डॉ माला की कहानी बसंत

कहानी संख्‍या -23,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,

सत्तर वर्षीया सुशीला ने अपनी आंखें खोलीं तो सब ओर अस्पताल का वातावरण देखकर चौंक गयी । चहुं ओर दृष्टि दौड़ाई तो आसपास उसकी पहचान वाला कोई नहीं दिखा। यहां पर कौन लाया ?कब लाया ? ये तो उसको कुछ भी याद नहीं आ रहा।बस!याद आ रही है तो अपने दिवंगत पति की।संकट के समय अपने ही तो याद आते हैं। साथ छूटे पूरे दो वर्ष हो गए हैं। सोचते सोचते वो अपने अतीत की गहराइयों में गोते लगाने लगी । कितना आत्मीयता भरा दाम्पत्य जीवन था उसका ।एक दूसरे के ऊपर विश्वास के साथ परस्पर रुचियों का ध्यान रखते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ रहे थे।कभी कभार वैचारिक मतभेद हो जाते थे। परस्पर नोंक झोंक भी होती थी,पर वो भी तो प्रेमाभिव्यक्ति का परिवर्तित रूप ही तो है ।समय आगे बढ़ा , हमलोग दो से तीन हो गये । बिटिया को संस्कारित और अनुशासित करने की नैतिक जिम्मेदारी बड़े उत्साह से निभाने लगे हमलोग।
हेमन्त ऋतु के जाते ही इठलाते मदमाते बसन्त ने जैसे ही धरा का श्रृंगार करना आरंभ किया वैसे ही सभी को आह्लादित करने वाले बसन्त का हमारे घर में आगमन हो गया। पुत्र के जन्म ने हमारे घर की खुशियां बढ़ा दीं।आठ साल की बिटिया तो पूरे घर में ये कह कहकर नाच रही थी कि अब हमारी सहेलियां हमको नहीं चिढाएंगी कि, ले ले ,तुम्हारा तो कोई भाई ही नहीं है।अब तो हम भी अपने भैया को रंग-बिरंगी राखी बांधेंगे । सास ससुर का तो कहना ही क्या ,वो लोग तो ये कहकर फूले नहीं समा रहे थे कि उनकी वंशबेल भी आगे बढ रही है। जन्मोत्सव कार्यक्रम में हमारी ननद रानी तो बड़े गाजे-बाजे के साथ बधावा लेकर आईं थीं। उनके बधाई नृत्य ने तो ऐसा समां बांधा कि अन्य रिश्तेदार भी अपने आप थिरकने से रोक नहीं पाए।

इतना ही नहीं उसी दिवस रात में सबके बीच में ढोलक लेकर बैठ गईं और ” जिए हजारों साल भाभी तेरो लालना” जैसे अनेकों सोहर भी गाए।इस तरह सबका उल्लास देखकर मुझे बाद में समझ में आया कि उन सभी के मन में प्रबल इच्छा रही होगी कि हम लोगों के यहां एक बेटे का भी जन्म हो जाए तो परिवार पूरा हो जाएगा।पर ::::पता नहीं क्यों कभी भी किसी ने अपनी इस इच्छा को वाणी का रूप नहीं दिया था।
बड़े होते हुए बेटे को सभी के लाड़-प्यार की अति ने सुसंस्कार और अनुशासन से कोसों दूर कर दिया था।उसकी छोटी-छोटी इच्छाएं हठ में बदलती जा रही थीं। मुट्ठी से फिसलती हुई बालू के समान बेटा हम लोगों से दूर ही होता चला गया। बस कॉलेज की फीस और जेबखर्च की मांग के अतिरिक्त किसी से कोई संवाद ही नहीं था। पश्चाताप में जीते जीते सास ससुर भी संसार छोड़ कर चले गए।
बिटिया के अनुरूप वर देखकर उसका विवाह कर दिया। इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद बेटे ने फिर हठ पकड़ ली कि अब हम आगे की पढ़ाई के साथ नौकरी भी विदेश में ही करेंगे।हमको भारत में नहीं रहना। अड़ियल बैल पर नकेल डालने के समान दुष्कर कार्य समझकर एक बार फिर हमलोग उसकी इच्छा पूरी करने के लिए बाध्य हो गये। सोचा ,चलो घर-द्वार सब तो है ही।पति को सेवानिवृत्ति के बाद जो धन राशि मिली है उसे ही देकर बेटे को विदेश भेज देते हैं।घर से बाहर रहेगा तो शायद सुधर जाएगा।पर , धीरे-धीरे ये समझ में आने लगा था कि विदेशी भौतिक चमक-दमक के सामने देश, समाज , प्रने पर समझ आ जाएगी।पर ,ये क्या ? मोबाइल पर सूचना मिल गई कि उसने वहीं की निवासी लड़की से विवाह कर लिया है।

हम लोगों का निराश हताश मन अब धार्मिक प्रवचनों की ओर खिंच गया।इसी बीच एक काली रात जीवनसाथी को अपने साथ ले गयी। अंतिम संस्कार दामाद ने किया ,क्योंकि बेटे ने फोन पर कह दिया कि अब डेड बॉडी देखने के लिए आने से क्या फायदा ?
किसी भी स्त्री के लिए पति का साथ छूटना और पुत्र के द्वारा उपेक्षा करना, इससे बड़ा दुख क्या हो सकता है।ये विडम्बना ही तो है कि ईश्वर ने नारी के कोमल शरीर में सहनशीलता के आवरण वाला कठोर मन भी दे दिया है।इधर दो तीन वर्षों से घुटनों के दर्द ने स्वास्थ्य पर अपना दुष्प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया था।पता नहीं क्यों , फिर मन नहीं माना और बेटे को फोन पर बताया कि बेटा-अब स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है।एक बार आ जाओ ,देखने का बड़ा मन है। हां हूं तो कर दिया पर आया नहीं। गिरते स्वास्थ्य को देखकर दामाद ने बड़ा आग्रह किया था कि अब आप हम लोगों के साथ रहिए। पर ये अभागा मन दामाद के घर रहने की अनुमति नहीं दे रहा था।इतने में बिटिया की हथेली का स्पर्श वर्तमान में ले आया। आंखों की गीली कोर देखकर उसकी हिदायत सुनाई दी -फिर बसन्त की याद में दुखी होने लगीं।

हमलोग तो हैं ना।पूछोगी नहीं यहां कैसे आ गयीं। लगता है हमारे मुख पर विश्वास भरी मुस्कान देखकर ही बिटिया ने बताना शुरू किया -जब काम वाली बाई आई तो उसने आपको बाथरूम में बेहोश पड़े देखा। घबराकर उसने हमको फोन पर सूचना दी।तब हमलोगों ने आपको लाकर अस्पताल में भर्ती कराया है।चोट लगने से बहुत खून बह गया था। इसलिए खून भी चढ़वा दिया है। डॉ का कहना है कि घाव भरने में थोड़ा समय लगेगा पर चिंता की कोई बात नहीं है।जैसे ही यहां से छुट्टी होगी अब आप हमलोगों के साथ ही रहेंगी। भूल जाओ कि बेटी दामाद के यहां कैसे रहेंगे?बेटी दामाद के हाथ को मजबूती से पकड़कर मैंने स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया। खुशी से चहकती हुई बिटिया ने कहा,मालुम मम्मी अपने घर के सामने वाला आम का पेड़ इस समय मंजरियों से लद गया है ।आप देखेंगी तो खुश हो जाएंगी।मेरी भावनाओं ने भी एकाएक शब्दों का रूप ले लिया कि हां बेटा सच में आज मेरा बसन्त आ गया है ।

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