Breaking News

शालिनी की कहानी लगाव

कहानी संख्‍या 52 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024
मूवर्स एंड पैकर्स के कर्मचारी धड़ाधड़ सामान पैक कर रहे थे । डैडी के कमरे की किताबें अलग-अलग डिब्बों में रखी जा रही थीं । राजीव अंतर्मन में उठ रहे उद्वेग को दबाते हुए लगातार निर्देश दे रहा था । बेटी ने पूछा भी था,-पापा इतनी पुरानी पुरानी किताबें ले चलने की क्या ज़रूरत है? कुछ नहीं कहा  क्योंकि इन  किताबों के कई पृष्ठ उसकी और डैडी की कई बहसों के साक्षी  हैं। वह  उन पन्नों में अपने पिताजी की गंध महसूस करता था।बेहद उमस भरा हुआ दिन था आज । पड़ोस वाले संजय भाईसाब और उनकी पत्नी ने खाने पीने का सब इंतजाम कर दिया था आज।भाभीजी ने जब कहा कि – ‘ कितनी मेंहदी कितने सावन और रिश्तों की कितनी उमंगों का हाल सुनाएगा ये नीम ।सचमुच आप लोगों की बहुत याद आएगी। बुरी तरह मन से थके राजीव की  निगाह आँगन में लगे नीम के पेड़ पर ठहर गई ; आँखों के समक्ष अतीत के 31 वर्ष मानो चलचित्र बन गए ।

उसकी बड़ी बहन की दूसरी बेटी निली भी उसी घर का हिस्सा बन गई थी, राजीव ने निली को अपनी बेटी  माना। समय गुजरता जाता है ,बच्चे भी बड़े होने लगे । निली पढ़ने बाहर चली गई इधर बाबूजी को ब्रेन ट्यूमर ने अपनी चपेट में ले लिया। रात दिन एक कर दिए थे उसने पिता की सेवा में ,लेकिन गंभीर बीमारी निगल ही गई उसके बाबूजी को। बेहद प्यार करते थे उसके पिता उसे, भले ही कभी जता ना पाए हों और शायद वो भी नहीं जता पाया था। उनके जाने पर बहुत मुश्किल से संभाला था उसने खुद को ।  माँ के  लगातार चिड़चिड़े स्वभाव और उसकी खीझ ने घर के माहौल में एक अजीब सा रूखापन पैदा कर दिया था ।12 वर्षों का लंबा समय कुछ भी तो नहीं सुधार पाया था और पिछले वर्ष मम्मी भी कुछ बदलने की आशा लिए विदा हो गई  थीं। राजीव की बेटी ने एक बार पूछा था उससे -‘पापा इस घर में अम्मा बाबा हमारे साथ ही  हैं ना!बालसुलभ प्रश्न था लेकिन  कोई जवाब नहीं दे पाया था वह… जब मम्मी उससे कहती  थीं -‘बॉबी बेटा तुम लोग मुझे अच्छा खाना नहीं खिलाते हो'( बीमारियों के चलते हल्का भोजन भी उन्हें पचता नहीं था और शायद उम्र बढ़ने के साथ अधिक स्वाद की इच्छा होने लगी थी।) तब वह नाराज होता,शिकायत करने पर   डाँटता पर कभी-कभी उनकी पसंद का खाना भी बनवाया जाता। मम्मी के गुजरने के बाद जैसे उसके अंदर कुछ टूटने  लगा था।  संवेदनशील लोगों की  ज़िंदगी में चुनौतियाँ शायद  ज़्यादा ही होती हैं। 

घर का हर दरवाजा, खिड़की, फर्श तक उसके अच्छे बुरे समय के साथी थे, लेकिन व्यक्ति जब पैसे से सक्षम ना हो तब निर्णय परिस्थिति ही करती है । राजीव ने अपनी बड़ी से बड़ी बीमारी को भी मात दे दी थी लेकिन समाज में रिश्ते नाते निभाना उसे  भारी लगता …शायद समाज की मानसिकता जिसमें ‘पैसा है तो प्रतिष्ठा है’ को नकारना चाहता था ।अब उसकी बेटी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थी उसकी हर परेशानी में साए की तरह ।लेकिन मकान की नींव चाहे कितनी भी मजबूत हो कुछ  रिनोवेशन  की दरकार होती ही है।एक दिन पत्नी ने तंग आकर कहा भी था – ‘बंदर घुस आते हैं, घर को बंद करके कहीं नहीं जा सकते,सब नल टंकियां टूट गए हैं, आखिर कब तक ऐसे ही चलेगा ।’और शायद ईश्वर ने उसकी सुन ली थी… घर का एक अच्छा खरीददार मिल गया था ।बेटी भी बुदबुदाई  थी-‘ अच्छे दिन आएँगे।’ पर  राजीव ! वो तो जैसे पत्थर हो गया था, डिप्रेशन बढ़ता ही जा रहा था लेकिन समय किसी के लिए  नहीं रुकता ।

आज रजिस्ट्री होनी थी। बस… कुछ ही देर में यह दीवारें जो उसके लड़कपन के जुनून की साक्षी थीं उसके लिए बेगानी होने जा रही थी,ये नीम का पेड़ जिसकी  छाँव में उसने 31बसंत झूले झूले थे,अगले ही पल शायद अपना अस्तित्व ही खोने जा रहा था। एक बार फिर दौड़कर बरसती आँखों से हर कमरे का एक आखिरी चक्कर लगाया मानो आशीर्वाद लेना चाहता हो। उसका कलेजा  मुँह को आ रहा था । दहाड़ मार मार कर रो ही तो दिया था वो। तभी सामान लोड हो चुकी गाड़ी के तेज हॉर्न ने  उसकी तंद्रा भंग कर दी। मम्मी डैडी की तस्वीर को संभाल कर उठाते हुए भीगे मन और शिथिल कदमों से वह गाड़ी की तरफ बढ़ गया।इमारत और आत्मा का कभी न खत्म होने वाला लगाव भी चुपके से उसके साथ गाड़ी में बैठ गया था।

शालिनी अग्रवाल ‘चकोर’ -अजमेर,

पोस्ट को रेट करें:

12345


अपनी प्रतिक्रिया दें


    About sahityasaroj1@gmail.com

    Check Also

    "साहित्य सरोज त्रैमासिक पत्रिका - कविता, कहानी, लेख, शोध पत्र, बाल उत्‍थान, महिला उत्‍थान, फैंशन शों, शार्ट फिलम और विशेष आयोजन के लिए पढ़ें। संपादक: अखण्ड प्रताप सिंह 'अखण्ड गहमरी

    अनोखी दोस्‍ती-प्रबुद्धो घोष

    रहस्यमय दुनिया में निश्चलरहस्यमय माहौल से भरी हवा में 55 वर्षीय निश्चल डूबे हुए थे। …

    2 comments

    1. Shalini Agrawal

      नमस्कार दोस्तो!
      लगाव ज़रूरी नहीं रिश्तों का ही हो,ये लगाव है एक घर का एक इमारत का,जिसमे बरसों बरस रहने के बाद अचानक मजबूरियों के कारण उसे छोड़ना पड़ता है।ये सच्ची कहानी है मेरे परिवार की,मेरे अपने सगे भाई के जीवन की, जिसे अपने जीवन के सबसे खास हिस्से को खुद से अलग करना पड़ा।
      मुझे इस कहानी को लिखने की प्रेरणा तब मिली जब मैंने राजीव को अपने घर की याद में सदैव बेचैन पाया।आशा करती हूं कि आपके दिल के किसी कोने में छिपी ऐसी भावनाओं को मेरी कहानी छू पाएगी।

    2. बहुत सुंदर कहानी।किसी चीज़ से भी लगाव के पीछे भी इंसान का भावनात्मक रिश्ता जुड़ा होता है।

    Leave a Reply

    🩺 अपनी फिटनेस जांचें  |  ✍️ रचना ऑनलाइन भेजें