साहित्य सरोज कहानी प्रतियोगिता 2025, कहानी पर कमेंट जरूर देंं।
उमंग मुंबई निवासी हैं, एक स्थापित लेखक, लेखन की दुनिया का एक बड़ा नाम। साहित्यिक पत्रिकाओं से लेकर अखबारों के साहित्यिक परिशिष्ट तक उनके नाम से अड़े रहते हैं। अर्चना ने साहित्य में अभी-अभी पदार्पण किया है। गुड़गांव की इस नवोदित लेखिका की नजर सोशल साइट्स पर लेखकों को खोजती रहती है। सीखने की ललक और बड़े नामों का मोह उसकी कमजोरी भी है, उसकी मजबूती भी।अर्चना की मित्रता उमंग से एक सोशल साइट पर हुई, चूँकि उमंग काफी दिनों से लिख रहे थे, उनकी कई पुस्तकें भी बाजार में आ चुकी थीं, इसलिए उसका प्रभावित होना स्वाभाविक भी था। अर्चना को उमंग का लेखन बहुत पसंद था, वह उनकी रचनाओं को पढती तो लाइक व कमेंट भी करती। कभी कुछ पूछना होता तो इनबॉक्स में भी बात कर लिया करती।उमंग उसे अक्सर अर्चि कहता, और एक अनुभवी शिक्षक की भाँति बड़े स्नेह से समझा भी देता। इनबॉक्स में बात करने का सिलसिला चला तो दोनो को पता ही नहीं चला कि कब वे इतने करीब आ गये कि एक दिन भी बात न हो तो दोनों को ही कुछ खोया खोया से लगता।दोनो का ही अपना-अपना परिवार था, एक जमी-जमाई गृहस्थी। हाँ, उन्होंने बातचीत में कभी कोई मर्यादा नहीं लाँघी, कुछ ऐसा एक-दूसरे को नहीं कहा जिसे मर्यादा विरुद्ध कहा जा सके।
दोनों ही में एक समानता जरुर थी, उमंग अपनी पत्नी के कर्कश स्वभाव से परेशान था, तो अर्चना अपने पति की व्यस्तता के चलते। इसी कारण शायद दोनो में घनिष्ठ मित्रता हो गयी। मनोविज्ञान भी कहता है कि विपरीतलिंगी आकर्षण अधिक तेजी से होता है अगर कहीं वैवाहिक-वैचारिक असामनता हो, जैसा अधिकांश विपरीत जेंडर में होता है, वे दोनों भी इससे अछूते न थे। दोनो एक-दूसरे में अपने जीवनसाथी द्वारा न मिलने वाली खुशियों का स्रोत खोज रहे थे। मित्रता परवान चढ़ी तो उन्होंने ने ही मिलने की मंशा जाहिर की। अर्चना तो बड़ी शिद्दत से अपने प्रिय लेखक से रूबरू होना चाहती थी।उमंग ने जब बताया कि इन्दोर में एक बड़ा कार्यक्रम है और उसे बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया है तो अर्चना की ख़ुशी का ठिकाना न रहा, उसने मन ही मन सोचा- वह इस कार्यक्रम में जरुर जाएगी और अपने प्रिय लेखक से मिलेगी।
जल्दी ही दोनो को मिलने का मौका मिला। चूँकि कार्यक्रम वृहद स्तर पर था तो सारी व्यवस्था बहुत अच्छी थी। दोनो ने एक-दूसरे को पहली बार देखा। अर्चना ने भी उस कार्यक्रम में कविता पढ़ी यह पहली बार था जब किसी बड़े मंच से उसने काव्य पाठ किया। इसका श्रेय भी उमंग साहब को ही जाता था। प्रोग्राम खत्म हुआ, और अर्चना के वापिसी की ट्रेन लेट होने के चलते ग्यारह बजे थी, लगभग आठ घन्टे का समय उसके पास था।दोनो ही कुछ समय साथ बिताने चाहते थे, उमंग उसे लेकर एक होटल गया , जोकि पूर्वनिर्धारित था। उनके पास भरपूर समय था, और मन में हसरते भी, दोनो ही चाहते थे कि अपनी-अपनी हसरतें कम से कम एक बार पूरी कर लें। उमंग जहाँ अर्चि की मीठी-मीठी बातें सुनना चाहता था, उसकी गोद में सिर रखकर कुछ देर आँखे मूँदकर सोना चाहता था, उसके नाजुक हाथों का स्पर्श अपने बालों में महसूस करना चाहता था, उसके नाभि स्थल के इर्द-गिर्द चूमना चाहता था वहीं अर्चि को चाहती थी- माथे पर, पलकों पर, गले पर, ब्लाउज के बाद खुली बची हुई पीठ पर किसी के होठों की गर्माहट। और सीने पर सिर रखकर चुपचाप आँखे बन्द करके पड़े रहना।
अर्चना को महसूस हुआ उसका हर एक अरमान जो उसे पति से पूरा होता दिखाई नहीं दिया, वह बस एक पल दूर सब उपलब्ध होगा। उसे दरकार थी किसी के साथ बैठकर कॉफी सिप करने की, जिसे वह पति के साथ पूरा होने से वंचित रही। वह चाहती थी- किचन में काम के बीच, कमर में एक अदद बाहों का घेरा हो, और कोई उसके आस-पास अपनी उपस्थिति से उसे रोमांचित करे।सब तो नहीं पर, कुछ हसरतें आज पूरी होने वाली थी दोनो की।उमंग ने कॉफी ऑर्डर की और सी-व्यू बालकनी में आकर बैठ गया। अर्चि भी साथ वाली कुर्सी पर बैठ गयी, कॉफी पीते समय जाने अर्चि के अन्दर से वो रोमांच कही गायब था। वह सोच रही थी, “वो फीलिंग क्यों नहीं आ रही जिसकी कल्पना वो ख्वाबों में किया करती थी”, जबकि सब वैसा ही तो था जैसा उसने सोच रखा था।
होटल आते हुए वह सोच रही थी कि कितना कम समय है उसके पास अपने अरमान पूरे होते हुए देखने का, अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ बिताने का? पता नहीं क्यों अब ऐसे लग रहा था कि घड़ी के कांटे जैसे खिसकना ही भूल गये।कॉफ़ी खत्म कर दोनों रूम में आ गए। अर्चि वाशरूम गयी- हाथ- मुँह धोने वापिस रूम इमं आकर आईना में खुद को देख बाल सवाँरने लगी। उमंग ने पीछे से आकर कमर में बहुप्रतीक्षित बाहों का घेरा बनाया और अपनी ठोड़ी उसके कंधे पर रख दी।अर्चना ने आँखे मूँद ली। लेकिन आह्लाद से नहीं… बल्कि ग्लानि से। वो आईने में दिख रहे अपने बिंब से आँखे नहीं मिला पा रही थी। तभी उसने महसूस किया कमर में बाहों का घेरा और कस गया और गर्दन पर होठों का स्पर्श ऐसा लगा जैसे सेकड़ों कीड़े एक साथ रेंग रहे हैं। जिस रोमाँच को उसने अपने अंदर महसूस करने की कल्पना की, और सोचा था- ये सब कितना रोमाँचक होता होगा, पर उसे अब बहुत लिजलिजा सा अहसास हुआ। उसे उबकाई जैसा फील हुआ, वह दौड़कर बाथरूम गयी, उमंग भी पीछे दौड़ा था-शायद सहारा देने के लिये, पर अर्चना ने दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया।वह जार-जार रोने लगी। शायद उमंग को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था, एक ग्लानि की रेखाएं उसके चेहरे पर भी उभर आई थी।
थोड़ी देर बाद वाशरूम का दरवाजा खुला, अर्चना बाहर आई, आते ही समान बैग में रखना शुरु कर दिया। उमंग सोफे पर बैठा था। उसने अर्चि को सामान रखने से रोका नहीं, बस इतना कहा, “अभी ट्रेन में काफी समय है।””जी, पर ट्रैफिक का भी तो भरोसा नहीं है न।”- उमंग ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।दोनो ने महसूस किया- उनके अरमानों का ज्वार, बिना चरम तक पहुँचे शान्त हो चुका था। अर्चि ने ट्रोली बैग का हैंडल हाथ में पकड़ते हुए कहा-“स्टेशन चलें?”उमंग के चेहरे पर एक मीठी मुस्कान थी। दोनों गाड़ी से स्टेशन के लिए चल पड़े। उमंग ड्राइविंग सीट पर था, जबकि अर्चना पीछे की सीट पर। रास्ते भर दोनों के बीच अबोला रहा। स्टेशन पहुँच वे दोनों निर्धारित प्लेटफॉर्म पहुँचे, बातचीत अभी भी न के बराबर थी, दोनों एक दूसरे को अपलक देख रहे थे। गाड़ी खुली तो टी सीट पर सामान रखवा उमंग गाड़ी से नीचे उतरने लगा तो देखा- अर्चना समाने खड़ी थी। उसने बाहें फैलाई तो उमंग ने उसे सीने से लगा लिया। इस मिलन में होटल के मिलन जैसी चाह न थी, एक स्नेह था, एक विश्वास था, दोनों एक-दूसरे को लेकर आश्वस्त थे। उंमग गाड़ी से उतर प्लेटफॉर्म की भीड़ में खो गया, अर्चना उसे जाते हुए अपलक देखती रही।
पूजा अग्निहोत्री
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