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चाँदनी रात-अवनीश

 बात मेरे ही शहर की है जिसे अब प्रयागराज कहते है पर अभी भी सभी की जुबान पर इलाहाबाद ही चढ़ा हुआ है,तो ये घटना लगभग 40-50 बरस पुरानी है जब इलाहाबाद से नैनी जाने के लिए अक्सर हम जैसे लोग पुल के स्थान पर नाव से ही सफर करते थे, मेरा घर दारागंज मुहल्ले में था और ये नैनी में रहते थे,उस समय हम लोग अक्सर नाव से ही नैनी जाया करते,नैनी ब्रिज से जाना कुछ अधिक समय लेता। उस रात भी मैं गंगा नदी के रास्ते,नाव से नैनी अपने पति के पास जा रही थी। मेरी नई नई शादी हुई थी ,उस समय मैं सम्पूर्ण युवती थी, खुले बड़े काले केश, कजरारी आंखे जिनसे नींद कोसो दूर,अपना ही तन बेहद खूबसूरत लगता था ,कई बार तो ऊपर खिला चांद देखती कभी निर्मल चांदनी में धवल गंगा जल में अपनी छवि, चांद भी गङ्गा जल में मैं भी,दोनों एकसे सुंदर,चमकदार। ऐसा लग रहा था कि मां गंगा मुझे अपनी गोद मे बिठा कर मेरी ससुराल पहुंचा रही है।कभी मैं नाव से झुक कर पानी से अठखेलियाँ करती कभी पानी मे अपनी छवि निहारती।कहीं सुमधुर गीत बज रहा था।रात का समां झूमे चंद्रमा। तट के उस पार मेरे सुदर्शन छवि वाले अर्द्ध रात्रि में मेरी बाट जोह रहे थे, उनकी निग़ाहें निरन्तर मेरी नाव पर टिकी थी जो मद्धम गति से तट की ओर बढ़ रही थी।
इतनी अर्द्ध रात्रि में इस तरह नाव से यात्रा का प्रयोजन था कि ये मेरे पति शादी के तुरंत बाद बम्बई चले गए थे, हमारी शादी और इनकी सर्विस साथ साथ ही हुई,ये बम्बई अब मुंबई में ठौर ठिकाने की व्यवस्था,कहाँ जॉइन करना है, कैसे आना जाना होगा,काम कैसा है सब समझ बूझ कर लौटे थे,किसी सरकारी बैंक में लीगल डिपार्टमेंट में लॉ ऑफिसर की पोस्ट थी इनकी,बैंक तब फ्लैट नही दे पाते थे किराये की खोली की व्यवस्था वगैरह देख कर आये थे,इधर मेरा भी बी ए का सेकंड ईयर कुछ महीनो मे खत्म हो रहा था।हुआ यूं था कि एक दिन ये हमें कॉलेज से लौटते समय अलोपी मंदिर में देख लिए हमारी खोज खबर भी कर लिए,जात बिरादरी एक ही थी शादी भी फटाफट हो गई बस इतनी शर्त की हम कम से कम बी ए तो पास कर ही ले तभी शादी व घर गृहस्थी के चक्कर में आगे बढ़े, ये तो हर शर्त पर राजी,लट्टू जो गए थे हमारे रूप पर।खैर नाव अब किनारे धीरे धीरे पहुंच रही है,मेरा यानि युवती का दिल अपने ही पति के पास जाने में न जाने क्यों तेज़ी से धड़क रहा है,मन खूब खूब खुश है न जाने क्यों।
चांद भी आसमान में मुस्करा रहा है,नदी भी अपनी बेटी को सुरक्षित हाथों सौंप शांत हो गई है,बस नाविक अपने चप्पू समेट रहा है।नाव किनारे आन लगी ,इनका मजबूत हाथ मेरे गोरे व कोमल हाथों को पकड़ कर नाव से उतार लिए,मन हुआ वही लोक लाज छोड़ कर इनको थाम लूं पर स्त्री लाज भी तो कुछ होती ही है।मैं इनके चरणों पर झुक गई,इन्होंने दोनो हाथों थाम लिया,एक आंसू इनकी आंखों में भी मुझे दिखा शायद मिलन की खुशी या नवजीवन की शुरुआत का शगुन ,कुछ तो था।हम अपने नैनी स्थिति घर की ओर बढ़ लिए,कहीं दूर ट्रांज़िस्टर पर गीत बज रहा था।धीरे धीरे चल चांद गगन में।हम कुछ दिनों में बम्बई आ गए,अपना नया आशियाना सेट करने पर वो चांदनी रात,नाव,नदी,नाविक,मेरे खुले बाल,ह्रदय की धड़कन अभी भी कहीँ यादों में महफूज़ है और महफूज़ रहेगीं।

अवनीश भटनागर
P 903
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