11 फरवरी, फोन में तारीख देखते ही पलक के मस्तिष्क में सहसा एक विचार कौंधा कि आज तो प्रोमिस डे है। कितना अजीब शब्द है न ये वादा भी , लोग वादा तो कर लेते हैं पर निभाता कोई कोई ही है। वादा करने से ज्यादा मुश्किल होता है उसे निभाना। यह सब सोचते-सोचते व्यंग्य और दर्द से भरी हुई एक मुस्कान उसके चेहरे पर दिखाई देने लगी। एक पल में मानो वो अतीत के सागर में गोते खाने लगी हो। देखो प्रताप, भला हम इस तरह कब तक रह सकते हैं, कभी न कभी तो हमें विवाह बंधन में बंधना ही पड़ेगा।तुम्हारा तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं, पुरूष जो ठहरे (पलक ने शिकायत भरे लहजे में प्रताप से कहा) तुम फिर इन बातों को लेकर बैठ गई। अरे! नहीं करनी मुझे कोई शादी-वादी, मैं किसी बंधन में बंधकर नहीं रह सकता। क्या दो प्यार करने वाले बिना विवाह के एक साथ नहीं रह सकते?
तुम समझते क्यों नहीं प्रताप ! समाज इस तरह के रिश्ते को कोई मान्यता नहीं देता। मैं एक लड़की हूँ इस तरह भला कब तक तुम्हारे साथ रह सकती हूँ। आते -जाते लोग न जाने किन नजरों से मुझे देखते हैं (पलक ने थोड़े रूआंसे लहजे में कहा) देखो, हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं, कानून भी इसकी इजाजत देता है और फिर मैं प्रयत्न कर रहा हूँ न अपने आप को साबित करने का । जब तक लाईफ में कुछ सैटलमेन्ट नहीं हो जाती मैं किसी बंधन में बंधने वाला नहीं (प्रताप ने उसे समझाते हुए कहा)।
आज इन बातों को आठ वर्ष हो गए हैं किंतु न जाने क्यों रह -रह कर पलक इन्हें भुला नहीं पाई। ये बारिश भी न यादों की तरह थमने का नाम नहीं ले रही दिल की बेचैनी और बढ़ा रही है (पलक ने अतीत की यादों में खोए हुए अपने आप से बातें करते हुए कहा)मैडम, चाय के साथ पकौडे़ बना दूँ क्या ? ( कामवाली की आवाज सुनकर वो एकदम चौंक पड़ी ) नहीं, रहने दो, बस एक कप कॉफी ले आओ।
एक बात पूछूं आपसे पिछले तीन सालों से आपके यहाँ काम कर रही हूँ, कभी हिम्मत नहीं हुई हो पाई ,अगर आप को बुरा न लगे तो… (कामवाली ने कुछ सहमे हुए अंदाज में कहा)
हाँ बोलो ,क्या कहना चाहती हो ? (उसने अनमने भाव से कहा)
यही कि आप अकेले रहते हो कोई और नहीं है क्या आपके परिवार में?मैंने यहाँ कभी किसी को आते -जाते नहीं देखा।
अब कहाँ, कैसा परिवार! था कभी पर अब नहीं है(यह कहते -कहते वो पुनः अतीत में जा पहुँची)
पलक, मैं दो साल के लिये आस्ट्रेलिया जा रहा हूँ , मामा जी ने बुलाया है। कहा है कि उन्होंने मेरे लिए नौकरी ढूंढ ली है। नौकरी का बहुत अच्छा ऑफर आया है, परसों ही निकलना है। (प्रताप ने प्रसन्न मन से कहा)
और मैं, कैसे रहूंगी भला ऐसे अकेले ! चार साल से अपने परिजनों से दूर तुम्हारे साथ रह रही हूँ । कुछ अंदाजा भी है तुम्हें ! (पलक ने शिकायत के लहजे में कहा)
अरे! सिर्फ दो साल की ही तो बात है, यूँ ही चुटकियों में बीत जाएंगे और फिर फोन पर बातें भी तो होती रहेंगी।
तुम तो जानती ही हो न, विदेश जाकर काम करना मेरा कितना बड़ा सपना रहा है।
देखो, तुम वादा करके जा तो रहे हो, वापस तो आओगे न?
अगर नहीं आ पाया तो सब कुछ व्यवस्थित हो जाने पर तुम्हें वहीं बुला लूंगा। (यह कहकर वो जाने की तैयारी में लग गया)
आपने बताया नहीं मैडम (कामवाली ने अपनी बात दोहराई)
तुम कॉफी नहीं लाई अब तक (उसने बात को टालते हुए कहा)
बारिश ने भी अब तेज रफ्तार पकड़ ली थी और वह जल्दी से शीशे बंद करने दौड़ी।उस दिन भी तो ऐसी ही बारिश हुई थी जब प्रताप ने आस्ट्रेलिया जाने की बात कही थी (वह मन ही मन सोच रही थी)।
आज उसको गए चार बरस हो गए हैं अभी तक लौटकर नहीं आया, कहता था कि दो साल में वापस आ जाऊंगा।पहले तो एक साल तक फोन पर बातचीत होती रही फिर तो उसका कोई फोन भी नहीं मिला, शायद उसने नम्बर ही बदल लिया होगा (वह मन ही मन सोचने लगी)। कितना समझाया था माँ और बाबा ने कि बिना वैवाहिक बंधन में बंधे प्रताप के साथ रहना अनुचित है। किंतु आधुनिकता के इस दौर में वर्तमान पीढ़ी भला कहाँ इन सब बातों को उस समय समझ पाती हैं? या यूं कहें कि समझना ही नहीं चाहती। पर प्रताप… वो तो ऐसा नहीं था। वादा किया था उसने कि नहीं आ पाया तो मुझे बुला लेगा। ये कैसा रिश्ता है मेरा प्रताप के साथ ! जो भी हो मैंने तो उसे दिल से अपनाया है । परिवार वालों के खिलाफ जाकर , उस पर अटूट विश्वास करके ही तो रहने चली आई। भले ही उसके साथ विवाह न किया हो, भले ही वो वहीं जाकर बस गया हो या फिर वापस आए भी या नहीं, पर मुझे तो उसका इंतजार सदैव रहेगा।यह सोचते -सोचते कॉफी की हर एक चुस्की में मानो वो अपने अतीत के समस्त पलों को पुनः समेट कर रख देना चाहती थी इस उम्मीद में कि शायद प्रताप अपना वादा पूरा करने आ जाए।
किरण बाला (चण्डीगढ़)
79 7390 9907
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