घोषित कर दिया । रमेश भी अब मानो सातवें आसमान पर नाच रहा था । उसने तुरंत ही गांव पर फोन लगाकर माता-पिता को सूचना दी । खुशी से झूमते अगले ही दिन वो सपरिवार मंगल सिंह के घर पहुंचे। रमेश ने परिचय करवाते हुए कहा— “यह भी मेरे बाबूजी और यह भी मेरी मां है। ” उनके चेहरे पर थोड़ी शिकन जरूर आई ,लेकिन पिता ने कहा-“मैं करोड़ों में से एक हूं जिसके बेटे ने अपनी मेहनत के बल पर एक नया परिवार मां , बाबूजी को पा लिया ।” पूरा परिवार खुशी के आंगन में दुआओं की आंधी लिए डूबा जा रहा था। इतने में छोटे भाई ने एक सेल्फी की मांग की और मुस्कुराते चेहरे को तस्वीरों में कैद कर लिया। खुशी -खुशी दो बेटे, दोनों मां पिता के साथ जीवन में प्रशस्त हो बहुत आगे निकल गए…।
डोली शाह
निकट -पी एच ई
पोस्ट- सुल्तानी छोरा
जिला- हैलाकंदी
असम-788161
मोबाइल -9395726158
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