बात 1999 की है जब मैं पानीपत रहती थी। कटनी मध्यप्रदेश से जाते समय मुझे दो ट्रेन बदलनी पड़ती थी। बहुत ही मुश्किल का सफर होता था । एक बार में मैंने दिल्ली से आगे की जब ट्रेन बदली और दूसरी ट्रेन में मैं चढ़ने लगी।तभी मैंने देखा कि बहुत अधिक भीड़ है। मैं परेशान हो गई। किसी तरीके से दो सूटकेस थे,उनको ट्रेन में रखा और मेरा छोटा बच्चा था,मैंने उसको चढ़ाया। लेकिन हम लोगो के चढ़ने के फहले ही ट्रेन चलदी। अभी मैं,मेरे पति,मेरी बेटी तीनों ही नीचे थे। पति ने झट से बेटे को उठा लिया। मैंने देखा कि सूटकेस तो चले जा रहे हैं। मैं दौड़ करके ट्रेन में चढ़ने लगी तभी फिसल के नीचे गिर गई, लेकिन कहते हैं ना कि माया का मोह बहुत प्रबल होता है।बस फिर उठी, दौड़ी और मैं ट्रेन में चढ़ गई।फिर किसी ने हल्ला मचाया ।चैन खींची गई, ट्रेन रुकी। बड़ी मुश्किल से मेरे पति और बच्चे भी ऊपर चढ़े ।
अभी हम लोग आगे बढ़कर बैठने की जगह देख ही रहे थे तो देखा एक सीट में बहुत सारे बच्चे हैं साथ ही उनके मम्मी पापा भी बैठे हुए हैं।हम लोग किसी तरीके से थोड़ी सी जगह बना कर उनके सामने बैठ गए। वो करीब 9 बच्चे थे। अब हम लोग यही सोच रहे थे की क्या ये सभी बच्चे इनके हैं। थोड़ी देर में उनसे मेरी थोड़ी जान-पहचान हो गई।मैंने उनसे पूछ लिया क्या ये आपके बच्चे हैं ।वे बोली जी हां ये सभी बच्चे मेरे हैं। हम लोग बड़े आश्चर्य में थे की इतनी उम्र तो इनकी नहीं दिख रही है। लेकिन और अधिक पूछने की हिम्मत नहीं हुई। उनका हमारा काफी वार्तालाप हुआ,लेकिन वह राज नहीं खुला कि इतने बच्चे क्यों हैं ।मैंने सोचा शायद जुड़वा 2-3 बार हो गए होंगे पर मन में खटका बना ही रहा ।उन्होंने हमने साथ मिलकर खाना भी खाया ।जब भी कोई चीज बिकने आई वे सभी बच्चों को बराबर देती।अभी ट्रेन चल ही रही थी, हम लोगों का सफर पूरा होने वाला था।तभी एक बच्चा उसमें मांगता हुआ आ गया। वह बार-बार खाना मांग रहा था,पैसे मांग रहा था।जैसा कि सभी करते हैं किसी ने दिया किसी ने नहीं दिया। तभी वह महिला उठी और उसे बच्चों के पास आई उनके पति भी उसके पास आए और पूछने लगे कि तुम कहां से आए हो ।तुम्हारे मम्मी पापा कहां हैं ?तब वह बच्चा बोला-मेरे मम्मी पापा मुझे नहीं मालूम कहां है ?वह मुझे इस ट्रेन में छोड़ गए थे तब से मैं ऐसे ही मांग कर खाता हूं और यहीं कहीं किसी भी जगह में सो जाता हूं । उसकी बातें सुनकर के हृदय तो सभी का द्रवित हुआ, लेकिन किसी ने कुछ कदम नहीं उठाया। तब वे पति-पत्नी बोले कि तुम हमारे साथ रहोगे। वो बच्चा थोड़ा सकपकाया।थोड़ा सकुचाया। लेकिन उनके बार-बार समझाने पर, प्यार से दुलारने पर वह उनके साथ रहने के लिए राजी हो गया ।उन्होंने तुरंत खाना मंगाया।उसे खाना खिलाया। महिला अपने पर्स से कंघी निकाल के उसकी कंघी करने लगी।उसका मुंह धुलाया और उसको अपने पास बैठा लिया। मैंने कहा अब आप इसको कहां ले जाएंगीं? तो वो बोली- बस आज से यह मेरा बेटा है । मेरे पास रहेगा।
तब मेरे दिमाग में कुछ खटक से बात आई।ओह तो ये बात है। अब की बार मुझसे ना रहा गया ।मैंने उनसे पूछ ही लिया।ये सब बच्चे भी इसी तरह से आपका परिवार बने हैं। उन्होंने हां में सिर हिला दिया ।वो बोली- जी हां किसी के पेट से जन्म लेते हैं। मेरे ऐसे ही सारे बच्चे पैदा हुए हैं ।सिर्फ उनमें एक 5 साल का बच्चा था जिसको उन्होने जन्म दिया था ।उसके बाद उन्होंने कोई भी संतान को जन्म नहीं दिया और वह कहने लगी कि आज से मेरे 10 बच्चे हो गए ।मैं और मेरा परिवार उन दोनों पति-पत्नी को शत-शत नमन करते रहे और सोचते रहे कि ऐसे भी लोग होते हैं। आज भी मुझे उनकी वह उदारता बराबर याद रहती है और कोशिश करती हूं कि उनके जैसा थोड़ा भी कर पाऊं तो मैं अपने आप को धन्य समझूगी। अब तो मैं एम.पी कटनी में रहने लग गई हूं ।लेकिन करीब 4 साल पहले मेरा फिर पानीपत जाना हुआ। इत्तेफाक की बात है कि वह मुझसे फिर उसी ट्रेन में टकराई। मैं उन्हें पहचानने की कोशिश करती रही आखिर में उन्होंने भी मुझे पहचान ही लिया। मैंने देखा कि उनके साथ में एक नववधू है ।दो बड़े बड़े बच्चे हैं। मैं पूछने लगी यह वधू कौन सी है ।
वे बोली- मेरे उन्ही 10 बच्चों में से एक की मैंने शादी कर दी है ।दो लड़कियों की शादी कर दी है सब अपने-अपने घर में हैं।सभी अच्छी नौकरी और व्यावसाय मे है ।इस वधू को अभी मैं अपने साथ ब्याह कर ले जा रही हूं। मेरा बहुत बड़ा परिवार हो गया है। अब तक तो बच्चे भी 10 से 25 हो गए हैं ।
मैं एक बार फिर उनके आगे नमन थी।
रागिनी मित्तल,कटनी,मध्यप्रदेश
साहित्य सरोज लेखन प्रि