बदले हालात-डॉ. दीक्षा चौबे

 क्षितिज ने स्कूल से आते ही अपना बस्ता फेंका और यूनिफॉर्म बदल कर जल्दी से  हाथ-मुँह धोया ताकि पिंटू ,अनीश से पहले वह खेल के मैदान में पहुँच सके। तभी रसोईघर से आती खुशबू ने उसके कदम रोक लिए। समोसे….चिल्लाते हुए वह रसोई में जाकर मम्मी से लिपट गया। मम्मी उसकी इस हरकत को देखकर मुस्कुराने लगी । उन्हें पता है नाश्ता क्षितिज की कमजोरी है और समोसा तो उसका फेवरेट । वह गरम-गरम समोसे तलते गईं और क्षितिज खाते गया। आखिर मम्मी को ही कहना पड़ा -“अब बस करो बेटा, पेट खराब हो जाएगा।”
“आप तो कहतीं हैं बाहर की चीजें खाने से पेट खराब होता है ये तो घर में बने हैं फिर क्यों नुकसान होगा?”
बेटा – जरूरत से ज्यादा कोई भी चीज खाओगे तो वह नुकसान ही करेगी चाहे वह घर का ही बना क्यों न हो।तब क्षितिज जी का खाना बंद होता। “जल्दी-जल्दी मत खाओ क्षितिज” खाना गले में अटक जाएगा – मम्मी कहती ही रह गई और क्षितिज यह जा वह जा।
अपना क्रिकेट किट उठा कर वह मैदान की ओर दौड़ पड़ा जो पार्क से लगा हुआ था। सैर करने वाले मैदान के चक्कर लगा रहे थे, झूले पर ढेर सारे बच्चों की भीड़ जमा थी , कुछ झूल रहे थे कुछ अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। क्षितिज भी कुछ देर झूला झूलने का आनंद उठाने लगा। तब तक उसके बाकी दोस्त भी वहाँ पहुँच गए थे। अभी कुछ ही ओवर हुए थे कि पार्क के दूसरी छोर पर कुछ कोलाहल होने लगा। पिंटू बॉलिंग करते-करते रुक गया -”अरे यार! कुछ तो हुआ है इतना शोर हो रहा “ चल-चल कुछ नहीं हुआ । तू अपनी बॉलिंग पर ध्यान दे। कुछ झगड़ा-वगड़ा हुआ होगा । बड़े लोगों का तो रोज का नाटक है। वो दो सौ पाँच नम्बर वाले अंकल अपने पड़ोसी से हरदम लड़ते रहते हैं सफाई के नाम पर। क्या हुआ अगर आप ही थोड़ी अधिक जगह की सफाई कर देंगे। ये बड़े लोग ना”
“अरे देख ! वे किसी के पीछे भाग रहे हैं, अक्षत वह हमारे तरफ ही आ रहा है। क्या पता कोई अपराध करके भाग रहा हो, चलो मिलकर दबोचते हैं।
कुछ रोमांचक काम करना हो तो अक्षत तो सदा तैयार रहता है। अच्छा खिलाड़ी होने के कारण उसके शरीर की बनावट भी तगड़ी और चुस्त है। लम्बाई अधिक होने का भी वह कभी-कभार फायदा उठा लेता है थोड़ी दबंगई करके, तो वह ऐसा मौका कब चूकने वाला था । स्टंप की एक डंडी उठाकर दौड़ पड़ा उस तरफ और उसके पीछे उसकी क्रिकेट सेना। अब वे उस भागते लड़के के आगे पहुँच गए और गार्डन का चौकीदार और बाकी सब पीछे। दोनों तरफ से घिर कर उसकी हालत खराब हो गई और उसने अपनी जेब से बटुआ निकाल कर चौकीदार को दे दिया। साथ ही वह गिड़गिड़ाने लगा -”मुझे माफ़ कर दीजिए ,मेरे छोटे भाई की तबीयत खराब हो गई है तो उसकी दवाई के लिए चोरी की वरना मैं कोई पेशेवर चोर नहीं हूँ।”उसे पकड़कर मारने को उत्सुक भीड़ कुछ ठिठक गई। तभी किसी ने कहा “ अरे पकड़े जाने पर ये ऐसे ही सफाई देते हैं ताकि लोगों के मन में दया व करुणा की भावना उत्पन्न हो और उसे छोड़ दिया जाए।”
“ नहीं सर मैं झूठ नहीं बोल रहा ,आप चाहें तो मेरे घर चलकर देख सकते हैं। सचमुच मेरे भाई की तबीयत खराब है ।मेरे पिता बहुत पहले हमें छोड़कर चले गए । माँ ने दूसरों के घरों में बर्तन माँज कर हमारी देखभाल की है। हम दोनों भाई सरोजिनी नगर के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे। कुछ माह पहले दुर्घनाग्रस्त होकर माँ भी चल बसी। अब हमारे सिर पर कोई छाया नहीं तो मैं ही कहीं होटल या किसी दुकान में छोटे-मोटे काम कर अपना और भाई का पेट भर रहा हूँ। दो दिन से उसे तेज बुखार है, वहीं पास के अस्पताल में दिखाया तो उन्होंने दवाई लिख दी पर उसे खरीदने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मैं जानता हूँ चोरी करना गलत बात है पर मैंने बहुत बेबसी में ऐसा कदम उठाया,मुझे माफ़ कर दीजिए। आप अभी मेरे भाई का इलाज करा दीजिए मैं उसके बदले में आपका कोई भी काम कर दूँगा।” उस लड़के की आँखों से आँसू बह रहे थे और उसके साथ वहाँ और कई लोगों की आँखें नम हो गईं थीं।
वह चोर लड़का क्षितिज , पिंटू इन्हीं की उम्र का था। उसकी करुण कथा सुनकर वे सोच में पड़ गए थे, जिनके माता-पिता नहीं रहते उनकी जिंदगी कितनी कठिन होती है।यहाँ हम सारी सुविधाएँ पाकर भी संतुष्ट नहीं रहते।
अक्षय के पापा डॉक्टर थे, वह आगे बढ़कर बोला -” ठीक है तुम हमें अपने भाई के पास ले चलो ,मैं अपने पापा से कहकर उसका इलाज कराऊंगा।” “बहुत-बहुत धन्यवाद दोस्त , तुमने मेरी बात पर विश्वास किया। चलो मेरा घर बहुत दूर नहीं है। उस लड़के ने अपना नाम सुरेश बताया।अक्षय के साथ उसकी पूरी क्रिकेट मंडली सुरेश के घर पहुँची। उसकी छोटी सी कच्ची झोपड़ी में पुराने कपड़ों की गठरी पर उसका छोटा भाई जो मुश्किल से नौ वर्ष का होगा, सोया हुआ था। भाई की आहट पाकर वह फुसफुसाया – पानी निखिल ने उसके माथे को छुआ, वह तप रहा था।क्षितिज ने कहा – “तुम लोग यहीं ठहरो । मैं और अक्षत साइकिल से जाते हैं, उसके पापा को लेकर आएँगे। तब तक सुरेश तुम किसी कपड़े को गीला कर के उसके माथे पर रखो तो बुखार कुछ कम होगा। अधिक बुखार होने से वह हमारे मस्तिष्क में चढ़ जाता है ऐसा मम्मी कहती है।” “ हाँ ठीक है-कहकर सुरेश तुरंत एक कपड़े को गीला कर उसके माथे पर रखने लगा और उसके हाथ-पैर को पोंछने लगा।”
अक्षय और क्षितिज ने शीघ्र घर जाकर अपने मम्मी-पापा को सारी बातें बताईं। वे उनके साथ आये और पापा ने सुरेश के भाई का चेकअप किया, उसे दवा खिलाई। पिंटू और निखिल अपने घर जाकर कुछ खाने-पीने की चीजें ले आये। सुरेश की आँखों में अपने दोस्तों के प्रति आभार झलक रहा था।    तब तक यह बात पूरी कॉलोनी में फैल गई और सभी सुरेश की हालात के प्रति संवेदना जाहिर कर रहे थे। बच्चों की मदद करने की भावना की सबने प्रशंसा की और उनके निवेदन पर सुरेश की सहायता करने की पहल हुई। कॉलोनी की व्यवस्थापन समिति की बैठक हुई और सर्व सहमति से यह निर्णय लिया गया कि सुरेश को गार्डन की साफ-सफाई का काम दे दिया जाए ताकि उसकी कुछ कमाई हो और वह अपनी पढ़ाई भी जारी रख पाए। इस तरह वह पार्ट टाइम काम करके स्वाभिमान के साथ अपनी जिंदगी गुजार सकेगा।

डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग छत्तीसगढ़
9424132359

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