(व्यंग्य)
बहरापन इतना भयानक होगा, कल्पना से बाहर था बिल्लू के। बस गलती यही थी कि वह मनुष्य सामाजिक प्राणी को चरितार्थ करने में लगा रहा। समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक आयोजनों का एक अहम् हिस्सा बनने की भूल का परिणाम उसका हरापन है। कभी दोस्ती का रिश्ता तो कभी रिश्तों से दोस्ती निभाते बिल्लू ने अपने एक प्रिय अंग से नाता तोड़ लिया था।”अरे बिल्लू जी, गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन की तैयारियाँ चालू हैं आपके बिना कैसे हो पाएगा?” युवा नेता बनने की पहली सीढ़ी पर खड़े मदन ने, नववर्ष की शुरुआत की। भावी नेता के कामों और विचारों को जनता तक बताने के लिए, लाउडस्पीकर पर लाउड स्वरों में चमचे लग गए। मरता क्या न करता, बिल्लू महाराज के कान भी उस विरदावली को सुनते-सुनते भारी हो गए। देश और देशभक्ति पर तो कुछ मिनट ही दिए भावी युवा नेता ने, अपनी स्तुति और यशोगान से पूरा जग हिला दिया।
महाशिवरात्रि का आयोजन हो और बिल्लू शामिल ना हो तो भगवान शिव से ज्यादा पंडित जी बुरा मान जाते।”जजमान, इस बार ट्रस्ट ने तीन दिनों का कार्यक्रम रखा है, अरे भाई हमारी मंडली का भजन है, बड़ा स्पीकर चारों दिशाओं में रखवाना बचवा।” काम तो मुरली डेकोरेशन वाले का था परंतु समाजसेवक बिल्लू ने सिर झुकाकर उनकी बातें स्वीकार कर लीं।स्पीकरों की घरघराहट ठीक करते करते बिल्लू के कान और दिल घरघरा गए।कैलेंडर ने वसंत की अदा दिखाई और फगुनाई बरसाने होली आ गई। ढोल, नगाड़े, होली के बॉलीवुड सांग्स की तर्जों ने, कानों के मर्ज पर नमक छिड़क दिया। बिल्लू के कान सुकून की तलाश में थे कि आंदोलन और धरनों का आमंत्रण आ गया। सब अपने ही लोग थे और अपनों का दर्द बिल्लू से बेहतर कौन समझता? सो बस मालिक थामे, चिल्लाते लोगों के साथ शामिल हो गए। चीखे बिना सरकार और मीडिया सुनते हैं क्या? सरकार ने कितना सुना पता नहीं, बिल्लू जी के खुद के कानों ने नार्मल आवाज़ को सुनने से इंकार कर दिया।
गणपति उत्सव में बप्पा को हर नए, सुपरहिट फिल्मी गाने भी तो सुनाना था। बड़े कानों के बप्पा ने तो इन गानों को झेल ढपेल लिया परंतु बिल्लू के कानों ने हड़ताल कर दी।”क्या करते हो, कान के परदों पर सूजन आ गई है। सावधानी नहीं रखें तो परिणाम ठीक नहीं होगा।” बिल्लू की किस्मत भी ऐसी है कि डॉक्टर भी बॉलीवुड विलेन जैसा धमका कर बात कर रहा था। “बेचारा, सरकारी अस्पताल में हैं अपना क्लीनिक खोल लेगा तब वाणी भी बदल जाएगी।” मन में सोचता बिल्लू घर की ओर चल पड़ा।”पाँच-छह बार आवाजें लगा चुका बिल्लू भाई, अनसुना करके निकल रहे हो। क्या बात है नाराज हो क्या?” पीछे से सामने आकर एरिया के इकलौते मंड़प डेकोरेशन वाले, मुरली ने कहा।”अरे नहीं मुरली, बस किसी सोच में चला जा रहा था। बताओ क्या बात है?””सोच-विचार का समय नहीं बिल्लू भाई, इस साल नवरात्रि में गरबा के बहुत पंडालों काम मिला है। मैं अकेला तो भाड़ नहीं फोड़ सकता, तुम्हारे सिवा इस सामाजिक, सांस्कृतिक काम में कौन मदद करेगा भला।” मुरली की तान से बिल्लू का मनोबल पारे की तरह चढ़ने लगा।”मुरली, मुझे आवाज़ से एलर्जी हो गई है भाई, अब तुम किसी और को ढूँढ लो भाई।” कहते हुए बिल्लू आगे निकलने की कोशिश करने लगा।
“तुमको कौन गाना-नाचना है भाई, सिर्फ पंडाल लगाने में देखरेख कर लेना, पैसे भी तो मिलेंगे ना।” बिल्लू पैसों से थोड़ा डगमगा गए। “पैसे किसको मिलेंगे?” बिल्लू ने हवा में प्रश्न उछाला।”तुम्हें भी हिस्सा दूंगा, पक्का इस बार काम बहुत मिला है। लगता है गरबे के प्रति लोगों का प्रेम चरम सीमा पर पहुंच गया है।” चारों तरफ गरबे के पोस्टरों को देख मुरली बुदबुदाया।पंडालों की देखभाल में, स्पीकरों, स्टेज की व्यवस्था देखते-देखते, जवान बिल्लू गरबा की शामों का इंतजार करने लगा। कानफोडू डीजे, लोगों के शोर-शराबे से नवरात्रि के अंतिम दिन, बिल्लू को सब कुछ शांत लगने लगा। सारी सृष्टि सुंदर, रंग भरी थी, कहीं कोई आवाज नहीं, वह आज बेहद संतुष्ट था।”आपके कान हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गए बिल्लू जी। अब आप बुरा तो क्या अच्छा भी सुनने के काबिल नहीं रहे।” डॉक्टर की बात बिल्लू के कानों में घुसी पर अब वह इन आवाजों से कहीं दूर, शून्य में विचरण कर रहा था।
शर्मिला चौहान
ठाणे (महाराष्ट्र) 400610
मो.नं. 9967674585

अपने विचार साझा करें