लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर: छत्तीसगढ़ की काशी-गीता

शिव ही सत्य है सत्य ही शिव है इसी कड़ी में ,छत्तीसगढ़ राज्य  का  खरौद नगर अपने विशिष्ट कला और संस्कृति के साथ भगवान शिव की धरोहर के लिए  विशेष रूप  से ख्यात  है ,यहां स्थित भगवान शंकर का पौराणिक मंदिर लोगों की आस्था के साथ जुड़ा एक विशेष स्थल है ऐसी, मान्यता है कि भगवान राम ने खर और दूषण के वध के बाद अपने प्रिय भ्राता लक्ष्मण के कहने पर इस मंदिर की स्थापना की थी इसलिए यह” लक्ष्मणेश्वर  महादेव” के नाम से  विख्यात है यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक है और अपनी मोक्षदायी महत्ता के कारण इसे “छत्तीसगढ़ की काशी” के नाम से भी जाना जाता है। और यह लक्ष्मणेश्वर मंदिर न केवल लोगों  की धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि यह  स्थापत्य का भी अद्वितीय और बेजोड़ उदाहरण है।
 
              लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर नगर के प्रमुख देवता के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। यह मंदिर चारों ओर से पत्थर की मजबूत दीवार से घिरा हुआ है। इस दीवार के अंदर एक 110 फीट लंबा और  48 फीट चौड़ा चबूतरा है, जिसके ऊपर 48 फुट ऊँचा और 30 फुट गोलाई वाला मंदिर स्थित है।  गहन अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे पर एक बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना अवश्य  रहीं होगी, क्योंकि इसके ऊपर के भाग पर स्पष्ट रूप से मंदिर की आकृति  निर्मित दिखाई  देती है। चबूतरे के इसी ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। इसकी विशेषता मंदिर के गर्भगृह में स्थित विशिष्ट शिवलिंग  है, जिसे लक्षलिंग कहा जाता है। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं, जिससे कारण इसका नाम ”  लाखा चावल ” पड़ा है। सभा मंडप के सामने सत्यनारायण मंडप, नंदी मंडप और भोगशाला स्थित हैं जो आज भी अपने पुरातात्विक गौरव को स्थापित किए हुए हैं।
 
मंदिर के मुख्य द्वार में जैसे  ही प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण और बाये भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा हुआ है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा  को पढ़ना अब तक सम्भव  नहीं हो पाया है, इसमें आठवीं शताब्दी के इन्द्रबल और ईशानदेव नामक शासकों का  उल्लेख समझ आता है। वाम भाग का शिलालेख संस्कृत में है, जिसमें 44 श्लोक हैं। इसमें चन्द्रवंशी हैहयवंश के रत्नपुर के राजाओं का उल्लेख है, जिन्होंने कई मंदिर, मठ और तालाब बनवाए थे।रत्नदेव तृतीय की रानियों राल्हा और पद्मा से उत्पन्न पुत्रों का भी उल्लेख है। इन्हीं शिलाओं को पढ़ने एवं समझने के बाद  य़ह गहन विश्वास  किया  जाता है कि  य़ह मंदिर आठवीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था और इसी आधार पर हम इसकी पौराणिक महत्ता का भी अंदाजा लगा सकते हैं।
 
मंदिर के मूल प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्वों में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ हैं। एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन और अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हुए हैं। दूसरे स्तम्भ में रामायण से संबंधित दृश्य, जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन के दृश्य खुदे हुए हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्तियाँ स्थित हैं, जिनमें मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। इनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं और नीचे द्वारपाल जय और विजय की मूर्तियाँ हैं। इस पर लिखी भाषण भले अब तक पढ़ी ना जा सकी हो लेकिन इन मूर्तियों, कलाकृतियों को देखकर बहुत कुछ समझा जा सकता है वह अपने आप में एक विशाल इतिहास को समेटे हुए खड़ी हैं।
 
वैसे तो यह मंदिर छत्तीसगढ़ के लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ जुड़ा हुआ स्थल है और पूरे साल लोगों का आना-जाना लगा रहता है क्योंकि उनका दृढ़ विश्वास है कि भगवान शिव  की उनके ऊपर विशेष कृपा दृष्टि है , परंतु  सावन  में   एवं  महाशिवरात्रि में यहां मेला लगता है और लोग आकर अपनी मनोवांछित वस्तु प्राप्त करने के लिए पूजा अर्चना करते हैं और अपना विश्वास जताते हैं।

गीता सिंह
बिलासपुर, छत्‍तीसगढ़
9993039489

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