प्रकृति से नाता जोड़ो

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष
किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’, बुंदेलखंड से

विज्ञान जिस धरती को केवल एक ग्रह मानता है, वही हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा में “धरती माता” के रूप में पूज्य है। हम हिंदू धर्मावलंबी विभिन्न पर्वों और शुभ अवसरों पर धरती माँ की पूजा-अर्चना करते हैं और संपूर्ण प्राणी-जगत की रक्षा, पोषण और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। धरती माँ का सच्चा स्वरूप प्रकृति है — जो लोककल्याणकारी है। हमारे धर्मशास्त्रों में प्रकृति के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए कहा गया है — “प्रकृतिः सर्वभूतानां जीवन हेतुः साम्प्रतम्”। अर्थात, प्रकृति सभी प्राणियों के जीवन का कारण है, जो इस जगत में सर्वत्र व्याप्त है। शक्ति के रूप में प्रकृति का सम्मान करते हुए शास्त्रों में कहा गया है — “या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”

पिछली सदी में जब पश्चिमी दुनिया (यूरोप-अमेरिका) में वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण की लहर चली — जिसे एल.पी.जी. (LPG) के नाम से जाना जाता है — तब पूरी दुनिया में प्रकृति का दोहन शुरू हो गया। जंगलों की अंधाधुंध कटाई की गई, खनन और उद्योगों के नाम पर वनस्पतियों और वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास छीन लिया गया। मोर, गौरैया, गिद्ध जैसे पक्षी और बाघ, चीता जैसे वन्य जीव विस्थापित हुए। साथ ही जल-जंगल-जमीन से आदिवासी समाज को भी बेदखल कर दिया गया। जबकि आदिवासी और किसान ही प्रकृति के सच्चे आराधक और उपासक हैं।

प्रकृति को ही पर्यावरण भी कहा जाता है। जब जल, वायु, जीव-जंतु, वनस्पति आदि में हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, तब पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति बनती है। इस वर्ष 5 जून को मनाया जा रहा विश्व पर्यावरण दिवस “प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करो” थीम पर केंद्रित है। प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो सैकड़ों वर्षों तक नष्ट नहीं होता। यह मिट्टी की जल सोखने की क्षमता को खत्म कर देता है और समुद्र में जाकर जलीय जीवन के लिए घातक बनता है।

झाँसी शहर में 22 अप्रैल 2025, पृथ्वी दिवस के दिन 46 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया — जो ग्लोबल वार्मिंग की भयावह स्थिति को दर्शाता है। वनों की कटाई, औद्योगिकीकरण, और ओज़ोन परत का क्षरण इस संकट के मूल कारण हैं। ओज़ोन परत, जो सूर्य की हानिकारक किरणों से हमारी रक्षा करती है, अब ए.सी. और फ्रिज से निकलने वाली CFC गैसों के कारण छिन्न-भिन्न हो रही है, जिससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा असंतुलित हो गई है।

ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण पाने के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण आवश्यक है। जंगलों को विकास के नाम पर काटे जाने से रोकना होगा। स्वीडन की युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध विश्वव्यापी आंदोलन शुरू किया है, जिससे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।

अगर हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण चाहिए, तो हमें प्रकृति से फिर से अपना नाता जोड़ना होगा। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापन, प्लास्टिक प्रदूषण और पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिए हमें सजग, जागरूक और सचेत रहना होगा। हमारी भारतीय परंपरा में कहा गया है — “अस्मिन् काले वयं पृथिव्याः रक्षां करिष्यामः”, अर्थात् इस समय हम पृथ्वी की रक्षा करेंगे
किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’
(बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता)
जरबौ गॉंव, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड
मो० : 9569911051
ईमेल : kushraazjhansi@gmail.com
ब्लॉग – कुसराज की आबाज

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