प्रकृति की गोद में बसा प्यारा सा गांव डोंगरिगुड़ा-दीपमाला

 प्रकृति की गोद में बसा प्यारा सा गांव डोंगरिगुड़ा, जैसे प्रकृति ने अपना समस्त ममत्व, प्यार, दुलार इस पर वार दिये हो l झरने की कल-कल ध्वनि, गाय बैल के गले से बजती हुई घंटियों की आवाज, चहकते हुये पक्षियों का कलरव अपने आप में अनुपम l इसी गांव में बुधनी व समारू का छोटा सा परिवार रहता है l आधुनिकता से परे शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में पलता l इन लोगों का जीवन पूर्णतः प्राकृतिक है,अभी भी l ब्रश के स्थान पर दातून का उपयोग, बर्तनों में अभी भी मिट्टी व पत्तल का प्रयोग, दवाईयों के रूप में वणौषधि का उपयोग, बहुत ही संतोषी व सुखी जीवनl
यहाँ गांव में घर मिट्टी व ईंट का बना होता है l ईंट अधिकांशतः ये घर पर ही बनाते हैं व घर का निर्माण व रिपेयरिंग जैसे कार्य भी स्वयं से ही करते हैं l एक दिन घर को लीपने के लिए बुधनी को मिट्टी की आवश्यकता होती है वो समारू को मिट्टी लाने की बात कहती है l फिर दोनों मिट्टी लाने के लिए जंगल की ओर जाते हैं l जंगल में पहुंच कर समारू मिट्टी खोदने लगता है l पर ये क्या मिट्टी से डिस्पोजल व प्लास्टिक की बोतलें निकल रही थी l
दोनों बहुत चिंतित हुये क्योंकि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था l उन्होंने उस स्थान को छोड़कर थोड़ी दूर में खोदना फिर आरंभ किया, पर यहाँ पर भी वही रोना lये देखकर दोनों हैरान हो गये कि इतना डिस्पोजल आया कहाँ से l सही मिट्टी मिल नहीं पा रहा था l फिर उन्होंने आस पास देखना आरम्भ किया कि इतना गंदगी आया कहाँ से l थोड़ी दूर में उनको शराब की दुकान दिखाई दी l जिसको खुले ज्यादा दिन नहीं हुआ था क्योंकि शराब दुकान अभी शहर से थोड़े दूर खोले जा रहे हैं l
शराब दुकान से पीने वाले शराब लेकर जंगल में पीने जाते हैं l पीने के बाद डिस्पोजल, पानी की बोतलें वही छोड़ देते हैं l ऐसा करते करते न जाने कितनी गंदगी माता धरती में समाहित हो रही है जो पृथ्वी की उर्वरता व मिट्टी की गुणवत्ता दोनों का क्षरण कर रही है l ये देखकर दोनों बहुत उदास हुये l
आज हमारी वसुंधरा के नयन नित नीर से अनवरत भीग रहे हैं l सबसे सहनशील माता पृथ्वी जो मानवों के हर कृत्य को सहती है और जब सहनशक्ति की सीमा हदें पार कर देती है तो मानवों को सबक सिखाने के लिए कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा के रूप में प्रस्फुटित होती है l पर इतने में भी मानव समुदाय कहाँ रुका है l भौतिक उपभोग के साधन जुटाने में नित प्रकृति का दोहन करते उसके बच्चों को ये ध्यान ही नहीं है कि वे अपनी ही माता को लहूलुहान कर रहे हैं l
जो धरती हरीतिमा से युक्त हुआ करती थी आज नजर फैला कर देंखें तो जहां तहां बिखरी डिस्पोजल, कचरा, गंदगी का जाल बिछ गया है-धरती के ऊपर l पार्टियों में, पिकनिक में, शराबियों द्वारा जितना उपयोग लाया जा रहा है उसे कहीं भी फेक दिया जाता है l
डिस्पोजल अर्थात उपयोग के बाद फेंक दी जाने वाली वस्तु l मानवों के लिए कितना आसान है उपयोग करो और फेंक दो l पर फेंकने के बाद ये विचार क्यों नहीं आता कि फेंका हुआ या तिरस्कृत किया हुआ हमारे लिये कितना घातक हो सकता है l हमें थोड़ी सी कष्ट मिलने पर कितना चीख पड़ते हैं हम और इतना कचरा धरती पर बिखराते समय हमें धरती के कष्ट का भान ही नहीं रहता है न ही मिट्टी के दूषित होने का lयही लापरवाही आज मानव समुदाय के लिए कष्ट का कारण बन रहा है l पर मानव ने तो खाली प्रकृति का दोहन किया है वो कब रुका है अपने स्वार्थ से ऊपर lये बहुत ही चिंता जनक विषय है क्योंकि ये मानव समुदाय द्वारा मानव समुदाय के लिए ही नहीं अपितु पूरे प्राणि समुदाय के लिए किया गया हानिकारक कृत्य है और इस संकट से निकलने के लिये हमको ही प्रयत्न करना पड़ेगा l

दीपमाला वैष्णव
9753024524

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