कब, कैसे, कहॉं की फिक्र में कब पहुँच गई गहमर-संगीता गुप्‍ता

कवि और कवयित्रीयों के बीच मुझे रहने और उनके अनुभवों को जानने का मौका मुझे पहली बार मॉं कामाख्या की धरती गहमर में मिला। पहला दिन शुक्रवार 20 दिसम्बर को मैं गहमर पहुॅंची। रास्ते में फिक्र हो रही थी कि कहाँ जाना है? जगह कैसा होगा? लोग
कैसे होगें? मैं तीन दिनों तक वहाँ रह पाँऊगीं कि नहीं ? सब सोचते-सोचते ट्रेन कब गहमर पहुँच गई पता ही नहीं चला। मुझे निमंत्रण देने वाली मिन्टू दी, उषा दी, बहन अनन्ता साथ उतरे।
हमारी रिस्पेक्ट बढ़ाने वाले आदरणीय अखंड प्रताप सिंह जी हमें खुद लेने आये थे। घर जा कर हम उनकी सुन्दर, सुशील, कर्मठ पत्नी से मिले जो घर में किचन व्यवस्था सम्भाली हुई थी। उनका स्नेह मॉं अन्न्रपूर्णा के स्वरूप लगता था। पूरा परिवार दिल से सभी आगंन्तुकों की
खातिरदारी में लगा हुआ था। जैसे बहुत दिनों का बिछ़ड़ा परिवार आया हो। कार्यक्रम की शुरूआत आर्चाय धमेंन्द्र जी के सुन्दरकांड पूजन से हुआ।
काव्यपाठ, रैंपवाक, नाटक जैसे कार्यक्रम बहुत लुभावने थे। 22 दिसम्बर की शुरूआत गंगा स्नान, नौका बिहार और मॉं कामाख्या दर्शन पूजन से हुआ। 24 दिसम्बर को बनारस में काशी विश्वनाथ जी के दर्शन हुए और एक एक कर के सभी आगंतुक अपने गतंव्य स्थान प्रस्थान करने लगे। अखंड जी और अखंड जी के परिवार का द्वारा जो स्नेह मिला वह अतुलनीय, प्रेरणादायक रहा।समस्त उपस्थित सहभागियों को आयोजन के सफल समापन की बधाई एवं असीम शुभकामनाएं।

संगीता गुप्ता
पोस्ट ऑफिस दानापुर, बिहार

 

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