महाकुंभ जैसे आयोजन पर कलम चलाने से पहले बहुत कुछ सोचना पड़ता है। एक बार अधजल ज्ञान से इस पर लिखा जा सकता है, लेकिन उसकी प्रकृति, महत्त्व और रंगों पर लिखना हम साधारण मानव के बस की बात नहीं है। इसीलिए मैंने महाकुंभ में कई दिनों के प्रवास के बाद भी कुछ लिखने की हिम्मत नहीं जुटाई। परंतु अपने लगातार ट्रेन यात्रा और कुंभ यात्रा के दौरान महसूस किए गए गुमनाम तथ्यों को, वहाँ के निवासियों को कष्ट में मुस्कुराते हुए देखकर जो महसूस किया, वह हजारों की तादाद में लाखों रुपये खर्च कर गुमनामी में सेवा करने की होड़ देने वाले उन सभी पर कलम चलाने की कोशिश कर रहा हूँ, जो आपको साहित्य सरोज के प्रिंट अंक और वेबसाइट पर देखने को मिलेगा। फिर आप निर्णय लीजिएगा कि कथन कहाँ तक सही है।
इस महाकुंभ के पर्दे के पीछे, मीडिया से दूर, भूखें-प्यासे, अपनी जान को दांव पर लगा कर कुंभ यात्रियों और मौत के बीच दीवार बनकर, लाखों की भीड़ के सामने एक लोहे की छोटी सी बैरिकेडिंग के पीछे, यह जानते हुए भी कि यदि भीड़ का सब्र टूटा तो यह लोहे का 6 फीट का अवरोध उनके 6 फीट के शरीर से आत्मा को निकाल कर उसका मिलन परमात्मा से करा देगा, खड़े पुलिस के होमगार्ड, सिपाही, दरोगा, कोतवालों एवं सेना के जवानों के प्रति कुंभ में आए प्रत्येक श्रद्धालु उनके अदम्य साहस को नमन करने को बाध्य हैं। उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुक जाता है।
महाकुंभ मेले में तैनात उच्चाधिकारी तो बस वीआईपी और वीआईपी की सुविधाओं को देखने में व्यस्त रह गए। अपने वायरलेस से बस आदेश पारित कर दिया, लेकिन उनके आदेश से वास्तविक धरातल पर आम श्रद्धालुओं पर क्या फर्क पड़ा, इसका प्रमाण तो एक सिपाही ही दे सकता है। वह यह जानता है कि मेले की व्यवस्था में यह आदेश एक तुगलकी फरमान है। इसका असर आम लोगों पर पड़ेगा, लेकिन वह अपनी ड्यूटी को बाध्य है। यदि उसने जरा भी उस आदेश के पालन में वास्तविक घटनाओं को देखा तो उसका निलंबन तय है।मैंने कुंभ मेले में तड़प कर रोते पुलिस के सिपाहियों को अपनी इन आंखों से देखा है, उनका दर्द महसूस किया है। वह दर्द उनके अपने भोजन के लिए, अपनी व्यवस्था के लिए नहीं था। उनका दर्द बच्चों, महिलाओं, असहायों की परेशानियों को देखकर था। वह जानते थे कि जहाँ से यात्री कुंभ की तरफ आ रहे हैं, वहां आगे रास्ता बंद होने का या वीआईपी मूवमेंट का कोई बोर्ड नहीं लगा है। स्नान करने वाले कई किलोमीटर पैदल चलकर आ रहे हैं और उन्हें घाट के पास रोक दिया जाएगा। मगर वह कर क्या सकते थे? उन्हें तो बस समझाने का काम दे दिया गया था, जो उनकी रोती हुई आत्मा कर रही थी। उन्हें पता था कि इतने पीपे के पुल लगे हैं, मगर चालू न होने से क्या परेशानी हो रही है, मगर वह क्या कर सकते थे? कहें तो किससे? अधिकारी सुनते नहीं, जनता सुनती नहीं। अश्क रुकते नहीं।
महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन स्नान के लिए आते हैं, और प्रमुख स्नान पर्वों पर यह संख्या करोड़ों तक पहुंच जाती है। इतनी विशाल भीड़ को नियंत्रित करना, उनके लिए सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करना, और किसी भी अप्रिय घटना से निपटना उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होती है। उत्तर प्रदेश पुलिस के होमगार्ड, सिपाही और दरोगा दिन-रात ड्यूटी पर तैनात रहते हुए, वे न केवल भीड़ को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाने में मदद करते हैं, बल्कि संभावित भगदड़, चोरी, महिलाओं की सुरक्षा और अन्य आपराधिक घटनाओं पर भी नजर रखते हुए, परिवार से बिछड़े लोगों को उनके परिवार से मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हकीकत के धरातल पर उतरकर ठंड के मौसम में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने वाले श्रद्धालुओं की मदद करते हुए, दुर्भाग्यवश बीमार और घायल हुए श्रद्धालुओं को अस्पताल पहुंचाने तक की जिम्मेदारी निभाते हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस के जवान, जिनमें होमगार्ड, सिपाही और दरोगा शामिल हैं, महाकुंभ के दौरान अद्भुत अनुशासन और समर्पण की मिसाल पेश करते हैं। वे अपनी ड्यूटी को पूरी निष्ठा से निभाते हैं, चाहे वह कड़ाके की ठंड हो, लंबी ड्यूटी के कारण थकावट हो, या फिर भारी भीड़ के बीच सुरक्षा बनाए रखने का दबाव हो। पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी निभाते हुए बीमार हो जाते हैं, और कुछ मामलों में तो वे अपनी जान तक गंवा देते हैं। लेकिन इसके बावजूद, वे अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटते। उत्तर प्रदेश पुलिस के इन कर्मवीरों की वजह से ही श्रद्धालु बिना किसी भय के आस्था की डुबकी लगा पाते हैं। वे बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी थकावट के, अपने कर्तव्य को निभाते हैं ताकि यह महान आयोजन निर्विघ्न रूप से संपन्न हो सके।श्रद्धालुओं के जीवन और मौत के बीच गालियां सुनकर खड़े उत्तर प्रदेश पुलिस के इन सिपाहियों और दरोगाओं के अदृश्य योगदान के बिना इस मेले का आयोजन संभव नहीं हो सकता। यदि वे कभी बल प्रयोग करते हैं तो यह जान लें कि वह बल आपके और यमराज के मिलन के बीच एक बहुत बड़ी रेखा है।
मुझसे कई लोगों ने पुलिस के कार्य को लेकर शिकायत भी की, लेकिन मित्रों, आप अपने घर के किसी आयोजन में केवल सुबह से शाम तक खड़े हो जाते हैं, तो आप रात होते-होते थक जाते हैं, आप चिड़चिड़े हो जाते हैं, मगर जरा सोचिए करोड़ों की भीड़ में मानव बोझ के तले दबे सुरक्षा की जिम्मेदारी लिए महीनों से खड़े पुलिस के जवानों पर क्या बीतती होगी। यदि उनके साथ कुछ हादसा हो जाता है तो क्या सरकार से मिला पैसा उनके बच्चों को, उनकी पत्नी को, उनकी मां-बाप-बहन-भाई को उनका सुख दे सकता है? नहीं, क्योंकि मानव प्रेम के आगे पैसे की बिसात कुछ नहीं। पैसे से भौतिक समस्याएं कम होती हैं, लेकिन परिवार का प्रेम नहीं मिलता। आज हर श्रृधालु कुंभ मेले में लगे हुए होमगार्डो, सिपाहियों और दरोगाओं और सेवा के जवानों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए जीवन और मौत के बीच खड़े इस दीवार को करते हुए कामना करता है कि ईश्वर उन्हें स्वस्थ एवं सुखी रखें।
अखंड प्रताप सिंह
संपादक साहित्य सरोज
9451647845
सत्य वचन✅ नमन है ड्यूटी पर तैनात सभी कर्मियों को🙏