हमारी भारतीय संस्कृति, पर्व और त्योहारों की संस्कृति है। यहाँ वर्ष पर्यंत त्योहारों ,उत्सवों की एक श्रृंखला चलती रहती है। जिनमें भारतीय संस्कृति – सभ्यता के प्रेरणादायक शुभ संदेश सम्मिलित रहते हैं। और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित भी होते हैं।हालांकि वर्तमान परिदृश्य में हमारे पर्वों – त्योहारों का स्वरूप कुछ बदला सा गया है लेकिन उनमें नीति आस्था आदर्श यथावत है।हमारी भारतीय संस्कृति, त्योहारों उत्सवों की पावन श्रृंखला में आज हम एक ही दिन मनाए जाने वाले दो पर्वों के महत्व की चर्चा करेंगे।श्रावण मास में मनाए जाने वाले पावन पर्वों में श्रावणी और रक्षाबंधन का महत्वपूर्ण स्थान है। और यह दोनों पर्व एक ही दिन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाए जाते हैं। और इस वर्ष यह पर 19 अगस्त , सोमवार को मनाए जाने हैं। श्रावणी पर्व को सृष्टि का जन्मोत्सव भी कहा जाता है। क्योंकि श्रुतियों के अनुसार इसी दिन परमपिता परमात्मा की स्फुरणा से ‘ एकोऽहं बहुस्याम्’ का संकल्प साकार हुआ था।
परमात्मा और उनकी आद्यशक्ति प्रकृति से ही इस सृष्टि ने जन्म लिया। वैसे तो श्रावणी के दिन अनेक ने विशिष्ट आयोजन, पूजन, शुभ यज्ञ कर्म किए जाते हैं, जैसे यज्ञोपवित, परिवर्तन शिखासिंचन, हिमाद्रि संकल्प इत्यादि। यह सभी तो विशेष अनुष्ठान हैं। लेकिन हम साधारण रूप से भी श्रावणी पर्व को मना सकते हैं।इस दिन यथा संभव पूजा,हवन, दान करते हुए हमें स्वयं की आत्म शुद्धि के लिए सद्गुणों को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए। ज्ञान, सत्कर्म से संकल्पित करने वाले श्रावणी पर्व के साथ-साथ इसी दिन हम रक्षाबंधन का पावन पर्व भी मानते हैं। रक्षाबंधन हमारी संस्कृति का एक विशिष्ट त्योहार है। यह भाई – बहन के पवित्रतम् संबंध को प्रगाढ़ बनाने वाला पर्व है जो भावनाओं के सूक्ष्म सूत्रों को नई ऊर्जा और उल्लास से पोषित करता है।
हमारे इतिहास में ऐसे अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं और सैकड़ो विवरण हैं जो दर्शाते हैं कि रक्षाबंधन पर्व युगों- युगों से राष्ट्रीय व सामाजिक मर्यादाओं को सहेजने और बहनों की अस्मिता को सुरक्षा हेतु संकल्पित होने का महापर्व रहा है। इससे संबंधित अनेको गाथाओं से हमारा इतिहास सुशोभित है उदाहरण स्वरूप ; द्रौपदी द्वारा भगवान श्री कृष्ण को रक्षा सूत्र बांधकर, रक्षा का वचन मांगने वाला दृष्टांत हो या फिर रानी कर्णावती द्वारा हिमायूँ को रक्षा सूत्र का भेजा जाना और फिर उनके द्वारा अपनी बहनों की अस्मिता की रक्षा का वचन निभाया जाना हो।इतिहास की इन महागाथाओं से लेकर वर्तमान समय तक यह त्योहार अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं ,और विश्व समुदायों के लिए यह एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
यह पवित्र त्योहार नारी जाति के प्रति सम्मान और पवित्र भाव ,भाई – बहन के स्नेहसूत्र के दिव्य आदर्शों और संवेदनाओं का परिचय करता है।परंतु यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजकल कोई भी पर्व, त्योहार हो , सभी का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण बढ़ता ही जा रहा है जिस पर अंकुश लगाना परम आवश्यक है।वर्तमान की उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों के कारण इस महान पर्व को भी दिखावटी रूप से परिभाषित किया जाने लगा है।
भाइयों की कलाई पर बंधने वाले रक्षा सूत्र के औपचारिक स्वरूप ने अनेकों प्रकार की रंगीन, महंगी – महंगी राखियों ने ले लिया है। और इस त्योहार को मनाने के पीछे का उद्देश्य, संकल्प और भावनाएं पीछे छूटती हुई सी प्रतीत होती हैं।इससे पहले कि हमारी भारतीय संस्कृति के धरोहर ये सभी पर्व, उत्सव, त्योहार समूचे समाज में एक फैशन मात्र बनकर रह जाए, हमें अपने त्यौहारों की पावन- पवित्र भावनाओं, आदर्शों एवं उद्देश्य को जीवित रखने का प्रयास करना चाहिए।यदि प्रत्येक बहन रक्षा सूत्र के बदले अपने भाई से प्रत्येक नारी के प्रति आदर-सम्मान के भाव का वचन ले। तथा प्रत्येक भाई अपनी बहन की रक्षा के साथ – साथ प्रत्येक नारी के प्रति सम्मान का भाव रखने का संकल्प लेते हैं तो वर्तमान परिदृश्य में दिखाई पड़ने वाली नारी शोषण व अत्याचार की घटनाओं में काफी कमी आ सकती है। और नारी जीवन की पवित्रता व अस्मिता सुरक्षित रहे , जो कि इस पावन पर्व रक्षाबंधन का उद्देश्य भी है, वह सार्थक हो सकता है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को संकल्पित व प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है।
आजकल कला व व्यवसाय के नाम पर नारी के श्रृंगार और सौंदर्य का जिस प्रकार बाजारीकरण किया जा रहा है वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है । इन दुष्ट प्रवृत्तियों , अपसंस्कृतियों को रोकने के लिए हमें ठोस कदम उठाने चाहिए तब ही हमारी संस्कृति की सुचिता बनी रह सकती है।श्रावणी और रक्षाबंधन पर्व के दिन ही प्रकृति के आंचल से सृष्टि प्रकट हुई थी। अतः इस दिन वृक्षारोपण और उसके संरक्षण के प्रति भी हम सभी को संकल्पित होना चाहिए। प्रकृति व नारी जीवन की सुरक्षा ; यही इस महा पर्व का पावन उद्देश्य है। और इस दिन हमें इनकी सुरक्षा, संरक्षण के प्रति वचन- बद्ध होना चाहिए।
लेखिका- अलका गुप्ता
नई दिल्ली
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