वर्तमान समय में भारत विकास के पथ पर तीव्र गति से बढ़ रहा है। और इस विकास में सड़के अपना प्रमुख योगदान दे रही हैं। परन्तु आये दिन होते सड़क हादसे न सिर्फ युवाओं को काल के गाल में समाहित कर रहे हैं बल्कि मॉं-बाप, पत्नी-पुत्र को भी अनाथ कर दें रहे हैं। किसी के साथ हुए हादसे का असर उसके पूरे परिवार पर पड़ता है, मगर उसके मॉं-बाप एवं पत्नी व बच्चों पर उसका सीधा होता है। जिनका घर सड़को के किनारे है वह देखते होगे कि देर रात तक फर्राटा भरती तेज आवाज की गाड़ीयों का शोर सुनाई देता है। ऐसा लगता है कि 1 मिनट देर हुई तो भूचाल आ गया। कभी किसी को टोक दो तो ऐसा लगता है कि कितनी बड़ी गलती आपने कर दिया। इस तेज रफ्तार में सबसे अधिक चलने वाले कम उम्र के बच्चे से लेकर 25 साल के युवा अधिकांश होते हैं। चाहे वह मोटर साइकिल चला रहे हों या 4 चक्का वाहन। और यदि किसी लक्जरी गाड़ी का स्टेरिंग उनके हाथ में है फिर तो पूछना ही नहीं। सड़क कौन सी है? भीड़ कितनी है? कोई मतलब नहीं होता। उनकी न चाल कम होती है न स्टाइल।
कभी अपने आसपास के ट्रामा सेंटर में जाईये तो पता चलता है कि भर्ती रोगीयों में 80 प्रतिशत सड़क दुर्घटना के शिकार हो कर आये हैं। परिजन इलाज को, बेड को तड़प रहे हैं। अंजाने डर से सोना-खाना भूल गये हैं।
देखा जाये तो किसी का अचानक मुड़ जाना, बच्चों का चलते हुए सड़क पर गिर जाना, नशे में वाहन चलाना, मौसम की खराबी, वाहन में खराबी होना दुर्घटनाओं के कारण है । लेकिन दुर्घटनाओं का 90 प्रतिशत कारण वाहन पर से नियंत्रण खो बैठना, सड़क पर किसी जानवर या आदमी का अचानक बीच में आ जाना, नींद लग जाना है। जिस पर कम रफ्तार वाले वाहन तो आसानी से काबू पा जाते हैं । लेकिन वाहन की रफ्तार 50 की जगह 80 रहने पर दुर्घटना निश्चित है। अकसर देखा जाता है कि हम घर से निकलते हैं और बाजार जाने या घर के पास जाने के नाम पर हेलमेट नहीं लगाते, हेलमेट को हम पुलिस से बचाव की चीज ही समझते हैं, लेकिन असल में देखा जाये तो हेलमेट पुलिस से नहीं हमें जिन्द़गी खोने से बचाता है। मैने बहुतो को देखा है कि यदि वह घर से 100 मीटर दूर जाने के लिए भी बाइख उठायेंगे तो उनके सर पर हेलमेट जरूर होगा। उनकी इस आदत को हम सब को अपनाना होगा।
लगातार होते हादसों पर लगाम लगाने में शासन-प्रशासन, माता-पिता सफल नहीं हो रहे है, इस लिए हम इसकी कमान खुद आज के युवाओं को थाम लेनी चाहिए। ताकि वह अपने किसी प्यारे मित्र को खोने का दंश न झेले। वह आपस में तय करें कि हम वाहन को हवाई जहाज नहीं वाहन की तरह चलायेगें और न किसी अपने या अपने मित्र को चलाने देगें। अपने वाहन की प्रतियोगिता ट्रेन से न करायेगें न करेगें। जो ऐसा करे उसका बहिष्कार करें। दाम-साम-दंड-भेद सब यतन कर इसे रोंके।आज यदि आज का युवा ऐसा कर सका और एक भी घर उड़ने से बचा लिया तो यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी अपने असमय काल के गाल में समाये एक मित्र को, अपने एक हमजोली को, अपने एक साथी को। आप ही आगे आकर रोक सकते हैं किसी मां के आंसू।
प्रिय पाठक बंधु साहित्य सरोज इस वर्ष 25 दिसम्बर 2024 से सड़क हादसों पर जनगारूगता फैलाने के लिए एक देश-व्यापी अभियान की शुरूआत करने जा रहा है। मेरा आप सभी से निवदेन है कि आप चाहे जो कर रहे हो, देश के किसी कोने में रह रहे हो, देश हित में समाज हित में। तो आईये हमारे साथ मिल कर हम किसी के दूध, किसी के सुहान और किसी के रेश्मी धागों को टूटने से बचाने, किसी पुत्र-पुत्री को अनाथ होने से बचायें। किसी बाप के बुढ़ापे की लाठी को बचायें। आप तन-मन-धन से हमारे साथ जुड़ कर इस अभियान में सहभागी में बने, हम देश के हर कोने में जाकर इस जन-जागरूकता अभियान को विभिन्न माध्यमों से फैलायेगें। और प्रयास करेगें कि इस मृत्यु की रफतार में रोक लग सकें। पूरे भारत में एक साथ छोटे-छोटे समूह बनाकर इस को रोकने का प्रयास करते हैं।
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अखंड गहमरी