“रीना जिज्जी, तुम सई कै रईं। सिरकार अपनौ बिल्कुल धियान नईं दे रई। अब अपन अगली बेर तबई बोट डारबे जैहैं जब अपने गाँओं में पाइपलैन डर जे और घर – घर नल सें पानूँ आन लगे। अगर पाइपलैन नईं आई अगले चुनाओ लौक तो अपन चुनाओ कौ बहसकार करें और आंदोलन करकें माँग करहैँ के – ‘पैलें पाइपलैन बिछुआओ और फिर बोट डरूआओ। पाइपलैन नईं तो बोट नईं।”
“हओ! दिब्या। आंदोलन करकेंईं अपन खों अपने हक्क मिलहैं। तो अब आंदोलनन होईये देहात के बिकास के लानें – बुंदेलखंडी देहात सुदार आंदोलन।” पानूँ भरबे के बाद रीना नें गोबर उगा लओ तो। जी गोबर सें घर – बार की साप – सपाई सें फुरसत होबे पे ऊने रोटी के ईंधन के लानें कंडा पाथे और फिर डलिया लेकें तिरकाई बेंचबे गाँओं में निकर गई। बा बड़ी मीठी आबाज में अपने रोजीना के अंदाज में कै रई ती -“बाई हरौ, भज्जा – बिन्नू ले लो भटा; ताजे – ताजे हाले भटा। बीस रुपज्जा में डेढ़ किलो, नाज सें बिरोबर।” दाऊ कक्का नें तीन किलो भटा खरीद कें रीना की बोनी कराई और फिर फुलिया काकी नें दो किलो नाज के बिरोबर भटा लए।
आज दो सौ रुपज्जा और चार किलो नाज की आमदनी भई। बा हाँत – मूँ धो कें रोटी बनाबे बैठ गई। ऊने खाबे में चनन की दार बनाई और जब बा रोटी सेंक रई ती तो उए लकईयन और भटन के डूठन कौ धुआँ आँखन में हद्द सें बेजां लग रओ तो। आँखे मडीलत – मडीलत लाल हो गईं तिं, बड़ी मुसकिल सें रोटी सेंक पाईं। गैस चूलो और सिलेंडर भी तो बांटे सिरकार नें तेओस की साले फ्री में गरीबन खों। लेकिन गैस सिलेंडर गियारा – बारा सौ रुपइया में भर रओ, जीके लानें पईसन नईं जुर रए। तो पैले की तराँ जी फूंकनें पर रओ बई चूले में, जीमें सालन सें फूँकत आए। जब फ्री में सिलेंडर नईं बंटे ते तो सिलेंडर चार – पाँच सौ कौ भरत तो। फ्री में सिलेंडर बँटबे के बाद इतेक मैंगो हो गओ के दोई – तीन साल में गियारा – बारा सौ कौ भरन लओ। जा कैसी नीत है सिरकार की देस के बिकास की?इतेक में ऊके पति सिम्मू हार सें पिसी में पानूँ देकें लौट आए। ढाई बीघा के आदे खेत में पिसी लगी ती और आदे में साग – सब्जी और मटर। माओ की इंदयाई रात में सिम्मू ढोरन – गुरायन सें अपने खेत खों रखाऊत, ओई सस्ते और रद्दी कमरा खों ओढ़कें जौन पिंटू नेताजू नें पिछले चुनाओ में बांटो तो। नैक सी टपज्जा डारें, मूँमफली के टटर्रे सें तापत – तापत रात गुजारतई।
दिन में कलेऊ करकें खेत में लग जाऊत। कभऊँ रीना के संगे तिरकाई तुरुआऊत और कभऊँ पिसी में खाद देऊत – दबाई देऊत। भटन और भिडडी में तो हर तीसरे – चौथे दिनाँ दबाई देने परत। सिम्मू भोर सें निन्नें दबाई डार रए ते तो रीना कलेऊ लेकें साढ़े नौ बजे पौंची खेत पे। तो फिर मेड़ पे पालथी मारकें सिम्मू कलेऊ करन लगे तबईं रीना सिम्मू सें सरकार की नीत और किसानन की हालत खों लेकें बतकाओ करन लगी – “जे कीटनासक और फल – फूल बढ़ाबे की दबाईएं इतेक मैंगी आऊत के पूरी कमाई इन दबाईयन मेंईं लुट जाऊत। यी पूँजीबादी और बाजारबादी जुग में हर जगा लुटाई हो रई हम किसानन की। देख रए! दो सौ एमिल फल फूल की छै सौ रुपईया की आई और बा कीटनासक एक लीटर सोला सौ की। सौ – दो रूपज्जा की लग्गत सें कम्पनी में बनी दबाई सोला सौ में बेंच रए दुकानदार, इतेक जादा टैक्स लगा का सिरकार? जो कैसो लूट कौ जमानो चल लओ। सिरकार भी किसानन की बिल्कुल नईं सुन रई, कभऊँ तो तीन – चार रुपज्जा किलो के हिसाब सें बिकत भटा और जा मन भर भिडडी की बोरी अस्सी रुपज्जा की। तो जबतो टैम्पू कौ किराओ – भाडो लौक नईं निकरत।””तुम सई के रईं! बरुन की मम्मी। ऐसेई हाल हैं जा देस के।
रीना फिर केऊत – “सिरकार खों देस में सब्जियन पे भी एमएसपी लागू कर देंएं चज्जे। कि थोक में भटा छै महिना लौक बीस रुप्पजा सें कम नईं बिकें और फुटकर में पच्चीस सें जादा नईं और आलू थोक में पच्चीस सें कम नईं और फुटकर में तीस सें जादा नईं बिकें। अगर सिरकार किसानन की भलाई की ना सोचे तो सिरकार भी मिट जैहै। अगले चुनाओ लौक खोज मिट जेहै यी सिरकार कौ। तीनऊ किसान बिरोधी काले कानून आखर में सिरकार खों बापस लेनेईं परे ते परकी साले और किसानिन सें माफी भी माँगने परी थी देस के राजा – पिरधानमंतरी जू खों। जो तो पूरी दुनिया नें देखो तो किसान आंदोलन की बदौलत। जब किसानन अपने पे उतरत तो सबके सिंघासन हिल जाऊत चाय सेठ – साहूकार होएं, बैंक होंए, कीटनासक और खाद बेंचबे बाय दुकानदार। अब किसानन कौ दोई मुद्दा खों लेकें आंदोलन हुज्जे -“पैलो, खाद और दबाइयन के दाम सस्ते करो, खाद टेम पे सबखों मिलबे और नईं तो फिर पत्ता ना हिल पे।दूसरो, सब्जियन और सारी फसलन पे एमएसपी लागू करौ। देस कौ सई में बिकास कन्ने तो किसान की भलाई की स्कीमें बनानेईं परहै।” रीना डाँग में छिईंयाँ – बुकईयाँ चराबे निकर गई फिर। दुपज्जा में रूखी – सूखी रोटी अमिया के अचार के संगे खाऊत। ईए गईया – भैंसन कौ घी – दूद तो जुरोई नईंयां।
सारी रात जगत – जगत निकर गई ती कायकि जेठे मौडा रमन खों लेखपाल बकी परीक्छा देबे झाँसी जाओने तो। दस बजें सें परीक्छा हती बुंदेलखंड दुनियाईगियानपीठ झाँसी में, टेम सें सेंटर पे पौंचबे के लानें घर सें जल्दींनिकरने आऊत कायकी दो घंटा तो लगई जाऊत बस या टैम्पू सें गांओं सें झाँसी पौंचबे में। भुनसारें चार बजें लुचई और खुरमी निकारत बेटा रमन सें बतकाओ कर रई – “ओ! बेटा रमन यी बेर तुम लेखपाल बनईं जेहौ, मंसिल माता सें हमनें बिनती भी करी और एक बुकज्जा भी चढ़ाबे खों बोली के हमाए बेटा की पार लगा दिओ मज्जा। कायकी बेटा नें भौत मेनत करी पढाई में। तुमाओ का दोस जब सिरकार चार – पाँच साल में दो – नौकरी निकार रई और ओई में कभऊँ पेपर लीक होबे सें भरती रद्द भी कर दे रई। भौत बेरोजगारी मची देस में सिरकारी नौकरी मिलबो मुस्किल हो गओ। नौकरी की तज्जारी करत – करत तुमई तो तेईस साल के हो गए। अब टेम सें तुमाओ बियाओ भी तो कन्ने; पढ़ी – लिखी, ऊँची – पूरी, सुंदर – सुसील बऊ चाओनें हमें तो बस तुमाई नौकरी लग जाए बस।””हओ! अम्मा तुमाओ आसीरबाद है तो सब अच्छोई हुईए, हम लेखपाल जरूर बनहैं।” एक – सें – एक पढज्जा मौडी – मौडा चप्पलें चटकाऊत फिर रए दिनरात मेनत करबे के बाबजूद। सिरकारी नौकरी निकरबो खतमईं सीं हो गईं। कायकी सिरकार नें सारे बिभाग पिराईबेट कर दए बैंक, बिजली, रेल, भेल कछुअई तो नहीं बचो। अब सिरकार सारे इसकूल – कॉलेज खों पिराबेट करबे की फिराक में है। ऊपर सें डेढ़ – दो साल लॉकडाऊन में गाँओं के मौडी – मौड़न की पढ़ाई – लिखाई चौपतई हो गई। दो – दो दिनाँ लौक लाईट कटी रेऊत गाँओं की और ऊपर सें इंटरनेट भी नईं चलत अच्छे सें। पढ़ें सो पढ़ें कैसैं? जब पूरी सिक्छा पिराईबेट हो जेहैं तो फिर का हुज्जे देस कौ ? का सबई जनें पकौड़ा की दुकान खोलें का या चाय बेंचे? पकौड़ा खाबे बाय और चाय पीबे बाय भी तो होएं चज्जे? और खाबे – पीबे खों पईसा भी आएँ चज्जे सबके पास? आखर कबे आएँ देस के अच्छे दिनाँ?
रमन के संगे रात भर जगबे की बजै सें उए दुपाई करबे के बाद नींद आ गई और ऐई बीच तीन पगला कुत्तन नें ऊकी एक बुकज्जा खों तोड़ दओ। सो रोऊत – रोऊत आज जल्दीं घरे आ गई। संजा कें सिम्मू नें उए भौत डाँटो – फटकारो। सिम्मू रीना सें गुस्सात भएँ कैऊत – “तोए! भौत सोने हतो, अब देख सोबे कौ फल। छिज्जा – बुकईयन खोजई मिटकें रै। इन कुत्तन नें गरीबी में और आटा गीलौ कर दओ।” “अरे करन के पापा! तुमें जैसो ठीक लगे, बैसोई करो। अब का रहत, भगुबान खों जेई दिनाँ दिखा नें हते अपन खों, सो दिखा दए। अपन के भी कभऊँ अच्छे दिनाँ भी आएँ?”और दूसरे दिनाँ भोरईं सिम्मू नें तीनऊँ बुकइयां और एक छिज्जा खटीक खों बेंच दईं। अब बाल – बच्चे दूद सेंईं बंचित हो गए। जेई बुकइयां गईयां हती इनन के लानें।
सतेंद सिंघ किसान
किसान गिरजासंकर कुसबाहा ‘कुसराज’)
नन्नाघर, जरबौ गाँओं, बरूआसागर,
झाँसी (बुंदेलखंड) – २८४२०१
88001 71019
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