कलेजे में बहुत दर्द हो रहा है। बस आप यूँ समझ लें कि दर्द के मारे मेरी हालत वही है जो आपकी तब होती है जब आप अपनी घराणी से छुपकर अपनी बहराणी यानी बाहर वाली से मिलने जाते हैं। वही हालत आज मेरी इस दर्द की है। और देखिए न आपको बता भी नहीं सकता कि यह दर्द क्यों हो रहा है। एक कहावत है वैद्य मारे रोवन न दे। बस समझ लीजिए वही हालत है। आप कहेंगे बताओ-बताओ, तो आप किसी को बताते हैं क्या कि आपने अपनी पूर्व प्रेमिका का नम्बर किस नाम से मोबाइल में सेव किया है? नहीं न? तो मैं कैसे बता दूँगा कि आज मेरी वाइफ होम ने जमकर मेरी ठुकाई की है। आप किसी को बताते हैं कि अपनी आमदनी में से कितने का सामान खरीदकर अपनी वर्तमान प्रेमिका को देते हैं? नहीं न? तो मैं कैसे बता दूँ कि बेलन, चप्पल के साथ-साथ, पर्यावरण दिवस प्रयोग दिवस यंत्र खुरपी और कुदाल से मेरी वाइफ होम ने मेरी ठुकाई की है। मेरे सर से पर्यावरण का भूत पूरी तरह उतार दिया है।
लेकिन जो हुआ सो हुआ। हमारे फटकनियाँपुर में जब बच्चों का कान छिदाया जाता है तो उन्हें पहले गुड़ खिलाया जाता है और बाद में कहा जाता है कि जो गुड़ खाएगा वही कान न छिदवाएगा। तो गुड़ खा लिया हूँ, कान छिदाया तो छिदाया। उस गुड़ की कितनी मिठास थी? आपको पता नहीं। आह! आह!, वाह! वाह! क्या आनंद था उस गुड़ का। खुदा भी सोचता होगा क्यों जमीन से चला गया इस नजारे को देखे बिना। आज मेरी पूर्व प्रेमिका गजगमिनियाँ को देख लेता तो वह भी भूल जाता सब कुछ। क्या लग रही थी आज हरी-हरी चुनरी साड़ी में, हरी साड़ी, हरी ओठलाली, हरी चप्पल, ऊपर से नीचे तक पूरी हरी-हरी। बिल्कुल हरी मिर्च सी सूरत थी उसकी। मगर मैं लाल मिर्च सा। सूखा-सूखा, पूरा उजाड़ खंड। अरे! आज जब वह अपने 6 फुट की कोठी से निकलती तो पूरा मुहल्ला, तो मुहल्ला, शहर भी बेहोश होने की हालत में था। शेरनी जैसी चाल से वह ज्यों ही कार के पास पहुँचती, मैं लपक के कार का दरवाजा खोला। मुझे देखते ही वह शरमाई, घबराई, फिर इतराई, बड़बड़ाई और फिर धीरे से पूछी, “यहाँ कैसे मेरे लतखोर बलम? बोलो-बोलो, टेल-टेल।”
मैं भी प्यार से जवाब दिया, “देखने चला आया, दूर से लग रहा था कोई पेड़ सड़क पर चल रहा है। लोग परेशान थे मगर मैं तो जान गया था कि तुम घर से निकली हो, सो चला आया।”
“अच्छा किया आ गए तो, चलो मेरे साथ।”
“कहाँ चले जी? मैं तो जा रहा हूँ वाइफ होम के लिए डेटिंग-पेटिंग का सामान लेने।”
“मैं कुछ नहीं जानती, बैठो गाड़ी में।”
उसने गाड़ी में खींचा और गाड़ी चल पड़ी। मैं कुछ दूर तो कार से घिसटता रहा फिर अंदर आ गया। उसने अपने पर्स से रूमाल निकाला और बड़े ही प्यार से मेरा चेहरा साफ करते हुए बोली, “हम लोग चल रहे हैं लुटेरन आनलाइट फालतू पंथी स्कूल, आज पर्यावरण दिवस पर वहाँ वृक्षारोपण करना है।”
मैं तो यह सोच कर ही खुश हो गया कि आज खाने को मिलेंगे डिन्चूलक डिन्चूक डिश, अखबार में फोटो, आज तो जलवे ही होंगे। भूल गया कि वाइफ होम का डेटिंग-पेटिंग सामान लेने निकला था। अभी हमारी गाड़ी लुटेरन ऑनलाइन फालतू पंथी स्कूल से फटकालिस फीट दूर ही थी कि स्कूल में भगदड़ मच गई। दस आगे, दस दाएँ, दस बाएँ, बस पीछे चल दौड़ने लगे। अगर यह दृश्य देख लें तो डोनाल्ड ट्रंप भी शर्म के मारे चाय की केतली में कूदने को मजबूर हो जाएँगे। हमारी गाड़ी रुकी। लपक कर पटबेलन मास्टर साहब ने गजगमिनियाँ का और सटकेलन मास्टर साहब ने मेरा दरवाजा खोला। मैं भी शान से उतरा। मंच तक पहुँचते-पहुँचते फूलों की बरसात, स्वागत। ज़िंदगी का मजा आ रहा था। लंबा-चौड़ा भाषण देकर जब प्रिंसिपल साहब ने मेरी गजगमिनियाँ को बुलाया तो मेरा सीना तो 598 इंच का हो गया। मेरी गजगमिनियाँ भी किसी से कम तो है नहीं, छक्के पे छक्का, अठ्ठे पे अठ्ठा मारे जा रही थी। स्टेडियम में सचिन की आतिशबाज़ी और तालियाँ फेल, जीरो, शून्य मेरी गजगमिनियाँ के आगे। सभा समाप्त हुई। अब बारी थी पर्यावरण दिवस पर पौधे की। बड़ी ही शान से हम लोग पहुँचे, एक आम के पेड़ का पौधा तीन लोग उठाए ऐसे चल रहे थे जैसे किसी भारी पर्वत को उठाए हों। पौधा जमीन पर रखा गया, उसे पहले से खोदे गड्ढे में डालने के लिए पूरा स्कूल मैनेजमेंट खड़ा था, बेचारे उस पौधे पर इतनी जगह नहीं बची कि उसकी सूरत कोई देख सके। आधे घंटे की जय-जयकार के बाद एक पौधा लगा। हम लोग आगे चले। तभी पीछे से एक आवाज़ आई, मैं पलटकर देखा, एक मरियल सा पौधा दिखा। मैं सोचा इसकी आवाज़ नहीं हो सकती। मैं आगे बढ़ा, फिर आवाज़ आई। मैं पलटकर देखा तो वह पौधा ही था जो बोल रहा था। उसने मुझे देखते ही कहा, “अरे खंड-खंड गहमरी! इसी तामझाम के साथ मुझे पिछले साल लगाया था, ज़रा मुझे भी पानी पिला दो। मेरे पिछले साल वाले तो अल्लाह को प्यारे हो चुके हैं।”
मैं उसकी बात सुनकर उसे डाँटते हुए बोला, “चुप रहो! दिमाग खराब है क्या? अब नए की बारी है।”
हाँ, सुनो—एक बार लगाए पौधे को सींचने, देखने की प्रथा नहीं।
फोटो छप गया, लाइक व कमेंट आ गए, काम खत्म। वह कुछ बोलने को मुँह खोला ही था कि—
गजगमिनियाँ की आवाज़ गूँजी—”कहाँ रह गए? तुम्हारी यही आदत गंदी है, चिपक जाते हो।”
मैं भाग कर उसके पास पहुँचा, उसकी गाड़ी में बैठने ही जा रहा था कि मुझे वाइफ होम के सामानों की लिस्ट याद आ गई। मैं कार में गजगमिनियाँ को किसी तरह समझा कर भागा, पैदल चल रहा था, सामानों की लिस्ट देखते हुए सोच रहा था—”आज तेरा क्या होगा अखंड गहमरी? बड़ा मनाया पर्यावरण दिवस, अब लात दिवस मना।”
आगे जो हुआ, आप जानते ही हो। मेरी हालत। दुआ है कि आपकी भी यही हालत हो ताकि आप मुझ पर हँसे नहीं। वैसे ये बात तो आप सही कहते हैं—वाइफ होम के हाथों पिटने का मज़ा ही कुछ और है।
अखंड गहमरी
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