फिल्में मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं, जो समाज में विचारों और संस्कृति को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। लेकिन जहाँ एक ओर फिल्मों का सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, वहीं दूसरी ओर कई बार फिल्मों का युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव भी देखा गया है। विशेष रूप से जब फिल्में गलत संदेश देती हैं या हिंसा, असंवेदनशीलता, और अव्यवस्थित जीवन शैली को बढ़ावा देती हैं, तो इसका असर युवाओं की सोच और व्यवहार पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है।
हिंसा और आक्रामकता को बढ़ावा
कई फिल्मों में हिंसा का प्रमुख स्थान होता है, और यह दृश्य अक्सर युवाओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं। एक्शन फिल्मों में अपराध, हिंसा, और लड़ाई-झगड़े को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, जो युवा दर्शकों में आक्रामकता की भावना को प्रोत्साहित कर सकता है। लंबे समय तक ऐसी फिल्में देखने से युवा हिंसा को सामान्य मानने लगते हैं, और इससे उनका व्यवहार हिंसक हो सकता है।
असामाजिक व्यवहार का महिमामंडन
कुछ फिल्मों में अपराधियों, ड्रग्स डीलर्स, और गैंगस्टरों को नायक के रूप में दिखाया जाता है। वे जीवन में सफल होते दिखते हैं, और उनका जीवन शैली युवाओं के लिए आकर्षक हो सकती है। ऐसी फिल्मों में कानून को तोड़ना, नैतिकता का उल्लंघन करना, और अनुशासनहीनता को मज़ेदार या “कूल” के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि युवा समाज के नियमों और अनुशासन को महत्व देना बंद कर देते हैं और असामाजिक व्यवहार की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं।
नशे और अनैतिकता का प्रसार
आजकल कई फिल्मों में शराब, धूम्रपान, और ड्रग्स का खुलकर प्रदर्शन किया जाता है, और इसे एक सामान्य जीवन शैली के हिस्से के रूप में दिखाया जाता है। युवा दर्शक, खासकर जो इस तरह की गतिविधियों से पहले से परिचित नहीं होते, वे इनका अनुकरण करने लगते हैं। इसके अलावा, फिल्मों में अनैतिक संबंधों, बेवफाई, और अपरिपक्वता को ग्लैमराइज किया जाता है, जिससे युवाओं में इन गतिविधियों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
अवास्तविक जीवन की उम्मीदें
कई फिल्मों में नायक और नायिकाओं का जीवन बेहद ग्लैमरस, आसान और अवास्तविक रूप से परिपूर्ण दिखाया जाता है। फिल्में अक्सर इस तरह के सपने और उम्मीदें प्रस्तुत करती हैं जो वास्तविक जीवन में हासिल करना मुश्किल होता है। इससे युवाओं में अवास्तविक जीवन की आकांक्षाएं पनपने लगती हैं, और जब वे इन्हें वास्तविकता में हासिल नहीं कर पाते, तो वे असंतुष्ट और निराश हो जाते हैं।
महिलाओं का वस्तुकरण
फिल्मों में महिलाओं का वस्तुकरण भी एक प्रमुख समस्या है। आइटम गीतों और ग्लैमरस दृश्यों में महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे युवाओं के मन में महिलाओं के प्रति गलत धारणाएं विकसित हो सकती हैं। यह महिला के प्रति आदर और सम्मान में कमी ला सकता है और समाज में लैंगिक असमानता को बढ़ावा दे सकता है।
शारीरिक छवि के प्रति दबाव
फिल्मों में अक्सर अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की शारीरिक सुंदरता को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। यह युवा दर्शकों के मन में अपनी शारीरिक छवि को लेकर असुरक्षा और असंतोष उत्पन्न कर सकता है। फिल्मों में दिखाए गए “परफेक्ट” शरीर और सुंदरता के मानक युवाओं पर अनावश्यक दबाव डालते हैं, जिससे मानसिक तनाव और आत्मसम्मान की कमी हो सकती है।
संवेदनशील मुद्दों की गलत प्रस्तुति
फिल्मों में कई बार गंभीर और संवेदनशील मुद्दों, जैसे मानसिक स्वास्थ्य, लैंगिक असमानता, या सामाजिक समस्याओं को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जाता। इससे युवाओं में इन मुद्दों के प्रति गलतफहमी और गलत धारणाएं उत्पन्न हो सकती हैं। इससे सामाजिक जागरूकता की कमी और जटिल समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता भी बढ़ सकती है।
फिल्में युवाओं की सोच और व्यक्तित्व को बहुत हद तक प्रभावित करती हैं। जबकि फिल्मों का मनोरंजन और शिक्षा में योगदान हो सकता है, उनका नकारात्मक प्रभाव भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसलिए यह ज़रूरी है कि युवा दर्शक फिल्मों को केवल मनोरंजन के रूप में देखें और उनके दिखाए गए दृश्यों और संदेशों का विवेकपूर्ण मूल्यांकन करें। इसके साथ ही, अभिभावकों, शिक्षकों एवम चुनी हुई सरकारों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे युवाओं को सही दिशा में मार्गदर्शन दें, ताकि वे फिल्मों के नकारात्मक प्रभाव से बच सकें।
संजय सिंह चौहान
उप निरीक्षक,
डी 5, मन्दाकिनी ब्लॉक, प्रथम वाहिनी
विसबल, इंदौर
मध्य प्रदेश।
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