“शाला प्रवेश उत्सव” एक पावन कार्य-डॉ शीला शर्मा

शाला प्रवेश उत्सव शैक्षणिक सत्र के पहले दिन मनाये जाने वाले इस उत्सव में ,’नव प्रवेशी’ और ‘नव कक्षा प्रवेशी’ दोनों ही प्रकार के छात्रों का शाला में स्वागत के रूप में उत्सव मनाया जाता है। यह स्वागत उत्सव बच्चों के प्रवेश का है जिसे नई उर्जा और आनंद के साथ मनाना है। वस्तुत: उत्सव सृजनशील ऊर्जा निर्माण के ही तो साधन हैं और यदि इसमें बच्चों का प्रवेश जुड़ा हो तो अलग ही आनंद है।
प्रवेशोत्सव का शाब्दिक अर्थ होता है- प्रवेश का उत्सव। यानि विद्यालय में आए नए बच्चों का एक उत्सव के रुप में देखना तथा धूमधाम से मनाना। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु शिक्षा विभाग की ओर से प्रवेशोत्सव कार्यक्रम का श्रीगणेश किया गया है जो 26 जून से 30 जुलाई तक चलेगा। इस पावन कार्य को एक उत्सव के रूप में मनाने का उद्देश्य है शत प्रतिशत बच्चों का नामांकन किए जाने का लक्ष्य है। बच्चों को विद्यालय से जोड़ना। वाकई बच्चे जब विद्यालय में प्रवेश लेते हैं तो उसकी रौनक उसी तरह बढ़ जाी है जिस तरह फूलों के पौधों में नये- नये फूल आने से होता है। बच्चे तो विद्यालय रूपी आँगन के मनहर, पावन प्रसून हैं जो अपने आँगन को सदैव सुगंधित करते रहते हैं। अपने निर्मल पावन किलकारी से विद्या एवं ज्ञान के आलय को जगमग करते रहते हैं। इसी उद्देश्य को मद्देनजर रखते हुए राज्य सरकार की ओर से शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शत-प्रतिशत बच्चों के नामांकन का लक्ष्य रखा गया है। मेरी राय में, प्रवेशोत्सव के निम्नलिखित उद्देश्य है:

  •  
  • प्रवेशोत्सव एक परम पवित्र कार्य है। जनजागृति बढ़ाकर बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित करना इसका मुख्य उद्देश्य है
  • विभिन्न तरह के नारों एवं प्रभातफेरी के माध्यम से बच्चों के अभिभावक में निरंतर उत्साह बढ़ाना।
  • घर पर अभिभावकों से मिलकर बच्चों को विद्यालय आने के लिए सदा प्रोत्साहित करना।
  • शत-प्रतिशत बच्चों का नामांकन करवाना।
  • इस अभियान के तहत अनामांकित व क्षितिज बच्चों का उनके अभिभावक से संपर्क कर विद्यालय में प्रवेश करवाना।
  • 6 से 14 वर्ष के सभी बालक, बालिकाओं को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लक्ष्य की प्राप्ति करना साथ ही नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों की प्राप्ति सुनिश्चित करना।
  • इस प्रकार विभिन्न तरह के जागरूकता अभियान के द्वारा विद्यालय में बच्चों का प्रवेश लेना एक महती कार्य है। इसमें सरकार के साथ-साथ समाज के सभी प्रबुद्धजनों, शिक्षित महिलाओं, विद्यालय शिक्षा समिति के सदस्यों, अभिभावकों, शिक्षकों तथा आँगनबाड़ी सेविकाओं के सहयोग की आवश्यकता है। विद्यालय के आँगन में फूल खिले, शिक्षा की बगिया महके, बच्चों की मोहक आवाज़ गूँजें इस तरह की चाहत किन्हें नहीं होती है।
  • विद्यालय एक ऐसा स्थल है जहाँ बच्चों को शिक्षक के द्वारा सम्यक् शिक्षा मिलती है। एक शिक्षक बच्चों को अच्छी तरह ठोक बजाकर, उनके अन्तर्मन के भाव को अच्छी तरह समझकर, परख कर उन्हें सार्थक व जीवनोपयोगी शिक्षा प्रदान कर जी वंत दिशा प्रदान करते हैं। अतः इस महान उत्सव को अमली जामा पहनाने के लिए हम शिक्षक बंधुओं को दृढ़ संकल्प व पूरी ईमानदारी के साथ आगे बढ़ना होगा तभी प्रवेशोत्सव कार्यक्रम में चार चाँद लग जाएगा।
  • इस तरह इस पावन कार्य को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करने पर इसमें शीघ्र कामयाबी मिल सकती है। भारत के महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बच्चों की शिक्षा को दृष्टिगत रखते हुए कहा था- विद्यालय में बच्चों का समय पर प्रवेश हो जाए तथा सबसे बढ़कर उन्हें ऐसी शिक्षा मिले जिससे वह स्वयं की पहचान करते हुए अपने माता-पिता को पहचाने तथा सही दिशा में अग्रसर हो सके।
  • अतः प्रवेशोत्सव के इस महान कार्य को सही ज्ञान के निवेश में लगाने की आवश्यकता है। आएँ! हम सब मिल-जुलकर आनंद से मनाएँ।।

अपने विचार साझा करें

    About sahityasaroj1@gmail.com

    Check Also

    पटना में मिला 500 साल पुराना शिवलिंग-माधुरी

    आज मैं सावन मास के इस पावन महीने में आपको अपने पटना जिले की एक …

    Leave a Reply

    🩺 अपनी फिटनेस जांचें  |  ✍️ रचना ऑनलाइन भेजें  |  🧔‍♂️ BMI जांच फॉर्म