साहित्य सरोज सप्ताहिक आयोजन क्रमांक- 2
सोमवार से मंगलवार ( कहानी लेखन)
शीर्षक – “पहला प्यार”
मार्च का महीना था मेरा विवाह तय हो गया था ।घर में सभी बहुत खुश थे और भैया- पापा शादी की तैयारी में जुट गये ।मई में तिलक उत्सव और नवंबर में विवाह की तिथि रखी गई तभी तिलक चढ़ाने से पहले मेरे पति परमेश्वर का फोन आ गया ।
मैं नंबर देखकर समझ नहीं पाई और फोन उठा लिया ।
सामने से फोन पर आवाज आई —नमस्ते ! मैं राघवेंद्र सिंह बात कर रहा हूं जिससे आपकी शादी तय हुई है ।
इतना बोलते ही उन्होंने कुछ और बोलना चाहा मैं घबरा के फोन काट दी क्योंकि अभी सिर्फ शादी तय हुआ था ना गोद- भराई रस्म हुआ था और ना ही तिलक ऐसे में अपरिचित लड़के से बात करना हम मध्यम वर्ग की लड़कियों को शोभा नहीं देता।
क्योंकि हमारे बाप- भाई कि शान हमारी इज्जत है ।
इसलिए मैं फोन पर बात करना उचित नहीं समझी फिर वह शाम को मेरे भाई को फोन करके बोले भैया अपनी बहन से मेरी बात करवा दो मुझे अपने बारे में और उसके बारे में जानना है।
क्योंकि हम विवाह के बंधन में बंधने जा रहे हैं और एक दूसरे को समझना बहुत जरूरी है ।
आप समझ रहे होंगे भैया आज का समय रिश्तो में विश्वास खोता जा रहा है विश्वास की कमी निरंतर देखने को मिल रही है हम- एक दूसरे से बात करके बहुत कुछ क्लियर कर लेंगे जिससे हमारे वैवाहिक जीवन में कोई संकट ना आए भैया बोले हां बात तो सही है ऐसा करो आप मिलकर बात कर लो फोन से मैं करा दूंगा तभी राघव जी ने बोला नहीं भैया मिलना नहीं है मिलना तो विवाह के बाद ही होगा बस बात करा दो भाई ने बात कराई।मैं भी उनको प्रणाम करके बातें करने लगी और राघव जी बोले आप से मेरा सर्वप्रथम यही सवाल है।
क्या आप मुझसे शादी करना चाहती हैं?
या आप अपने परिवार के दबाव में आकर शादी कर रही हैं कहीं आपका कोई “पहला प्यार ‘तो नहीं मेरे मुंह से निकला जी नहीं अगर होता तो विवाह भी वही होता मैं अपने बाप से ज्यादा भाई को मानती हूं और यह सवाल मेरा भाई आपसे पहले पूछ चुका है इसलिए आपको ढूंढने निकला था।मेरी बात सुनकर वह हंसने लगे और बोले पर मैं तो किसी और से प्यार करता हूं उसका नाम वीणा है ।उसकी शादी उसके परिवार वालों की मर्जी से हो गई है और जब आपका फोटो आया तो मैं शादी के लिए हामी भर दी मैं अपना सच्चाई आपको बता- कर अपने वैवाहिक जीवन का शुरुआत करना चाहता हूं ।आपको यह भी बता दूं कि मेरी और उसकी शादी तय होकर टूटी है क्योंकि उसके परिवार वालों को मैं नहीं पसंद था मैं एक सैनिक हूं इसलिए उसके बाप को मुझसे शादी करने में परेशानी हो रहा था।
यह सब वह बात ही कर रहे थे कि मैं बहुत रोचकता के साथ फोन पर यह सब बातें सुन रही थी।
उनके प्यार व सच्चाई से ही पहले नजर में मुझे उनसे प्यार हो गया जब हमारी गोद भराई होने वाली थी तब मैंने उनको सामने से फोन किया और उनसे बोली आपकी वीणा जी अगर आपसे मिलना चाहे या बात करना चाहे तो मेरी तरफ से कोई रोक नहीं होगा क्योंकि भगवान की रुक्मणी भी राधा से मिलने को श्री कृष्ण को नहीं रोक पाई।इसलिए मैं तो इंसान हूं आप अपने “पहले प्यार “को पहला प्यार बनाकर कभी भी कैसे भी बातें कर सकते हैं ।मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी मैं यह इसलिए कह रही हूं क्योंकि जिस तरह आपका पहला प्यार वीणा जी हैं इस तरह मेरा’ पहला प्यार’ आप हो और आखरी भी मैं आपका सम्मान आपकी सच्चाई -ईमानदारी यह सब देखकर बहुत ही प्रभावित हुई हूं ।तभी वह बोले मुझे नहीं पता क्यों आज ऐसा लग रहा है कि तुम ही मेरे लायक हो और इतना स्पष्ट बातें तुम्हारी मुझे भी आकर्षित कर रहा है मैं खींचा चला आ रहा हूं ।
तुम्हारी तरफ यह सब बातें आए दिन होती ही रहती थी फिर धीरे-धीरे नवंबर महीने की 22 तारीख भी आ गई और हम दोनों का विवाह भी हो गया है विवाह के 1 साल बाद में वीणा जी से बातें करने लगी और मेरे पति को पता भी नहीं चला हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए फिर क्या था एक दिन जब मेरे पति को यह पता चला कि मैं वीणा जी से बात करती हूं तो हंसने लगे और बोले तुम्हें तनिक भी डर नहीं लगता कि मैं तुम्हें छोड़कर कहीं उसके पास ना चला जाऊं ।
तब मैं भी मुस्कुराते हुए बोली अगर आपको जाना ही होता तो हमसे शादी क्यों करते हैं और आप कभी भी उनका घर नहीं बर्बाद करना चाहोगे क्योंकि जो सच्चा प्यार करता है वह हमेशा सामने वालों को खुश देखना चाहता है क्यों मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा।
तब उन्होंने बोला की देवी जी आप सही कह रही हो जैसे प्रत्यक्ष उदाहरण में तुम अपने पहले प्यार के लिए कर रही हो यानी मेरे लिए मेरी खुशी के लिए तुम वीणा से बातें करने लगी वह भी चुपके-चुपके अगर उसके घर वालों को पता चला कि तुम मेरी ही पत्नी हो तब भी घर बिगड़ेगा तो इसलिए मत बात करो तुम मेरी बात मानो क्योंकि अब तुम मेरी हो और वह किसी और की वह मेरा अतीत था,,, तुम आज हो क्यों हम कुछ ऐसा करें कि दो घरों का विनाश हो ।
सच्चा पहला प्यार सबको नसीब नहीं होता पर ईश्वर ने मेरे लिए वीणि से भी ज्यादा प्यार करने वाले हमसफर को मेरे झोली में लाकर रख दिया जो हर बात में मुझे प्राथमिकता देती है इसलिए मैं वीणा का जिक्र शादी के बाद कभी नहीं करता ना चाहता हूं कि तुम करो क्योंकि अब तुम ही मेरे पहले और आखिरी प्यार हो।
स्वरचित कहानी –
ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
वर्तमान पता – (लेह लद्दाख
अपने विचार साझा करें