कमलेश द्विवेदी काव्य प्रतियोगिता -01
मेरा मन उतना चंचल है।।
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर से,
गाया करती मधुरिम स्वर से,
झरने जो झरते झर-झर से,
धारा करती ज्यों कल-कल है।
मेरा मन उतना चंचल है।।
वनराजा का सुनकर जब स्वर,
मृग को जब भर जाता है डर,
और काँपने लगता थर–थर,
उसका वह जो विस्मित पल है।
मेरा मन उतना चंचल है।।
तेज हवा जब चलने लगती,
तरु की पत्ती हिलने लगती,
ज़ुल्फ़ प्रिया की खुलने लगती,
लहराता उसका आँचल है।
मेरा मन उतना चंचल है।।
गौ माता जब ब्याई जाती,
बछिया अपना देख रँभाती,
सुन जिसको बछिया इठलाती,
करती ज्यों वह कूद – उछल है।
मेरा मन उतना चंचल है।।
भाऊराव महंत
ग्राम बटरमारा, पोस्ट खारा
जिला बालाघाट, मध्यप्रदेश
पिन – 481226
मो. 9407307482
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