साहित्य सरोज कहानी प्रतियोगिता 2025, कहानी पर कमेंट जरूर देंं।
अलका सिंह मायके में जितनी सबकी प्रिय थी उतनी ही प्रिय ससुराल में भी थी। ससुर योगेन्द्र प्रताप उसे बेटी सा सम्मान और दुलार देते थे। परिवार के कुछ लोगो को कई बार आश्चर्य भी होता कि ठाकुर साहब बहु को बेटी सा प्यार क्यों देते हैं, पति फ़ौज में कमान्डेंट ऑफिसर होने के चलते उन्हें छुट्टियाँ कम ही मिलती। अलका को कभी पति के साथ जाना होता, कभी ससुराल को देखना होता। वह सारी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभा रही थी।जब कभी वह पति के पास रहने चली जाती, ससुराल वाले परेशान हो जाते। कौन सा सामान कहाँ रखा है, किसे कब क्या चाहिए, किसे खाने में क्या पसंद है, वगैरह-वगैरह, सबका वही तो ख्याल रखती…। उसके न होने पर सब अफरा-तफरी का सा माहौल हो जाता, उसे गए बमुश्किल दस दिन भी न होते, पीछे-पीछे ससुर की चिट्ठी या तार पहुँच जाता- मजमून यही होता कि अलका के बिना पूरा घर अस्त-व्यस्त हो गया है, जितना जल्दी हो बहु की वापसी की व्यवस्था हो जाए।
अलग-अलग जगहों पर पति की पोस्टिंग का सबसे बुरा असर उनके बेटे देवेश की पढाई पर पड़ रहा था। पति की लद्दाख पोस्टिंग के बाद अलका ने निर्णय लिया कि बेटे का दाखिला केन्द्रीय विद्यालय में करा दिया जाये और तीन साल पतिदेव के साथ रहा जाये, पति विश्वजीत का भी ऐसा ही मानना था। आखिरकार देवेश का दाखिला करा कर अलका ने चैन की साँस ली।अभी दो महीने भी बमुश्किल हुए थे कि ससुराल से खबर आई कि ससुर की तबियत बहुत ख़राब है। अलका को बुझे मन से ही सही वापिस सुसराल आना पड़ा। ससुर की हालत देखी तो उसने उन्हें कार में लेकर दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल ले आने का प्लान बनाया। गॉव-ज्वार के लोगो को घोर आश्चर्य हुआ कि ठाकुर साहब की बहु कार चलाकर ससुर को दिल्ली तक कैसे ले जाएगी? ठाकुर परिवार का मान-सम्मान पूरे इलाके में था। पत्ता भी हिलता तो इस परिवार की मर्जी से। योगेन्द्र प्रताप का पूरे इलाके में नाम था, कितने ही कारिंदे घर और खेत में होते, आम के बगीचे.और आम का व्यापार, सैकड़ों एकड़ जमीन..इलाके के राजा थे योगेन्द्र प्रताप… तीन बेटे और दो बेटियाँ, सब की शादी संपन्न परिवारों में हुई थी। बेटियां विदेश में थी, एक बेटा डॉक्टर, एक इंजीनियर, डॉक्टर बेटा अमेरिका चला गया, इंजीनियर बेटा बुकारो और मझला बेटा सी. ओ। खुशहाल परिवार लेकिन ठाकुर साहब हवेली में पत्नी के साथ नितान्त अकेले।
अलका अपने परिवार में सबसे छोटी थी, उन्होंने अपनी पसंद से शादी की थी, विश्वजीत दूर के रिश्ते से भाई लगते थे लेकिन रिश्ता इतने दूर का था कि शादी में कोई अड़चन नहीं होनी थी, शुरू में सबने ऐतराज़ किया लेकिन अलका के सौन्दर्य और शिक्षा देखकर किसी को ऐतराज़ न रहा, रिश्तों में अत्मीयता थी चुनांचे हँसी-खुशी विवाह सम्पन्न हुआ और फिर अलका का सबके दिलों पर राज़ हो गया।अलका ने ससुर योगेन्द्र प्रताप को कार से लाकर के अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। उनकी तकलीफ बढती गयी, साँस रुकने लगी तो उन्हें आईसीयू में ले जाया गया। डॉक्टर पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन हालात बिगड़ती चली गयी, दो हफ्ते जीवन सुरक्षा तकनीक पर रखकर इलाज करने के बाद डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इस दौरान अलका ही उन्हें लेकर वापिस ससुराल गयी। जल्दी ही पूरा परिवार इकठ्ठा हो चुका था।
अंतिम संस्कार की पूरी तैयारी हो चुकी थी, श्मसान ले जाने के वक़्त परिवार के वकील ने कहा –“ठाकुर साहब अपनी वसीयत लिखकर गए है… वे चाहते थे कि उनके अंतिम संस्कार से पहले उनकी वसीयत पढ़ी जाये।”
किसी ने कहा- “अभी तो अंतिम संस्कार करना ही उचित है, वसीयत तो बाद में भी देखी जा सकती है।
अलका सिंह ने कहा–“बाबूजी की इच्छा का हमें सम्मान करना चाहिए, यदि वो चाहते थे कि अंतिम संस्कार से पहले उनकी वसीयत पढ़ी जाये तो जरुर कोई वजह रही होगी। बाबूजी बिना वजह कुछ भी नहीं करते थे।”
वकील साहब ने वसीयत से संपत्ति का बंटवारा बताकर आगे बोला, ठाकुर साहब लिखवा कर गए हैं कि “मेरी चिता को अग्नि मेरी बहु अलका देगी।”
सुनकर सबको काटो तो खून नहीं, ठाकुर साहब ऐसा कैसे कर सकते हैं? हमारे कुछ रीति-रिवाज हैं, ठाकुरों में औरतें श्मशान तक नहीं जाती और यहाँ बहु अग्नि देगी? अनर्थ हो जायेगा, रीति-रिवाज भी कुछ हैं कि नहीं…। सब में कानाफूसी होने लगी… परिवार के लोग भी स्तब्ध… क्या करें..? तभी अलका सिंह ने कहा- “बाबु जी की आज्ञा का उल्लंघन उनके रहते किसी ने किया जो अब होगा?”
सब मौन… कोई उत्तर नहीं.. कोई शोर-शराबा नहीं…। अलका ने आगे कहा-“बाबूजी पुरानी सड़ी-गली प्रथाओं पर कभी विश्वास नहीं करते थे। उनकी प्रगतिशील विचारों में आस्था थी…, वे तो कभी अपनी आसामियों का भी शोषण नहीं करते थे… वे एक स्वस्थ समाज चाहते थे… हमें उनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए…।”
हालाँकि कुछ लोग खुसर-फुसर जरुर कर रहे थे लेकिन अलका ने अपने तर्क जारी रखे, उसके तर्क के आगे परिवार और गाँव-ज्वार के सब स्त्री-पुरुष नतमस्तक हुए… चिता को श्मशान घाट ले जाया गया।
सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद अलका ने दाह-संस्कार एक लिए प्रज्वलित अग्नि को हाथ में लिया, चिता का भ्रमण करके मुखाग्नि दे दी…, पंडित जी ने विवशता में ही सही कपाल-क्रिया भी अलका के हाथों सम्पन्न कराई। चिता धू-धू करके जल उठी… अलका देख रही थी- चिता के साथ जलते पुराने विचार कि महिलाएं श्मशान भूमि नहीं जाती…।
एक नया सवेरा समाज में पसरते हुए वह साफ़ देख रही थी।
सन्दीप तोमर
सम्पर्क: ड़ी 2/1 जीवन पार्क,
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ईमेल आईडी: gangdhari.sandy@gmail.com
बेहतरीन कहानी
शानदार कहानी , समाज के रूढ़िवादी सोच पर प्रहार करती और नई रोशनी दिखती कहानी. आज के समाज में बेटी के हाथों मुखाग्नि देना प्रायः देखा गया है इस कहानी में बहू के द्वारा मुखाग्नि देना अंतिम संस्कार की क्रियाएं करना एक नई दिशा देता है समाज को और सोच को
बहुत सुंदर कहानी, समाज की रूढ़ियों को तोड़ने की कोशिश करती हुई और महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहन देती कहानी।
साथ ही उच्चबर्गीय समाज में बच्चों के जरूरत से ज्यादा लायक होने पर अपने माता पिता से मजबूरन बुढ़ापे में दूर होने के प्रचलन पर भी प्रकाश डाला गया है। ज्यादा लाग लपेट और मनोरंजन के मसालों का प्रयोग नहीं किया गया। सीधी, सरल कहानी में अपनी बात कह देने के लिए संदीप जी को साधुवाद🙏😊💐
कहानी बेहद प्रेरणादायक और समाज के पारंपरिक ढांचे को चुनौती देने वाली है। इसमें अलका के चरित्र को न केवल एक जिम्मेदार बहू, बल्कि एक प्रगतिशील और साहसी महिला के रूप में प्रभावी ढंग से चित्रित किया गया है।
समीक्षा और सुझाव:
1. पात्रों का विकास:
अलका के व्यक्तित्व को विस्तृत रूप से उकेरा गया है, जिससे कहानी में उसकी भूमिका मजबूत होती है। हालांकि, पति और अन्य परिवारजनों के विचार और प्रतिक्रियाएं अधिक स्पष्ट हो सकती थीं। इससे कहानी में गहराई और संतुलन आता।
2. संघर्ष का चित्रण:
कहानी में ठाकुर परिवार की पारंपरिक सोच और अलका के आधुनिक दृष्टिकोण के बीच का टकराव अच्छा है। हालांकि, सामाजिक विरोध और अन्य परंपरागत विचारधाराओं के और उदाहरण जोड़े जा सकते थे, जिससे कहानी और रोचक हो जाती।
3. भावनात्मक प्रभाव:
ससुर के प्रति अलका की निष्ठा और प्यार को खूबसूरती से दिखाया गया है। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद परिवार के अन्य सदस्यों की भावनाएं थोड़ी और विस्तार से वर्णित की जा सकती थीं।
4. संवाद:
कहानी में संवाद अच्छे हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर थोड़ी अधिक गहराई और विविधता की गुंजाइश है, खासकर परिवार के अन्य सदस्यों के बीच।
5. समाप्ति:
अंत बहुत प्रभावी है। अलका द्वारा मुखाग्नि देना पुराने रीति-रिवाजों को तोड़ने का प्रतीक है, और इसका विवरण पाठक के मन में गहरा प्रभाव छोड़ता है।
कहानी का सार: यह कहानी न केवल एक महिला की साहस और संघर्ष को उजागर करती है, बल्कि समाज में परिवर्तन लाने की उसकी क्षमता को भी दर्शाती है। कहानी में संदेश स्पष्ट है—परंपराओं और प्रथाओं को समय के साथ बदलना चाहिए।
यह कहानी पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है और समाज में बदलाव का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
Sunder katha
Sandeep ki kahani naya swera: नारी द्वारा कठिनाइयों में भी अपने परिवार को संभालने की शक्ति, समर्पण, सहनशीलता का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। samaj ko aayna dikhti kahani… aabhar 🙏
सन्दीप तोमर की कहानी ‘नया सबेरा’ एक प्रगतिशील विचारधारा की कहानी है। किसी महिला द्वारा अंतिम संस्कार किया जाना प्रायः स्वीकार्य नहीं होता। कहानी परम्परा के विरुद्ध प्रगति पथ पर चलने की प्रेरणा देती है।
रूढ़ियों पर चोट करने का साहस जिसमें हो, वहीं ऐसी कहानी लिख सकता है।
नई जमीन तोड़ती, सामाजिक रूढ़ि पर प्रहार करती सशक्त संदेशपरक कहानी। साधुवाद संदीप जी।
संदीप की कहानी नया सवेरा : समाज में भेदभाव को चुनौति देती बेहतर कहानी ।
आभार
समाज में लिंग भेदवाव पर जोरदार प्रहार करती हुई व्यंग्यात्मक लघु कथा। अति सुंदर ।
Mind blowing
बहुत सुंदर
अच्छी कहानी, समाज को आईना दिखाती। हार्दिक बधाई आपको 💐
Sandeep Tomrji k dwara likhhi gyi kahani “Naya Savera” sach m purani rudhiwaadi prathaao pe gehra prahaar h ek lekhak se isi tarah ki rachna ki umeed ki jati h, jis se ki samaaj m aur desh m Naya Savera ki kirno ko faila kr samaaj k logo ko jagaya jay…aur iske liye sandeepji badhaii k Patra hain..
Aaj ke privesh ke anusar sidhi or sarl kahani . Aadhunik hone ke bavjud alka ne sas sasur ka dhyan rkha . Apne vaivahik jivan ko chhod vh sasur ki seva ke liye bar bar lot aati he. Beto se jyada dhyan rkhne ke karn hi use beto ke brabr sthan mila . Satik chitran …
बहुत ही बेहतरीन और शहद सरल भाषा शैली का प्रयोग।
Bahut hi khubsurat aur sandeshparak kahani .
मार्मिक कहानी
सरल और सहज अभिव्यक्ति
पाठकों को अपना पाठ रचने के लिए प्रेरणास्पद कहानी
बहुत ही सुन्दर कहानी है, अंतर्मन को छू गई
आधुनिक सोच को लेकर लिखी गई सशक्त कहानी के के लिए संदीप तोमर जी को बधाई 🙏 💐
बेहद प्रेरणादायक ,
और आपकी जो भी रचना है सारी बेहद लाजवाब है
This is very sensitive and innovative story which tell the world about equality in the society. In modern world, we must change our thinking and customs .it isi ncredible story.
प्रशंसनीय
विकसित होते समाज की बदलती सोच।
एक स्वस्थ समाज का निर्माण छोटी छोटी चीजों को जोड़कर ही हो सकता है।संदीप जी की कहानियां भी एक मजबूत समाज के निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाती हैं।ऐसे ही हमेशा शानदार लिखते रहिए संदीप जी।
कहानी एक सामान्य वर्ग से सामान्य कथ्य को लेकर चलती है, लेकिन विषय को सटीकता से एक ऐसे मोड़ पर ले आती है, जो समाज में बने बनाए ढर्रे को तोड़ने का कार्य करने के साथ एक नया सिद्धांत (भले ही आज के आधुनिक युग में ये बहुत बड़ी विसंगति नहीं रही है, फिर भी ऐसी घटनाएं अभी भी सहज नहीं है) गढ़ती है।
एक सुंदर कहानी के लिए शुभकामनाएं प्रेषित है, संदीप जी।
बहुत अच्छी कहानी
बहुत अच्छी कहानी के माध्यम से आपने समाज मे नए विचार की ओर लोगों का ध्यान खिंचा है। आपको ढेर सारी बधाई💐💐💐✌️🖊️👏👏👏
वर्तमान समाज का मार्मिक चित्रण l शानदार लेखन l लेखक को हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी कहानी एक नई सोच उजागर करती है। बहुत अच्छा निर्णय पिताजी का। जो सेवा करे मुखाग्नि देने का अधिकार भी उसी को मिलना चाहिए। आखिर बहु भी तो बेटी ही होती है। मुझे बहुत दिनों से इस बात की शिकायत थी आपकी कहानी से पूरी हुई। हार्दिक बधाई अच्छी कहानी के लिए…
परिवर्तन ही संसार का नियम है l
जय श्री कृष्णा |
परिवर्तन सृष्टि का नियम है। पुराने समय के रीति-रिवाज पुराने जमाने की परिस्थितियों के अनुसार ठीक थे । परन्तु आज का समय विज्ञान और तकनीकी का समय है। संविधान में भी बहुत सारे ऐसे कानून थे जो पुराने जमाने के अनुसार थे उनके पालन का आज के समय में कोई औचित्य नहीं था। इसी प्रकार संदीप तोमर जी की यह कहानी पुरानी प्रथाओं पर चोट करती है। इस कहानी के द्वारा रूढ़िवादी परम्पराओं पर प्रहार करते हुए महिला सशक्तिकरण पर बल देने की सुंदर कोशिश की गई है।
एक राजपूत परिवार से होने कारण कहानी के पात्रों ने विशेष रूप से प्रभावित किया। ऐसा लगा जैसे मेरे आसपास के ही रिश्तेदार हों! समय के साथ बदलाव जीवन की अनिवार्यता है। कहानी आने वाले समय की बात करती है। सनातन धर्म में मुखाग्नि का बहुत महत्व है… बहुओं को तो छोड़िए बेटियां भी इस कर्तव्य से वंचित कर दी जाती हैं… जिसे सेवा करने का अधिकार उसे मुखाग्नि का भी होना चाहिए। कहानी के सकारात्मक अंत ने विशेष प्रभावित किया।
बहुत सुंदर कहानी
आज के समाज को ऐसी हीं प्रगतिशील सोच की जरूरत है ।
बहु और बेटियां बेटों से ज्यादा परिवार का ख्याल रखती हैं
कहानी ‘नया सबेरा’ एक प्रगतिशील विचारधारा की कहानी है। बहुत बेटियो के प्रति भावनात्मक स्तर के साथ प्रगतिशील सोच विचार कहानी की मुख्य बिंदु।
कहानी के सकारात्मक अंत महिला सशक्तिकरण के संदेश दे रही। मानो हमारे जैसे लोग के घर की कहानी
हो। हार्दिक बधाई ।