Breaking News
"साहित्य सरोज त्रैमासिक पत्रिका - कविता, कहानी, लेख, शोध पत्र, बाल उत्‍थान, महिला उत्‍थान, फैंशन शों, शार्ट फिलम और विशेष आयोजन के लिए पढ़ें। संपादक: अखण्ड प्रताप सिंह 'अखण्ड गहमरी

स्त्री जीवन की चुनौतियाँ एवं उनके समाधान

मानव समाज में स्त्रियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे घर-परिवार में स्त्री माँ, बहू, बहन, बेटी, जीवन-संगिनी बनकर जिम्मेदारी के साथ ही स्नेह की गंगा बहाती है। एक माँ संस्कार और आदर्श का पाठ हमें बचपन से देती है। हम आगे चलकर एक सुयोग्य नागरिक एवं व्यक्ति के रूप में प्रतिस्थापित होते हैं। एक स्त्री जीवन-संगिनी के रूप में प्रेरणास्रोत होती है। सुता के रूप में आँखों की तारा होती है। बहन के रूप में हाथों पर रक्षाबंधन बांधती है।हमारी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का आधार स्तंभ नारियाँ हैं। स्त्रियों ने अपने प्राणों की ऊर्जा से संस्कृति के लोक-पावन प्रवाह को अमर एवं अक्षुण्ण रखा है। स्त्री के रूप में एक माँ जो अपने बच्चे के मानवीय ज्ञान के लिए प्रारंभ से अज्ञान का पटल हटाकर उनकी शक्तियों को प्रकाशोन्मुख करती है। 

वर्तमान में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर स्थान है। हर क्षेत्र में स्त्रियों ने अपना महत्वपूर्ण स्थान कायम किया है। आज अबला की बजाए सबला रूप में उनकी उपलब्धियों पर हम गौरवान्वित हैं। कई क्षेत्रों में स्त्रियाँ पुरुषों से आगे भी निकल चुकी हैं। बावजूद स्त्रियों के जीवन में चुनौतियाँ कम नहीं हैं। हम नारी को सशक्त बनाने की बात कर रहे हैं। कारण भी है कि नारी को प्रकृति ने कोमल, करुणाशील, ममतामयी, सहनशील आदि गुण दिए हैं। नारी में सृजनशीलता है। नारी प्रत्येक रूप में एक शक्ति है। वह माँ के रूप में पुरुष को जन्मती है और पालन-पोषण करती है। जीवन-संगिनी बनकर आजीवन साथ निभाती है। पर स्त्री को जीवन में पग-पग पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है चाहे वह जिस रूप में हो। यद्यपि यह चुनौती देश, काल, वातावरण, शिक्षा, मानसिकता, परंपराएँ, सामाजिक नियम, रीति-रिवाज के तदनुरूप अलग भी हो सकती हैं। भारत में जहाँ स्त्रियों ने लगातार सफलता के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं वहीं पर स्त्रियों के साथ उत्पीड़न और दुर्व्यवहार भी लगातार बढ़ रहे हैं। बाल दुर्व्यवहार, छेड़छाड़, सामूहिक बलात्कार, तेजाब फेंकना जैसी घटनाएँ तो लगातार हो रही थीं, वहीं छद्म प्रेमजाल में फंसाकर दैहिक शोषण, हत्या एवं अंग काटकर फेंकने जैसी घटनाओं की शुरुआत होनी एक भयावह स्थिति की तरफ संकेत दे रही है।
अभी हाल में ही इस तरह की एक घटना ने पूरे देश में स्त्रियों के खिलाफ उत्पीड़न के नए विमर्श ने जन्म दिया है। इसी तरह 2016 में दिल्ली के एक छात्रा के साथ बलात्कार की बर्बर घटना के बाद पूरे देश में हाहाकार मचा था। स्त्रियों में उत्पीड़न की बातें आज भी कहीं न कहीं हो रही हैं जिसे निम्नलिखित बिंदुओं से दर्शाया गया है और उनका समाधान कैसे हो, इस पर प्रयास किया गया है-
1- परिवार में असमानता का व्यवहार
स्त्री को जीवन में सबसे अधिक चुनौती अपने घर-परिवार में ही करनी पड़ती है। बेटी के रूप में उसे बेटे से कमतर माना जाता है। उसके पालन-पोषण और संरक्षण में अंतर किया जाता है। भाई के सापेक्ष उसकी शिक्षा-दीक्षा में पक्षपात होता है। बेटों के बलबूते वंश परंपरा चलाने की इच्छा अभी भी लोगों में है। हालांकि अब शहरों और महानगरों में सुत-सुता विभेद लगभग खत्म हुआ है। शिक्षा और जागरूकता के चलते इस पर प्रगति हुई है। गाँवों में और कम पढ़े-लिखे लोगों में कहीं-कहीं अभी भी बेटा-बेटी में विभेद है पर जल्द ही यह गलत परंपरा समाप्त हो जाएगी। लेकिन सोचनीय है हमारे समाज में अभी भी बेटियाँ परिवार के सदस्यों द्वारा या नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित हो रही हैं और शारीरिक शोषण की शिकार हो रही हैं। यह कहीं न कहीं हमारे संस्कारों में कमी, भावनात्मक लाभ और कानून के लचीलेपन की परिणिति है।
2- शिक्षा का अधिकार
आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, पर स्त्रियों के शिक्षा का स्तर उतना नहीं है। यद्यपि इसका अनुपात शहरों में न्यून है पर गाँवों में अभी भी लड़कियों को लडकों के मुकाबले कम शिक्षा प्राप्त हो रही है।10वीं या 12वीं के बाद लड़कियों की शिक्षा पर विराम लग जाता है जबकि लड़कों को उच्च शिक्षा के लिए शहरों या बाहर भेज दिया जाता है। यद्यपि गाँवों में भी कुछ माता-पिता अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहते हैं पर बाहर रहने की समस्या और आर्थिक समस्या उनके आड़े आ जाती है। 
3- प्रतिभा के अनुसार कार्य न कर पाना
स्त्रियों को जीवन में प्रतिभा के समानुपात अवसर न मिलना भी एक चुनौती है। जब बेटी बहू बनकर जाती है तो कई बार प्रतिभा के बावजूद ससुराल में उसे नौकरी या अपनी पसंद के अनुसार जॉब नहीं करने दिया जाता है। बमुश्किल वह ऐसा कर पाती है। गाँव में यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है। साथ ही अन्य तत्कालीन परिस्थितियाँ भी महत्वपूर्ण होती हैं।
4- पसंदीदा कैरियर न चुन पाना
प्रतिभा संपन्नता के बावजूद कभी-कभी मनपसंद कैरियर न चुन पाना भी स्त्रियों के लिए चुनौती है। उचित कार्यस्थल, सुरक्षा, कार्य समय आदि ऐसी और भी स्थितियाँ सम्मुख आती हैं, जो चुनौतीपूर्ण होती है जिसका समाधान आसान नहीं है। 
5- मनपसंद वैवाहिक संबंध
कई बार लड़कियाँ अपने पसंदीदा लड़के से चाहकर भी विवाह नहीं कर पातीं। परिवार और माता-पिता के मान-सम्मान की खातिर वह उनका विरोध नहीं कर पातीं और आजीवन घुटन में रहती हैं। लड़कियों को दूसरी जाति और अन्य धर्म में विवाह करने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यद्यपि कुछ विकृत मानसिकता के लोगों द्वारा जान-बूझकर भी लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाना वर्तमान में परिलक्षित हो रहा है। जिसकी कीमत स्त्रियों को जान देकर चुकानी पड़ रही है।
6- कैरियर को बनाए रखना
शादी के बाद परिवार और कैरियर के बीच सामंजस्य, उचित व्यवहार और समय प्रबंधन चुनौती है। प्राइवेट सेक्टर में जॉब करते हुए माँ बनना, उनका लालन-पोषण करना, उन्हें शिक्षा और संस्कार देना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। सरकारी सेवा में नौकरी करते हुए तो घर का प्रबंधन तो कुछ हद तो संभव है। परंतु प्राइवेट सेक्टर में यह मुश्किलों भरा है। 
7- कार्यस्थल पर कई मुश्किलें
स्त्रियों को कार्यस्थल पर कई मुश्किलें होती हैं। पुरुषों द्वारा यौन प्रताड़ना, कार्य की प्रकृति में भेदभावपूर्ण रवैया साथ ही कतिपय द्वारा कार्यसमय के बाद भी स्त्रियों को रोके रखना। सेवा और प्रमोशन में भी शारीरिक अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करना भी स्त्रियों के लिए कम चुनौती नहीं है। स्त्रियाँ जागरूकता और अपने अधिकारों की जानकारी द्वारा ऐसी चुनौतियों का सामना कर पाती हैं।
8- निर्धनता एवं न्यून शिक्षा
निर्धनता एवं न्यून शिक्षा भी स्त्रियों के लिए एक चुनौती है। निर्धन लड़की जब विवाहोपरांत ससुराल में जाती है, तो उसे उलाहना दिया जाता है जिससे निपटना शायद आसान नहीं होता है। कारणवश कम पढ़ी-लिखी लड़की के लिए यह समस्या और चुनौती होती है। अधिक पढ़े-लिखे लड़के की शादी जब न्यून शिक्षित लड़की से हो जाती है तो आपस मे सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है। यद्यपि ऐसा हर बार नहीं होता है। पूर्व में देखें तो न्यून शिक्षित लड़की भी गृहस्थी अच्छे से चलाती आई है। वर्तमान में आधुनिकता के बढ़ते वर्चस्व के कारण ऐसी चुनौतियों का सामना स्त्रियों को करना पड़ रहा है। 
9- कन्या भ्रूण हत्या एवं घरेलू हिंसा
बेटे की चाहत में कन्या भ्रूण हत्या स्त्रियों के लिए बड़ी चुनौती है। न चाहते हुए भी पति और परिवार वालों के दबाव में उन्हें गर्भपात कराना पड़ता है जिसके लिए कभी तो उनके जीवन को बचाने के लिए मुश्किलें हो जाती हैं। इसी प्रकार कम पढ़े-लिखे लोगों, बेरोजगारी अन्य कारण से पति नशे के आदी हो जाते हैं और आए दिन घर में पत्नी के मारपीट-गाली-गलौज करते हैं। यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के अनुसार आज भी हर साल भारत में 2000 कन्या भ्रूण हत्याएँ गैर कानूनी रूप से होती हैं।
10- यौन शोषण एवं बलात्कार
अखबारों और मीडिया में प्रत्येक दिन यौन शोषण एवं बलात्कार की खबरें होती हैं। नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यौरे के अनुसार हर दिन भारत में लगभग 86 बलात्कार के केसेज दर्ज होते हैं। जिसका अर्थ है हर 17 मिनट में देश के किसी कोने में किसी स्त्री के साथ दुष्कर्म होता है। अनरिपोर्टेड की तो भयावह तस्वीर है। 96.8 केसेज में स्त्रियाँ दुष्कर्मी को पहले से ही जानती और पहचानती हैं। क्योंकि वह कोई गाँव का व्यक्ति, करीबी रिश्तेदार या मित्र होता है। छोटी बच्चियों एवं कम उम्र की लड़कियों के साथ भी ऐसे समाचार सुनने को मिल रहे हैं। कभी-कभार तो इनका स्वरूप इतना क्रूर और अमानवीय होता है कि सुनकर हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि क्या यह हमारा वर्तमान समाज है और हम झूठे में आधुनिक होने का दंभ भर रहे हैं। 
11- शारीरिक शोषण के बाद हत्या
प्रेमजाल में फंसाकर लड़कियों का शारीरिक शोषण करना, यौन संबंध बनाना और जब लड़की उसका विरोध करें या इस अपराध को छुपाने के लिए हत्या कर देना। कुछ विकृत मानसिकता वाले तो लड़की के शरीर को कई टुकड़ों में काटकर फेंक देने की बात सामने आई है।
12- विज्ञापन और संचार माध्यमों द्वारा विकृत छवि का प्रदर्शन
लगभग प्रत्येक विज्ञापनों में स्त्रियों की विकृत छवि का प्रदर्शन किया जाना आम बात हो गई है। कम से कम कपड़े में लड़कियों के शरीर का विज्ञापन करना और अपने उत्पादन के प्रचार-प्रसार के लिए उनका सहारा लेना भी वर्तमान में स्त्रियों के लिए चुनौतियों से भरा है।
चुनौतियाँ और उनके उत्पीड़न का समाधान-
स्त्रियों के लिए जीवन में कदम-कदम पर चुनौतियाँ तो हैं, जिसके लिए समाधान भी आवश्यक हैं। कुछ समाधान पर विचार किया जाना और उसे लागू किया जाना अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। यद्यपि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत महिलाओं को न्यायालय एवं अधिकारियों के माध्यम से कई सुरक्षा प्रदान की गई है। सबसे महत्वपूर्ण संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति है, उसे यह दायित्व सौंपा गया कि उसके अधिकार क्षेत्र में कोई महिला यदि घरेलू हिंसा की शिकार होती है तो वह महिला से संपर्क कर उसे अधिनियम से मिलने वाली संपूर्ण जानकारी, सुविधा, सुरक्षा देगा। फिर भी जानकारी के अभाव में पीड़ित स्त्री को लाभ नहीं मिल पाता है। पीड़ित स्त्री के उत्पीड़न के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय हो सकते हैं-
1- स्त्रियों के प्रति यदि अपराध होता है तो उसकी प्राथमिकी अविलंब दर्ज होनी चाहिए। जिसके लिए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक कार्यवाही तुरंत प्रारंभ कर देनी चाहिए।
2- स्त्रियों के उत्पीड़न पर तुरंत कार्यवाही शुरू होनी चाहिए और अपराधियों की धरपकड़ हो।
3- यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामले में जाँच-पड़ताल कम समय में हो।
4- स्त्रियों के प्रति अपराध में कड़े कानून और सजा का प्रावधान हो।
5- असहाय पीड़ित महिला के लिए परामर्श या सहायता केंद्र पर्याप्त मात्रा में हो।
6- स्त्रियों को आत्मरक्षा के लिए जूडो-कराटे, बॉक्सिंग आदि सीखना आवश्यक है।
7- न्यून शिक्षित एवं निराश्रित स्त्रियों के लिए आय अर्जित करने के साधन उपलब्ध होने चाहिए।
8- अन्य ऐसे उपाय जिससे स्त्रियों का आत्मबल मजबूत हो सकें और वो विषम परिस्थितियों में अपने को कमजोर न पड़ने दें और ताकतवर बनकर प्रतिउत्तर दें।
स्त्रियों के जीवन के समक्ष चुनौतियाँ तो सदैव रही हैं, चाहे वो कामकाजी स्त्रियाँ हों या घरेलू स्त्रियाँ। स्त्रियाँ यदि कामकाजी हैं तो उनको दोहरे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। घरेलू चुनौती एवं कार्यस्थल की चुनौती। उसे दोनों में सामंजस्य बिठाना होता है। हमारे देश में कामकाजी महिलाओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है वैसे ही चुनौतियाँ भी क्रमिक रूप से बढ़ रही हैं। चुनौतियों के बावजूद स्त्रियों ने पुरुष वर्चस्व को लाँघकर नई सीमा रेखा का निर्माण किया है और प्रत्येक क्षेत्र में नई कामयाबी की नई मिसाल को कायम किया है। शिक्षा, विज्ञान, खेल, साहित्य, बैंकिंग, राजनीति, सेना आदि वह क्षेत्र हैं जहाँ स्त्रियों ने अपने को अच्छे से प्रतिस्थापित किया है। लड़कियों की शिक्षा, लिंग अनुपात में भी सुधार हो रहा है। जिससे उनकी चुनौती अनुपात में कम है। सामाजिक गतिविधियों में भी स्त्रियों की बढ़ती भागीदारी से मनोबल में वृद्धि हुई है, जो हमारे समाज के लिए सकारात्मक प्रभाव का संकेत है। कामकाजी स्त्रियाँ घरेलू जिम्मेदारी के साथ ही कार्यस्थल पर अच्छा कार्य प्रदर्शन कर रही हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी भागेदारी वैश्विक कार्यों में लगातार बढ़ी है। ऐसे भी संकेत हैं, जो सकारात्मक हैं। रक्षा क्षेत्र में भी सैनिक से लेकर उच्च अधिकारियों के रूप में कार्यरत हैं। फाइटर विमान चालक बनकर देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। शोध, चिकित्सा एवं अनुसंधान में भी स्त्रियाँ अपनी भूमिका निभा रही हैं। खेल में पी. टी. उषा, सानिया मिर्जा, मिताली राज, एम. सी. मैरीकॉम, पी. वी. सिंधू, साक्षी मालिक, दीपा करमाकर, दीपिका कुमारी, कर्णम मल्लेश्वरी आदि ऐसे नाम हैं, जिन्होंने भारत की चमक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिखेरी है।
साहित्य के क्षेत्र में तो प्रारंभ से महिलाओं का योगदान रहा है। महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, महाश्वेता देवी, मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा, ममता कालिया, इस्मत चुगताई, रोमिला थापर, चित्रा मुद्गल, अलका सरावगी, नासिरा शर्मा, मृदुला गर्ग, मृणाल पांडे, मल्लिका सेन गुप्ता, नयनतारा सहगल, सूर्यबाला आदि अनेक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने वैश्विक फलक पर साहित्य की प्रभा बिखेरी है।
यद्यपि यदि वैश्विक परिदृश्य का हम आंकलन करें तो पाते हैं स्त्रियों की दशा और दिशा के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। कई राष्ट्रों में स्त्रियों पर अनेकों पाबंदियाँ आज भी हैं और कई पश्चिमी देशों में उनकी स्वतंत्रता उनकी खुली संस्कृति का परिचय देती है। फिर भी वहाँ पर भी उत्पीड़न की घटनाएँ होती हैं यद्यपि अन्य देशों के अनुपात में कम ही हैं। भारत में धीरे-धीरे स्त्रियों की दशा पहले से बेहतर हुई है। हमारे देश में आज एक आदिवासी स्त्री द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद पर आसीन हैं। इसके पूर्व प्रतिभा पाटिल भी राष्ट्र के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर रह चुकी हैं। बड़ी-बड़ी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं में सर्वोच्च पदों पर रहते हुए सफलता की ओर अग्रसर है। किंतु संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ है। जिस तरह भारत में वैदिक युग में स्त्रियों को सम्मान प्राप्त था, वही प्रयास करना होगा।

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
मोहल्ला- बरगदवा (नई बस्ती)
निकट- गीता पब्लिक स्कूल
पोस्ट- मड़वा नगर (पुरानी बस्ती)
जिला- बस्ती 272002 (उ. प्र.)
मो. 7355309428

 

पोस्ट को रेट करें:

12345


अपनी प्रतिक्रिया दें


    About sahityasaroj1@gmail.com

    Check Also

    "साहित्य सरोज त्रैमासिक पत्रिका - कविता, कहानी, लेख, शोध पत्र, बाल उत्‍थान, महिला उत्‍थान, फैंशन शों, शार्ट फिलम और विशेष आयोजन के लिए पढ़ें। संपादक: अखण्ड प्रताप सिंह 'अखण्ड गहमरी

    खत्‍म होती रिश्तों की मिठास कैसे -दीपमाला

    “वसुधैव कुटुम्बकम”की भावना से ओत प्रोत सनातन संस्कृति l जहाँ सिर्फ अपना परिवार ही नहीं …

    Leave a Reply

    🩺 अपनी फिटनेस जांचें  |  ✍️ रचना ऑनलाइन भेजें