प्रतिभा जोशी की कहानी सर्द बैठक

साहित्‍य सरोज कहानी प्रतियोगिता 2025, कहानी पर कमेंट जरूर देंं।
“सुनिएजी, टिफिन में  एक सर्दी का लड्डू भी रख दूँ?”, कृष्णा अपने पति के ऑफिस के टिफिन में उसकी पसंद जान खाना रखती हुई हँस दी। “अरे, यह भी कोई पूछने की बात है। सर्दी के लड्डू सर्दी में नहीं तो गर्मियों में खाएंगे ?”, और मयंक तैयार हो मुस्कुराते हुए टिफिन लेकर ऑफिस के लिए चल दिया। सुबह का काम निपटाते हुए दोपहर आ गई और कृष्णा बच्चों के स्कूल से आने की प्रतीक्षा करने लगी। बच्चों के आने पर उन्हें भी गर्म खाना खिलाने की एक जिम्मेदार गृहिणी की भूमिका निभा कृष्णा दो तीन दिनों से बिना पढ़े अखबार लेकर पढ़ने बैठी। अखबार के पन्ने पलटते हुए कृष्णा की नजर तीये के बैठक की आई खबरों पर भी गई।“अरे, यह तो मनोज है। हे राम, यह तो मुझसे दो साल छोटा था। ओह…” और कृष्णा की नजर अब अखबार में दिए बैठक के समय पर गई।“चार बजे से बैठक है। इन्हें फोन कर देती हूं कि मुझे अभी ही घर पर आ बैठक पर ले जाइए।”, और उसने मयंक को फोन किया।
“सुनो”
“बोलो”
“अरे, मनोज की मृत्यु हो गई है। आह, बचपन में हम सब मिलकर कितना खेलते थे। ओह, मनोज तो मुझसे छोटा था दो साल और … सुनिए, बैठक चार बजे से है।”, कृष्णा नम आंखें लिए एक सांस में सब बोल गई।
“सुनो, जाना जरूरी है क्या ? रविवार के दिन चल चलेंगे। तुम्हें पता है छुट्टी…” मयंक बुदबुदाया कि आस पास बैठा स्टॉफ सुन न लें।
“शादी में तो बड़े बनठन के गए थे इसकी, तब तो जाना जरूरी हो गया था आपका।” और मयंक आगे सफाई देने ही जा रहा था कि कृष्णा की जोरों की आवाज ऑफिस में साथ बैठे क्लर्क ने भी सुन ली और वह मुस्कुरा दिया।
“आता हूँ।”, और मयंक भुनभुनाते हुए बड़े साहब के कमरे में अपने लिए आधी छुट्टी की दरख्वास्त ले घर की और निकला। दोनों बैठक के लिए निकल चले कि कृष्णा को याद आया कि कितना स्मार्ट लगता था मनोज और इतनी छोटी उम्र में ही चल बसा जरूर खाने में बेपरवाह रहा होगा।
“सुनो जी”
“बोलो”
“अब आप सर्दी के लड्डू मत ही खाना।”, और वह मयंक के मोटे शरीर को देखने लगी।
“मुझे नजर लगा दोगी।”, और मयंक ने कार की स्पीड बढ़ा दी।
“अजी, एक बात कहूँ आप डांटेंगे तो नहीं।”,  अचानक कुछ सोचते हुए धीमी आवाज में बोली।
“बोलो, कुछ नुकसान हो गया होगा तभी धीरे बोल रही हो ?”, कार के स्टीयरिंग घुमाते हुए मयंक हँस दिया।
“आपके घर में कितना काम रहता है कि अखबार पढ़ने का समय तक नहीं मिलता। दो दिन के अखबार लेकर बैठी थी पढ़ने और तीये की बैठक पर नजर गई लेकिन बैठक अब आज है या कल होगी यह पता नहीं।”, कृष्णा के यह बोलते ही मयंक ने कार में जोर से ब्रेक लगा दिया।
“ओह, तुम्हें पता है मैं ऑफिस में कितना काम छोड़कर आया हूँ ?”, मयंक कृष्णा को घूरने लगा तो कृष्णा ने भी आंखें बड़ी कर जवाब दिया, “मैं भी शाम के सभी काम छोड़कर आई हूं। उफ्फ, यह सर्दियों में पत्तोंवाली सब्जियों के पत्ते तोड़ते हुए मेरे हाथ ठंडे हो गए। अब निकले हैं तो चलो चलते ही हैं क्योंकि बैठक तो घर के पास सरकारी बगीचे में ही है वहाँ न सही घर पर मिलकर आ जायेंगे।”
दोनों कुछ कुछ बड़बड़ाते हुए वहाँ पहुंचे और सदनसीबी रहीं कि बैठक आज ही थी और सरकारी बगीचे का एक कौना स्वेटरों और शॉल ओढ़े लोगों से भरा दिखा।
“जवान मौत पर भी फैशन से बाज नहीं आती औरतें। देखो, आज कल का फैशन यहां भी देखा जा सकता है।”, कृष्णा बोल रही थी कि उसकी नजरें बैठक के उस कौने को छोड़ बगीचे में घूम घास खा रही गायों और मोहल्ले के कुत्तों पर पड़ी।
“बैठक यहाँ रखते समय इनका भी ध्यान रखना चाहिए।” एक सवाल कृष्णा के मन में उठा।
कृष्णा महिलाओं के बीच और मयंक पुरुषों संग बैठ गया। इस सर्दी में भी ग़मज़दा माहौल ने गर्मी भर दीं। सभी की आँखें नम थीं कि यहाँ भागती हुई गायों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने कोशिश कीं। उन्हें यूँ भागते आता देख सभी बैठे हुए खड़े हो गए और गायों की हलचल ने यहाँ भगदड़ मचा दी।
अब सरकारी बगीचे की जिम्मेदारी सरकार की होती है यह सरकार को समझना ही चाहिए। यहाँ ऊपर से सरकारी बगीचे में मुख्य गेट एक ही बड़ा रखा गया बाकी तीनों बाउंड्री पर एक एक व्यक्ति जा सके ऐसे रिवोल्विंग गेट बनाये हुए थे। अब रिवोल्विंग गेट से बच्चे तो मस्ती कर निकल जाते हैं और बुजुर्ग बुढ़ापे की मार से गुजर जाते हैं लेकिन ये उम्र का यह मध्य हमेशा मध्य ही रह जाता है लेकिन उसकी तोंद बचपन और बुढ़ापे से बाजी जीत जाती है। यहाँ यह जीती हुई तोंद रिवोल्विंग गेट में अटकती जरूर है और यहीं गेट उसे हरा जाता है। जवान बेटे की मौत से माँ के हृदयविदारक रुदन से गमगीन आँसुओं संग हुई बैठक बर्खास्तगी और शॉर्टकट के लिए यह रिवोल्विंग गेट के आगे खड़े लोगों का इंतजार आज सबके दिन को ताउम्र के लिए यादगार बनाता चला गया।
कृष्णा दुखी मन लिए मनोज की मां और पत्नी को दिलासा देती हुई बाहर आई और दूर खड़े मयंक को देखने लगी।
मयंक कार लिए उसके पास आया और बड़ा बोझिल दिल लिए दोनों लौट रहें थे कि मयंक बोला, “पेट दबा दबा कर बाहर निकला हूँ अब तो नहाने के बाद सबसे पहले लड्डू।”
बचपन में साथ खेले और अब बैठक में लगी माला चढ़ी मनोज की फ़ोटो से दुखी मन लिए निकली कृष्णा के चेहरे पर मयंक की बात सुन मुस्कुराहट आ गई।
“कल से लड्डू बंद आपके। मैंने देखी आपकी जंग उस रिवोल्विंग गेट के साथ। आज तो सबकी वजह से गेट की घिसाई हो गई।” और कार ने घर की ओर रुख किया। यहाँ लोगों के जाने से इस सर्द  बैठक का समापन हुआ और समय सरकते हुए बगीचे की घास और बिखरी हुई गुलाब की पत्तियाँ ओस से नहाती हुई चली गईं।

प्रतिभा जोशी
30 -A, परिवहन नगर,
बालूपुरा रोड़, अजमेर
मोबाइल :- 9460241859

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