राम जी की फोटो-महेश शर्मा

दरअसल गलती मेरी ही थी । यदि उस दिन मेले में जाकर माँ के लिये रामजी का फोटु पसन्द करके मैं ना लाता तो घर में इतना बखेडा ही ना होता |रामजी के फोटो को लेकर घर में घमासान मचा हुआ था | माँ और छोटा बन्टी एक तरफ थे , तो बिन्नी और उसकी मम्मी यानी श्रीमती एक तरफ । और मैँ ? मै किधर था ? माँकी तरफ ? बेटी की तरफ या श्रीमती की तरफ ? मैँ तो सब तरफ था , हर तरफ था । यद्यपि मैँ कोई देवता नही था ,जो हर तरफ हो सब की तरफ हो । लैकिन मैँ अकेला कहाँ था मैँ बेटा भी था , मैँ बाप भी था और मैँ पति भी था । अब यदि इन सारे स्वरूपों में ही युद्ध होने लग जाये तो बैचारा मैँ कहाँ जाये ? खैर बात विस्तार से बताना होगी तभी आपको भी समझ में आयेगी । होता युँ है कि गाँव से माँ आई हुई है महीने दो महीने साथ रहने के लिये । नयी बात नहीं है साल में दो तीन बार आती है | मेरे यहाँ रहना उसे अच्छा लगता है | पत्नी को भी कोई परेशानी नहीं
होती । सास बहु दोनो में अच्छा सामंजस्य है , और बच्चे तो दादी के प्रति बहुत स्नेह भी रखते हें , और उसे ज्यादा से ज्यादा अपने साथ रखना चाहते हैं | क्योंकि मैँ तो व्यस्त रहता हूँ आफिस कार्य में और वाइफ व्यस्त रहती है घरेलु काम में । अब इनका दिन भर का साथ देने वाली तो दादी ही थी , तो बडा बेटा गोलु , बिन्नी और छोटा बन्टी तीनों दादी से प्यार भी करते थे और उसका साथ भी पसन्द करते थे । लैकिन यहाँ एक पेंच अक्सर फँस जाता था | बिन्नी यानि मेरी दस साल की बेटी और माँ के बीच यानी दादी और पोती के बीच । वैसे ये आम घरों की कहानी है कि दादी पोती में प्यार भी बहुत होता है लैकिन बहस और जीद भी बहुत होती रहती है । मेरे यहाँ भी बिन्नी अपनी दादी से प्यार भी बहुत करती है उसका ध्यान भी बहुत रखती है लेकिन अपनी बात मनवाने या उपर रखने में कोई समझोता नहीं करती बल्की दादी से भी पुरी टक्कर लेती थी ।

अक्सर दादी पोती में बहस और विवाद होता रहता था | विवाद के कारण वही कुछ जो पीढ़ीयों के अंन्तर या विचारधारा का फर्क पुराने रहन सहन का ढँग और नयी पीढी की नफासत भरी लाइफ स्टाइल । माँ अपने सिरहाने प्लास्टीक के तीन चार छोटे छोटे डब्बे रखती थी जिनमे उसकी दवाई गोली ,खाने का कुछ आइटम बिस्कीट वगैरा रखती थी । बिन्नी इस बात की जीद करती कि ये डब्बे यहाँ अच्छे नहीं लगते इनको अन्दर रखो माँ नहीं मानती | माँ शाम पाँच बजे से कल सुबह पहनने के कपडे अपने सिरहाने रख लेती बिन्नी इस बात पर बहुत गुस्सा होती कहती दादी ने बैठक रूम की बारा बजा दी है । और माँ का कहना था कि “ ईमे कंई गलत हे ? “ बिन्नी के कपडे आजकल की फैशन के अनुसार थोडे शार्ट होते माँ कहती “ अच्छा नी लगे “। ऐसी कई छोटी छोटी बातें बहस का रूप ले लेती । और इन सब बहस का अन्त होता माँ के इस वाक्य पर कि “ वा म्हके कँई करनो जैसो तमारे अंच्छो लगे वैसो करो “। इतना कह कर माँ चुप होकर सो जाती । माँ को नाराज जान कर थोडी देर बाद खुद बिन्नी ही दादी के गले लग जाती उसे मना लेती और माँ नार्मल हो जाती । इसी तरह दिन भर में घर में कोई खास घटना होती ,रिश्तेदारों का कोई पत्र या जानकारी पता चलती तो शाम को जब मैँ आफिस से घर आता तब दादी और पोती मेँ इस बात की होड मचती कि सबसे पहले वो सारी बातें मुझे कौन बताये ।

मेरे घर में घुसते ही माँ शुरू करना चाहती तभी उसकी बात काट कर बिन्नी सुनाने लग जाती लैकिन माँ उसे तत्काल डाँटती “ चुप चुप रे तू म्हके बताने दे “ । दोनो में बहस छिड जाती ऐसी बहस का अन्त इस स्तर तक आ जाता कि बिन्नी जोर से कहती “ मेरे पापा हे मैँ बताउँगी उनको “। लैकिन माँ उससे ज्यादा जोर से चिल्लाकर कहती कि “ म्हारो भी छोरो है वो ,मैँ बतउँगा उके “। और मैँ किंकर्तव्यविमुढ सा दोनो के बीच खडा इस बालवृद्ध बहस का अन्त होने का इन्तजार करता । ऐसे में थर्ड पार्टी के रूप में श्रीमती का आगमन होता । कुछ बिन्नी को डांट कुछ माँ को उलाहना देकर दोनो योद्धाओं को अलग अलग कर देती और दोनो ही थोडा थोडा गुस्सा लिये चुप हो जाते | हालाँकि चलती बहस के दौरान ही दोनो जोर जोर से बोल बोल कर संबधित घटना का पुरा ब्योरा मुझे बता भी देते । ऐसी कई छोटी मोटी खट्टी मिठी बातें होती रहती । सभी घरों मे होती रहती है । लेकिन इन्ही के बीच मैं जिस समस्या मेँ उलझा वो बात आगे बढाते हैं । नगर में लगे मेले में हम पति पत्नी और बच्चे इन्जाय करने गये थे वहीं एक फोटो एवं पेंटिंग्स की दुकान पर मैँ ठिठक गया । वहाँ बहुत से धार्मिक फोटो के अलावा फिल्म स्टार के और पृाकृतिक दृष्यों के फोटो रखे थे । लैकिन मेरी नजर एक क्षण में ही सामने रखे एक बडे फोटो पर टिक गई जिसमें भगवान श्री राम सीता और लक्ष्मणका चित्र पूरे खडी मुद्रा में दर्शित था तथा उनके चरणों में हनुमान जी बैठे थे । फोटो बहुत सुन्दर पुरातन एवं प्रभावी था | फोटो की साइज भी काफी बडी थी . लगभग साढे तीन फुट उंचा और ढाई फुट चौड़ा था फोटो का चित्रांकन तुलसी की रामायण में वर्णीत प्राचीनशैली का होकर बडा मोहक और श्रद्धा जाग्रत करने वाला था ।

मुझे पता था माँ बहुत धार्मिक स्वभाव की है तथा श्रीराम उसके आराध्य हैं जिन्हे वो अन्य सभी भगवानों से ज्यादा स्मरण करती है । मेरे दिमाग में आया कि ये फोटो माँ को बहुत अच्छा लगेगा और पुजा घर की सुन्दरता में भी अभिवृद्धि होगी । मैंने श्रीमती को बताया वो भी सहमत थी । मोलभाव करके फोटो घर ले आये । फोटो घर ले जाते समय रास्ते में मै स्वयं को बहुत प्रफुल्लित महसुस कर रहा था माँ यह फोटो देख कर बहुत खुश होगी ये एहसास था । वैसे भी जीवन की वास्तविक खुशी का सार ही यह होता है कि हम किसी अपने प्रिय या अपने स्वजन के लिये कुछ करते हैं जिससे वो खुश होता हे तथा उसे खुश देखकर उसकी खुशी का कारण स्वयं को मानकर हम भी खुश होते है और खुद में ही कुछ बडप्पन महसुस करते हैं । घर पहूँचते पहूँचते रात के दस बज चुके थे । माँ लगभग सो चुकी थी मैं बैचेन था माँ को रामजी का फोटो बताने के लिये लैकिन मुझे रात को उसे उठा कर फोटो बताने के बजाय सुबह बताना ही ठीक लगा । माँ हमेशा हमारे बैठक रूम में रखी शैट्टी पर ही सोती थी । दो बेडरूम किचन डायनिंग और गेस्ट रूम यही कुछ था हमारे निजी मकान में । एक बेडरूम मेँ हम पति पत्नी दुंसरे में बच्चे और कोई
गेस्ट आये तो गेस्ट रूम में । मैने माँ से कहा कि वो गेस्टरूम में आराम से सोया करे , लैकिन माँ का कहना था कि अलग कमरे
में उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा । मैं तो आगे बैठक में ही सोउंगी और दिन भर बैठुंगी भी। मैने उसकी व्यवस्था बैठक रूम में ही रखी शैट्टी पर कर दी थी । अब वो रात में वहीं सोती और दिन में भी ज्यादातर समय वहीं गुजारती । हालाँकि कभी कभी मित्रों या अन्य मिलने वालों के आने पर वहीं बैठ कर बातें करना थोडा असहज सा लगता था लैकिन मैने इन स्थितियों को
स्वीकार कर लिया था । अगर किसी तरह की असहज स्थिति को बदल ना पाये तो उसे उसी रूप मैँ स्वीकार कर लेना चाहिये , फिर वही स्थिति सामान्य लगने लगती है ।
दुसरे दिन प्रातः उठते ही मैने राम जी का फोटो माँ को दिखाया फोटो देखते ही माँ गदगद हो गई अरे वाह बेटा कितना सुन्दर फोटो लाया है ,कितना भव्य और मोहक । तत्काल ही माँ ने फोटो में स्मित हास्य बिखेरते भारतीय जनमानस के ह्दय नायक श्रीराम लक्ष्मण सीता और उनके चरणों में बैठे हनुमान जी के आगे श्रद्धा से सिर झुका दिया । हम पति पत्नी बन्टी बिन्नी और गोलु बहुत अभिभुत थे माँ को इतना प्रसन्न और आल्हादित देख कर लैकिन इन आल्हादकारी क्षणों के तत्काल बाद आने वाली एक छोटी किन्तु गम्भीर समस्या का किसी को भान नहीं था । भींगी पलके और गहराती श्रद्धायुक्त आवाज में माँ बोली “ सुबह उठते ही ऐसे रामजी के फोटु का दर्शन रोज कर लो तो जीवन धन्य हो जाये सब पाप मिट जाये “ । हम सब ने बिना उनकी बात का आशय समझे सहमती में सर हिलाया । पत्नी किचन में जा चुकी थी बच्चे भी उनके कामों में व्यस्त हो गये थे । मैं माँ के पास ही बैठा था अचानक माँ बोली बेटा एक काम कर दे तु आज । क्या माँ ? मैने माँ की आँखो की ओर देखा । “ ये राम जी का फोटो तु लाया है ना इसको सामने दिवार पर लगा दे | ऐसा लगा कि मैँ सुबह उठूँ तो आँख खोलते ही राम जी के दर्शन हो । “ मैँ चौंका यहाँ ? ड्राइंग रूम में ? रामजी का फोटो ? “ माँ ये फोटो बहुत बडा है यहां अच्छा नहीं लगेगा ।“ “ क्यों अच्छा क्यों नहीं लगेगा ? भगवान का फोटो है इसमें अच्छा , नी अच्छा क्या ?” “ ठीक हे देखेंगे माँ “ मैने बात खत्म करने की गरज से कहा और जाना चाहा तभी माँ का स्वर फिर गूँजा “तो आज बाजार से बडी बिरंजी लेते आना और शाम को लगा देना फोटो “।

माँ की बात पुरी होते ना होते बिंन्नी बाहर आई “ क्या हुआ दादी ? बिरंजी किसलिये बुला रही हो “?“अरे ये रामजी का फोटो लगाना है यहाँ दिवार पर । अच्छा लगेगा ना बिन्नी ?”यहाँ दिवार पर ? ड्राइंग रूम में , रामजी का फोटो ? बिन्नी हँसने लगी माँ के चेहरे का रंग बदलने लगा ! “ क्यों हँसी क्यों ? ““ अरे दादी भगवान का इतना बडा फोटो कोई ड्राइंगरूम में लगाता है क्या “ ?
“ भगवान का नी लगाय तो किनका फोटु लगाय ? ये पहाड का जंगल का और नदी का फोटु लगाय और भगवान का फोटु लगाने में शरम आये वाह रे जमाना । “ मैने बातचित का रूख बदलने की कोशिश की | मैं जानता था कि कुछ ही मिनिटों में बात एक बहस का रूप ले लगी । लैकिन दोनो पुरी तैयारी से थे । बिन्नी बोली “ दादी आजकल भगवान का फोटो कोई नहीं लगाता ड्राइंग रूम में । यहाँ तो पेंटिग लगाते हैं नेचर के फोटो लगाते हैं भगवान के फोटो तो गाँव के लोग लगाते हैं “ । “ अरे वाह तु शहरवाली चुप रे तु । श्याम तु लगा तो फोटो आज ही लगा दिवार पे “ । “ नहीं पापा ये फोटो पुजाघर में लगेगा ड्राइंगरूम में नहीं । बिन्नी भी पुरे अधिकार से जोरों से बोली । मैँ दोनो की बहस सुनता अनिश्चय की स्थिति में खडा था । मैने तात्कालीन उपाय निकाला “ चलो शाम को देखते हैं | बिन्नी तुमको भी स्कुल जाना है ना चलो बात खत्म करो “ । यह कहते हुए मैँ रामजी का फोटो पुजाघर की दिवार के सहारे रखते हुए आफिस जाने की तैयारी करने लगा ।

मैँ अपनी तैयारी कर रहा था पर मेरे दिमाग में रामजी का फोटो और माँ और बिन्नी की बहस गुंज रही थी । माँ के तेवर देख कर लग रहा था कि वो शाम को फिर ये बात उठायेगी क्योंकि उसकी नजर मेँ इससे अच्छी कोई बात हो नहीं सकती । इतना अच्छा भगवान का फोटो ड्राइंगरूम में लगाने से क्या गलत हो जायेगा ? वैसे वो सही थी अपनी जगह । मुझे याद आया मेरे गाँव का मेरा पैत्रक मकान जिसके बैठक रूम की क्या हर कमरें की दिवारें भगवानों के फोटुओं से भरी रहती थी । रामजी , कृष्णजी , भोलेनाथ , दैवी जी हनुमान जी कौन से देवता बचते जिनका फोटो दिवार पर ना लगा होता । दिवारों के उपरी हिस्से में कोइ जगह बची रहती जहाँ कोई ना कोई भगवान का फोटो ना लगा रहता और सिर्फ मेरे घर की ही नहीं सभी के घरों की यही स्थिति होती थी । लैकिन ये भी सच था कि अब वर्तमान बदलते सामाजिक परिवेश मे ड्राईंगरूम से भगवान के फोटो गायब हो रहे थे | उनकी जगह प्राकृतिक दृष्यों के फोटो माडर्न आर्ट की पेंटिग या बच्चों की बनाइ कलाकृतियों ने ले ली थी । भगवान के फोटो अब सिमट कर पुजाघरों तक ही सीमित हो गये थे । हालांकि ये स्थिति शहरों की थी गांवो में अभी भी पुराना पैटर्न बचा था । और घर की दिवारों पर भगवान की तस्वीरों का कब्जा था । बिन्नी का कहना बिलकुल गलत नहीं था । साढेतीन बाइ ढाई की साइज का भगवान का फोटो ड्राइंगरूम में तो विचित्र ही लगेगा ।वैसे भी मैं जो फोटो लाया था राम जी की वो धार्मिक सौन्दर्य
बोध की द्रष्टी से अति उत्तम थी लेकिन वो कोई आधुनिक कलात्मकता को दर्शाते हुए नहीं बनी थी | मुझे लग रहा था की माँ को ही समझाना पडेगा । मैने आफिस जाते जाते ड्राइंगरूम की दिवारों पर नजर डाली । एक दिवार पर उँचे पहाड से गिरते झरने की बडी सी पैटिंग लगी थी दुसरी दिवार पर उपर की तरफ एक सुन्दर सी दिवालघडी लगी थी जिसके नीचे की तरफ चार तितलियों की एक एक के क्रम से चिपकी हुई प्रतिकृति लगी थी तिसरी दिवार पर बिन्नी की बनाई हुई एक गुडिया की कलाकृति ने जगह घेर रखी थी । रही चौथी दिवार तो उसे खिडकी और दरवाजे ने बाँट ली थी । अब रामजी के इतने बडे फोटो को कहाँ जगह दि जाये ? वैसे कर्मयोगी श्रीकृष्णका एक छोटा सा फोटो दिवालघडी के नीचे शोभा पा रहा था लैकिन रामजी के इस विशाल फोटो के लिये जगह निकाल पाना मुश्किल ही लग रहा था । समस्या का फिलहाल तो कोई हल नहीं दिख रहा था मैने ज्यादा चिन्ता तो नहीं की शाम तक संभव था कि दोनो ही इस बात को भुल जायें और बात खत्म । आफिस से लौटते हुए मेरे दिमाग में फिर रामजी का फोटो आ चुका था । सुबह उठा मुद्दा अब तक खतम हो चुका होगा ऐसा मेरा विचार था लैकिन घर में घुसते ही घर में फैला सन्नाटा मुझे कुछ संशयपूर्ण लगने लगा | वही हुआ , घर में घुसते ही माँ का पहला प्रश्न था बिरंजी लाया बेटा फोटो लगाने की ? मैने कहा हाँ माँ देखते हैं अभी । और मेने बेडरूम में प्रवेश किया मेरी नजरे बिन्नी को खोज रही थी
। बिन्नी मुँह फुलाये बिस्तर पर पडी थी | क्या हुआ भई बिन्नी को ? मैने श्रीमती से पुछा । क्या क्या हुआ , दिन भर दोनो दादी पोती में बहस होती रही फोटो लगाने के लिये । ओफ मेरा माथा ठनका । श्रीमती फिर बोली माँजी ने तो गजब ही कर दिया बन्टी से बाजार से बिरंजी बुलवा ली और मुझसे कहने लगी की बहु तू ही ठोक दे बिरंजी दिवार में और टांग दे रामजी की फोटो ।
फिर ? मै आश्चर्यचकित था | फिर क्या इधर से बिन्नी बोली उधर से माँजी बोलती रही | मैने तो कह दिया माँजी आप जानो और आपका बेटा जाने में तो कुछ नहीं करूंगी । तब से माँजी आपका रांस्ता देख रही है । माँ ने खाना खा लिया क्या ? हाँ माँजी ने तो खा लिया है मगर ये बिन्नी ने नहीं खाया है इसे मना कर खाना खिलाओ ।मैने बिन्नी को गुदगुदी की और अपनी गोद में छुपा लिया मगर वो नाराज होती हुई बोली ‘ पापा मैँ गलत कह रहीं हूँ क्या ? इतना बडा रामजी का फोटो ड्राइंगरूम में अच्छा लगेगा क्या ? दादी समझती क्यों नहीं । दिन भर मुझसे लडती रही बहस करती रही । मैने उसे समझाया ‘ बेटा बडे बुढों का स्वभाव एसा ही होता है जो बात उन्हे ठीक लगती हे वो उन्ही पर टिके रहते हैं । लैकिन आप बताओ गलत है ना फोटो वाली बात ? हाँ हाँ ठीक है हम देख लेते हैं क्या करना है । मैंने बिन्नी को भी टालते हुए कहा | तभी श्रीमती बोली देखना आप भी माँजी की बात में मत आ जाना । रामजी का फोटो पूजाघर में ही लगाओ उनको बोलो कि रोज सुबह पूजाघर में रामजी के दर्शन कर लिया करे । हमारी बातें सुन रहा छोटा बन्टी बीच में बोल पडा पापा जब दादी इतनी जीद कर रही हे तो भगवान का फोटो ड्राइंगरूम में ही लगा दो ना । तू चुप रह बन्टी, बिन्नी ने बन्टी को डांटा तो बन्टी ने भी जवाब दिया ‘तू चुप रह सुबह से दादी से लडाई कर रही है | चलो सब चुप हो जाओ | मैने बात खत्म करते हुए पत्नी से खाना लगाने का कहा । खाना खाकर आगे ड्राइंगरूम में माँ के पास बैठा और उसके हाथ पर हाथ रखा । खाना खा लिया बेटा ? हाँ माँ खा लिया है मेने जवाब दिया । तो अब वो फोटो लगा दे ना बेटा ।
हाँ माँ देखता हूँ। मैने कुछ ठण्डे ठण्डे गोलमाल जवाब दिया ।

“ देखता हूँ , देखता हूँ ? कँई देखता हूँ ? माँ बिस्तर पर बैठी हो गई तू भी इनकी बात में उलझी गयो शायद थारो मन भी नी हे फोटो लगाने को “ । माँ अब खुलकर सामने आ गई थी ।माँ आजकल ड्राइंगरूम में ऐसे बडे फोटो कोई नहीं लगाता । मैने विरोध शुरू किया कोई से कई मतलब अपने अच्छो लगे तो लगानो हे बस। भगवान को फोटो अपना घर में लगाने में कंई शरम की बात । रोज सुबह उठी ने भगवान का दर्शन अच्छो रे बेटा । माँ ने फिर भावुकता का हथियार उपयोग किया । ठीक हे माँ तुझे सुबह सुबह आँख खुलते ही रामजी के दर्शन करना है ना ? बस बेटा एक ही इच्छा है । ठीक है हो जायेगे सुबह भगवान के दर्शन । तो रात में लगायगो कंई , चुपचाप ? जब सब सो जायेगा तब । माँ ने बडे राजदार अन्दाज में पुछा । हाँ माँ तुमको सुबह भगवान के फोटो के दर्शन हो जायेंगे बस । माँ को आश्वासन देकर मैँ बेडरूम में आ गया । बच्चे उनके कमरे में पढाई कर रहे थे श्रीमती अभी जाग रही थी । मुझे देख मुस्कराती हुई बोली ‘ क्या वादा करके आये हो अपनी माँ से श्रवण कुमार जी ?
कुछ नहीं मैने ठण्डे स्वर में कहा और लेट गया । पत्नी समझ गई कुछ ठीक नही है अभी । मेरी नजर दिवार पर लगी घडी पर गई रात के दस बज रहे थे । मेरा दिमाग इस समस्या का समाधान सोच रहा था । कुछ राह नजर भी आ रही थी लैकिन पत्नी और बच्चों का सोना भी जरूरी था । साढे ग्यारह होते होते सभी सो चुके थे मुझे भी नींद आने लगी थी लैकिन जागना जरूरी था ।बारह बजे मैँ उठा डायनिंग हाल में लगे पुजाघर के सामने कुर्सी पर बैठा सामने ही रामजी का फोटो रखा हुआ था मैँ रामजी की तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगा । प्रभुजी क्या करूं आप ही कोई रास्ता सुझाओ । माँ को खुश करूं या बिन्नी की मानुँ ?रामजी भी मुस्कराये मुझे लगा कह रहे हों “ वाह बेटा मेरी दुनिया में रहके मजे मार रहा है और तेरे ड्राइंगरूम में मेरे फोटो के लिये भी जगह नहीं “ । अब मैँ कैसे बताता रामजी को कि भगवानों के फोटो से दिवारें भरने का फैशन अब नहीं रहा । ड्राइंगरूम में भगवान का इतना बडा फोटो बेहुदा लगेगा । मेरा मन भी यही मानता था बिन्नी सही थी लैकिन माँजी की आस्था भी तो सही थी । ऐसे में माँ को भी तो दो टुक नहीं कहा जा सकता कि फोटो नहीं लगा सकते । फिर भी कुछ तो करना होगा ।

मैँ उठा कुछ उपाय सोच चुका था । आगे ड्राइंग रूम में देखा माँ जिस शैट्टी पर सोई थी उसके सामने दिवार से लगी जगह खाली थी । मैने डायनिंग टेबल की एक कुर्सी खिसका कर दिवार से सटाकर लगाई उस पर रामजी का फोटो दिवार के सहारे इस प्रकार रखा कि सुबह उठते ही माँकी नजर उस फोटो पर ही जाये । फोटो गिरे नहीं इसका भी इन्तजाम किया । फिर आश्वस्त होकर अपने बेडरूम में आकर लेट गया | मुझे मालुम था माँ सुबह पाँच बजे उठ जाती है , जबकि श्रीमती और बच्चे सुबह साढेछः तक उठते हैं । अब मुझे सुबह माँ के उठ कर बाथरूम जाने के बाद और श्रीमती के उठने के पहले फोटो वापस पुजाघर में रखना था । चिन्ता के मारे नींद भी बडी मुश्किल से आई लैकिन सुबह पाँच बजे ही खुल भी गई । माँ के राम राम भजने की आवाज आ रही थी | मैँ उठ कर ड्राइंगरूम में गया माँ बहुत खुश थी उसने सुबह उठ कर बैठते ही रामजी के हाथ जोड कर दर्शन किये थे । वाह बेटा बहुत अच्छा किया तुने सुबह सुबह रामजी के दर्शन हो गये बस ऐसे ही रोज दर्शन होते रहें तो बेडा पार है । माँजी अब मैँ रामजी को वापस पुजाघर में रख रहा हूँ । क्यों ? मां चौंकि। “ ऐसा हे माँ यहाँ भगवान का फोटो दिन भर रखा तो आते जाते सब टकरायेंगे लात लगायेंगे भगवान को “। “ ठीक हे बेटा “कहते हुए माँ तो बाथरूम जा चुकी थी मैँ राम जी का फोटो पूजाघर में रख कर वापस बिस्तर पर आकर बाकी नींद पूरी करने की कोशिश करने लगा ।सुबह आठ बजे वापस नींद खुली | घर में बडी शान्ती थी । पत्नी ने बताया सुबह सुबह बहुत खुश थी माँजी और बिन्नी को चिढा भी रही थी कि उसने तो सुबह पाँच बजे रामजी के फोटो के दर्शन किये थे यहीं बिस्तर पर बैठे बैठे । बिन्नी मानने को तैयार नहीं थी लैकिन माँजी बहुत खुश थी । तो ये कौन सा फार्मुला चलाया मेरे जादूगर पतिदेव कि माँ भी खुश है और बेटी भी ? पत्नी ताना मार रही थी । खैर मैँ भी खुश हुआ ये जानकर कि फिलहाल माँजी और बिन्नी दोनो खुश हैं । मैने दूसरे दिन भी यही फार्मुला अपनाया । देर रात को रामजी का फोटो आगे ड्राइंगरूम मेँ दिवार के सहारे कुर्सी पर रखा और सुबह सुबह चिन्ताकर पाँच बजे उठ कर वापस पुजाघर में । फिर तीसरी रात भी साढेबारह पर रामजी वापस ड्राइंग रूम मेँ। इन तीन दिनों में मेरी नींद बहुत गडबडा चुकी थी | वैसे भी मैँ बहुत आरामी जीव रहा हूँ रोजाना आराम से उठने वाला लैकिन पिछली तीन रातों से मेरी नींद पुरी नहीं हो पा रही थी । तबियत बिगडने लगी थी । रात को रामजी का फोटो ड्राइंगरूम में ले जाते हुए मेरी नजर रामजी पर पडी ।

मुझे लगा वो भी परेशान हो रहे हैं उनकी भी रोजाना परेड हो रही हे | कभी पूजाघर तो कभी ड्राइंगरूम । मैने असहाय नजरों से उन्हे देखा , क्या करूँ मैँ भगवान ? आप ही कुछ करो शायद मेरी याचना उन तक पहूँचे ।चौथी रात मैँ रामजी का फोटो ड्राइंग रूम में जमा कर बिस्तर पर लैटा था । लैटते ही नींद आ गई। सुबह लगा कोई मुझे उठा रहा है आँखे खोली तो देखा बिन्नी मुझ पर झुकी हुई मुझे झिंझोड रही थी । पापा उठो पापा उठो | क्या हुआ बिन्नी ? मैँ आधी अधुरी नींद में ही था । उठो मैँ आपसे बहुत नाराज हूँ पापा | क्यों बेटा ? मेरी नींद उड चुकी थी , क्या हुआ बिन्नी ?पापा वो रामजी का फोटो ?अरे बाप रे मैँ उठ कर भागा घडी की तरफ नजर डाली सात बज रहे थे ओफ आज मैँ चुक गया ।ड्राइंगरूम में पहूँचा । रामजी वहीं मेरा इन्तजार कर रहे थे | मैने तत्काल फोटो उठाया और पूजाघर में रखने चला तभी बिन्नी ने मुझे रोक दिया मेरा हाथ पकड लिया । क्या हुआ बिन्नी ? मैने बिन्नी की ओर देखा , बिन्नी की आँखो में आँसू तैर रहे थे । आप मेरे पापा हो ना ? मैँ तो नादान बच्ची हूँ कोई बेवकुफी की बात करूँ तो आप मुझे डाँट भी सकते हैं रोक भी सकते हैं ।हां तो क्या हुआ ? मम्मी ने मुझे सब बता दिया
है | आप तीन दिन से देर रात तक जाग कर रामजी का फोटो दादी के लिये ड्राइंगरूम में कुर्सी पर जमाते हो और सुबह हमारे उठने से पहले उठकर वापस पूजाघर में रखते हो । हाँ तो क्या हुआ बिन्नी ? ये कौन सी बडी बात है ? पर क्यों ? आप मेरी जरा सी जिद के लिये तीन दिन से सो नहीं पा रहे है | मैँ जानती हूँ आपको सुबह देर तक सोने की आदत है । क्या आप मुझे डांट कर रोक नहीँ सकते थे ?क्या मेरी जिद मेरे पापा की नींद से भी बढकर है ? आपने ऐसा क्युँ किया पापा ? बिन्नी की आँखो से आँसु बह रहे थे , आवाज भर्रा रही थी । वो फिर बोली , सारी पापा सारी दादी मुझे माफ करो । पापा आप रामजी की फोटो आज ही आगे ड्राइंगरूम में दिवार पर लगा दो ।
अरे बिन्नी एसी कोइ बात नहीं है वो तो में खुद भी यही सोचता था ।नहीं पापा आप अभी लगाओ यह फोटो , बिन्नी रामजी के फोटो की ओर बढी ।ठीक है चलो तुम कहती हो तो ………..मेरी बात पुरी भी नहीं हो पाई थी कि मैने अपनी पीठ पर माँ के हाथ का स्पर्श महसुस किया ।सारी बातचित के दौरान माँ वहीं हमारे पीछे ही खडी थी ।

10
अरे रूक बेटा ,पता है आज रामजी आये थे मेरे सपने में ।क्या? मैँ गौर से देखने लगा माँ की आँखे कुछ भींग रही थी ,आवाज कुछ भारी हो रही थी ।“ रामजी कह रहे थे मुझे तुम्हारे ड्राइंगरूम में अच्छा नहीं लगता है मैँ पूजाघर में ही ठीक से रह
सकुंगा | तो अब तू उनका फोटो आज से पूजाघर में ही रखा रहने दे ……… माँ मुश्किल से अपनी बात पुरी कर पाई ।
मैँ समझ रहा था माँ ऐसा क्योँ बोल रही है । मैने उसका विरोध करते हुए कहा‘ अरे नहीं माँ मैँ अभी ड्राइंगरूम में यह फोटो लगाता हूँ । नहीं बिलकुल नहीं | मैने कहा ना रामजी की इच्छा पूजाघर में ही रहने की है | मेरा क्या ? मै सुबह उठ कर दो कदम चल कर पूजाघर में ही उनके दर्शन कर लुंगी । तु पूजाघर में ही सजा दे रामजी की फोटु । माँ तू खुश तो है ना ? मैंने माँ की और देखा , फिर बिन्नी की ओर देखा और फिर बिन्नी और माँजी के बिच खडा रामजी के फोटो की ओर देखने लगा । रामजी मुस्करा रहे थे शायद कह रहे थे ‘ अब तो ठीक है ना ? मैने बिन्नी को और माँ को अपने गले से लगा लिया ।


महेश शर्मा
धार जिलाधार मध्य प्रदेश

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