पर्यावरण पर संस्‍मरण-सीमा सिन्‍हा

पर्यावरण पर संस्‍मरण-सीमा सिन्‍हा

इस वर्ष की गर्मी ने मेरे जीवन में एक विशेष स्थान बना लिया है। बचपन में गर्मी का मौसम अक्सर छुट्टियों और मौज-मस्ती का समय होता था। आइसक्रीम, आम के फल, और दादी के हाथ की बनी ठंडी खीर, ये सब चीजें गर्मी के दिनों को खुशनुमा बनाती थीं। परन्तु इस वर्ष की गर्मी ने कुछ अलग ही अनुभव कराए।जब गर्मियों का मौसम शुरू हुआ, तो शुरू में कुछ विशेष नहीं लगा। लेकिन जैसे-जैसे तापमान बढ़ता गया, गर्मी ने अपने विकराल रूप में आना शुरू कर दिया। इस भीषण गर्मी में अपने घर को ठंडा रखने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ी। एसी और पंखों के बावजूद भी कभी-कभी ऐसा लगता था कि गर्मी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।

मैंने इस दौरान कुछ विशेष उपाय किए ताकि इस गर्मी से राहत पाई जा सके। सबसे पहले, मैंने अपने घर के सभी खिड़कियों पर गाढ़े पर्दे लगा दिए ताकि धूप अंदर न आ सके। इसके अलावा, मैं दिन में जितना हो सके उतना जल पीने की कोशिश करती हूँ। नींबू पानी, छाछ, और नारियल पानी मेरे सबसे अच्छे साथी बन गए हैं।गर्मी के इस दौर में एक और दिलचस्प घटना घटी। एक दिन, बिजली चली गई और एसी व पंखे बंद हो गए। उस समय मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गए जब हम लोग गर्मियों की रातों में छत पर सोया करते थे। मैंने उसी अनुभव को फिर से जीने का फैसला किया। सभी बच्चे छत पर जाकर पहले ठंढे-ठंढे पानी से नहाने लगे और उसी पानी से पुरे छत की धुलाई हुई। उसके बाद छत पर ही बिस्तर लगाया गया। ठंडी हवा का आनंद लेते हुए और तारों को निहारते हुए सभी सो गए । यह अनुभव बेहद सुकूनदायक था और मुझे एक बार फिर से प्रकृति के करीब महसूस हुआ।

पर्यावरण की बात करें तो इस भीषण गर्मी ने यह एहसास दिलाया कि हम किस तरह से प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। पेड़ों की कटाई, बढ़ता हुआ प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग इसके प्रमुख कारण हैं।मुझे याद आता है कि मेरे दादा-दादी जब गर्मियों की बात करते थे, तो वह इतनी भीषण नहीं होती थी। शायद इसलिए कि तब पेड़ों की भरमार थी और पर्यावरण इतना दूषित नहीं था। यही सोंचकर मेरे मन में एक चाहत उमड़ आई कि क्यों न हम सब मिलकर पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए कुछ करें।
अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, पानी की बर्बादी को रोकें और प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें। अगर हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो शायद आने वाली पीढ़ियों को इतनी भीषण गर्मी का सामना न करना पड़े।इस गर्मी के अनुभव ने मुझे सिखाया कि प्रकृति से जुड़ना कितना महत्वपूर्ण है और हमें उसे बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। जब भी मैं इस वर्ष की गर्मी को याद करूंगी, यह मुझे पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाएगी और एक नई उम्मीद की किरण जगाएगी कि हम सब मिलकर एक बेहतर भविष्य बना सकते हैं।

       सीमा सिन्हा
          पटना
 

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