सुषमा की कहानी उसकी बात

कहानी संख्‍या -25,गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता -2024,

रमेश और मोहन बाबू एक ही कंपनी में करीब पांच वर्षों से कार्यरत थे ।दोनों में अच्छी मित्रता थी,लेकिन कभी एक दूसरे के घर आना- जाना नहीं हुआ था। ऐसे मोहन बाबू रमेश के सीनियर,पद और उम्र दोनों में। लेकिन दोस्ती के बीच ये बाते कभी मायने नहीं रखी।आज रमेश बाबू, अपनी आठ वर्षीया बेटी अनु के जन्मदिन के उपलक्ष में, छोटी सी पार्टी रखे थे ।कुछ लोगों को ही दावत पर बुलाए थे।मोहन बाबू , पत्नी सुधा के साथ पार्टी में पहुँचे।पार्टी से आने के बाद से ही वह कुछ चिंतित रहने लगे थे।दफ्तर में अक्सर रमेश बाबू से उनके घर का हाल -समाचार पूछते रहते ।एक दिन कहनेलगे,हम पार्टी में तुम्हारे परिवार से, ठीक तरह से मिले ही नहीं!फिर कब बुला रहे हो?रमेश बाबू शर्माते हुए बोले -तुम्हारी जब इच्छा हो आ जाओ! तुम्हारा ही घर है ।चलो तो आज ही तुम्हारे साथ चलता हूँ।रमेश के घर पहुंच कर, सबसे मिले। खासकर रमेश की माँ से मिल कर, माँ की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।माँजी आप तो बिल्कुल मेरी माँ की जैसी लगती हैं। आप में मैं अपनी माँ की झलक देख रहा हूँ।फिर रमेश की ओर मुखातिब होकर कहने लगे- भई तुम बहुत लकी हो ! तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है ।माँ का साया अब तक तुम्हारे ऊपर बना हुआ है ।माँ की दुआ से बढ़कर तो ईश्वर की दुआ भी नहीं होती।

मां -बाप के सामने ही तो हमारा बचपना बना रहता है, वरना दुनिया वालों की नजरों में तो हम बड़े- बूढ़े हो ही जाते हैं।मैं जब हाई स्कूल में था, तभी मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था।बुरा ना मानो तो, क्या मैं कभी-कभी माँजी से मिलने आ सकता हूँ!रमेश बाबू ना चाहते हुए भी बोले -इसमें बुरा मानने जैसी क्या बात है! तभी रमेश बाबू की पत्नी बीच में टोकी ,मगर– माँजी तो कभी अपनी बेटी के यहां ,तो कभी गांव पर आती -जाती रहती हैं । इस बात पर मोहन बाबू हंसते हुए बोले -तो क्या हुआ !माँजी जहां जाएंगी, वहीं पहुंच जाऊंगा! फिर जोर से हंस पड़े।इस तरह से वह ,संडे को या किसी छुट्टी में रमेश के घर आने-जाने लगे। दफ्तर में भी दोस्तों के बीच, रमेश की उपस्थिति में माँजी की बात करने लगते।जब भी रमेश के घर जाते तो दोनों बच्चों के लिए कुछ गिफ्ट जरूर से लेकर जाते।माँजी के साथ बैठकर दो पल बातें करते,उनके हाथों की बनी चाय भी पीते।एक दिन वो एक “महंगी शॉल”लेकर गए और माँजी को देते हुए बोले- बेटे की तरफ से एक छोटा सा तोहफा है, इसे रख लीजिए ।मेरा आज इंक्रीमेंटहुआ है ।सो मैं आपसे आशीर्वाद लेने चला आया। रमेश तो बताया ही होगा!माँ बोली, मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है ,लेकिन बेटा !इतनी महंगी शॉल* का मैं क्या करूंगी ?

रमेश की पत्नी भी, माँजी की हाँ में हाँ मिलाती हुई कहने लगी- इतनी महंगी शॉल !माँजी लेंगी ही नहीं! इसे या तो बक्से में रख देंगी या फिर मुझे दे देंगी।मोहन बाबू तिरछी नजर से भाभी जी को देखते हुए बोले क्यों नहीं लेंगी? इसका मतलब मुझे माँजी बेटा नहीं मानती? माँजी लज्जित होती हुई कहने लगी – ठीक है बेटा ! मैं इसे अपने पास ही रखूँगी और इस्तेमाल भी करुँगी। अभी तो बरसात है,जाड़ा तो आ जाए।मोहन बाबू के जाते वक्त भाभीजी जी पूछी- फिर कब आना होगा ?वह हंसते हुए कहने लगे , आने के लिए कोई बहाना चाहिए क्या ? तो ठीक है !-अब तो पर्व- त्यौहार शुरू हो ही गया है। “छठ पूजा” तक त्यौहार ही त्योहार रहेगा! ऐसे भी हमारे देश में कहा गया है न” सात वार नौ त्योहार।” व्रत -त्यौहार के बहाने आता जाता रहूँगा।किसी दिन झमाझम बारिश में , आपके हाथों के बने गरम-गरम पकौड़े खाने और चाय पीने आ जाऊंगा।भाभी जी बेमन से ही सही, लेकिन मुस्कुरा कर बोली हां- हां क्यों नहीं!धीरे-धीरे दोनों परिवार के बीच रिश्ता सा कायम होने लगा ।आज सुधा ,थोड़ी गंभीरता से पूछने लगी-क्या बात है जी? आप रमेश बाबू के परिवार पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रहे हैं!बिना किसी कारण तो आप, किसी के यहां आने- जाने वालों में से नहीं हैं। इतना भी मुझे पता है कि आप कोई गलत काम भी नहीं कर सकते हैं ,तो फिर बात क्या है? तुम सुनना चाहती हो तो सुनो— फिर वो हरी चूडियों से भरी सुधा की कलाई,अपने हाथों में लेकर बताना शुरू किए—याद करो, जब हम पहली बार , रमेश के घर गए थे । हम देर से पहुंचे थे। कई मेहमान चले भी गए थे।

कुछ ही मौजूद थे।मैं गिफ्ट बच्ची को देकर पूछा था- बेटा बताओ, गिफ्ट कैसा लगा? तो वह गिफ्ट को भली- भांति देखे बिना,धीरे से बड़ी उदास होकर बोली – अंकल! गिफ्ट तो सब अच्छे हैं। आप भी अच्छे हैं। बस मुझे दादी चाहिए।मैंने आश्चर्य से पूछा था – दादी तो तुम्हारे साथ ही हैं न !इस पर वह और भी धीरे से बताई ,हाँ !साथ तो हैं ,लेकिन– मम्मी -पापा अगले महीने उन्हें “ओल्ड एज होम” भेजने वाले हैं । पापा- मम्मी मेरी जिद पर ही पार्टी दे रहे हैं ।आप कुछ करो न अंकल! यह बात, मैं और किसी को नहीं बताई हूँ, आप भी किसी को मत बताना।
बस मुझे उसकी यही बात, दिल को छू गई। बच्ची की आंखों में जाने क्यों, मुझ पर भरोसा और विश्वास दिख रहा था!मैं उसी वक्त निश्चय कर लिया , किसी भी हाल में, मैं रमेश की माँ को”वृद्धाश्रम “नहीं जाने दूंगा यह एक ऐसी समस्या है कि इसके लिए कानून या सरकार की मदद लेना आसान नहीं होता। सो मैंने अपनी सूझबूझ से यही तरकीब लगाया। यदि मैं ऐसा करके किसी

एक माँ की भी मदद करता हूँ,तो समझूंगा,” मेरा जीवन सफल हो गया। ” दुनिया में खुद के लिए तो सभी जीते -मरते हैं । पति के विचार जानकर, सुधा का दिल सम्मान से भर गया। प्यार और गर्व से पति की आँखों में झाँकती हुई हौले से बोली- ईश्वर आपको इस “नेक कार्य” में सफ़लता अवश्य देंगे। मैं भी आपके साथ हूँ। सुधा की आंखें भर आई थी। पति मुस्करा कर बोले -सावन -भादो को बाहर ही बरसने दो आंखों से नहीं। आंगन में वर्षा की बूंदे ,दोनों के सम्मान में खुशी से नाच रही थी और जलेबियां भी छान रही थी।

सुषमा सिन्हा,मुकीम गंज,वाराणसी,मोबाइल–9369998405

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