जनवरी-2023
हर मां-बाप का सपना होता है कि उनकी संतान अच्छी शिक्षा ग्रहण करे। योग्य नागरिक बने और उनका नाम रौशन करे। अच्छी शिक्षा पाना इतना आसान नहीं है। हर विद्यार्थी को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। सन् 2021-22 में पूरे संसार में कोरौना महामारी फैली थी। विदेश में पढ़ने गए विद्यार्थियों को स्वदेश लौटना पड़ा। यदि देश में मेडिकल और इंजीनियरिंग की शिक्षा सहज सुलभ होती तो उन्हें विदेश में क्यों जाते। अनेक विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए बैंकों से ऋण लेना पड़ता हैं। देश विदेश जहां भी अवसर मिलता है वे शिक्षा ग्रहण करने के लिए चले जाते हैं। ऋण हासिल करने में उनका जीवन बैंक का बंधक हो जाता है। पढ़ाई के बाद ऋण की भरपाई करना उनकी जिम्मेदारी है। अपने कैरियर को सवांरते- सवांरते उनकी आधी जिंदगी पार हो जाती है। कर्ज का बोझ उतारना उनकी प्रथम वरीयता होती है। आय का बड़ा भाग किस्तें भरने में चला जाता है। सीमित संसाधनों में गुजारा करना उनकी मजबूरी होती है। उहापोह की स्थितियां उन्हें न जीने देती हैं और न मरने देती हैं। ऐसी परीस्थितियों लीव इन रिलेशनशिप एक विकल्प खुला दिखाई देता है। यह विकल्प जीवन उन्हें पारिवारिक बंधनों और संतानों के दायित्व से मुक्त रखता है। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने *लीव इन रिलेशनशिप* को अब मान्यता प्रदान की है तद्पि इस तरह का विवाह भारतीय समाज में पहले भी होते रहे हैं।
भारतीय धर्म शास्त्रों में आठ प्रकार की वैवाहिक पद्धतियों कि उल्लेख मिलता हैं यथा- *ब्रह्म, दैव, आर्श, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच।* वर एवं कन्या पक्ष की सहमति और दोनों पक्षों की आपसी सहमति से किया गया विवाह *’ब्रह्म विवाह’* कहलाता है। इस विवाह को पुरोहितों के द्वारा मान्य विधि विधान से संपन्न कराया है। इस विवाह को सर्वोत्तम माना जाता है। किसी धार्मिक कार्य की पूर्ति के लिए अपनी कन्या को किसी विशेष व्यक्ति को सौंप देना *’दैव विवाह’* कहलाता है। इस कोटि का विवाह मध्यम विवाह माना जाता है। देवदासी प्रथा इस विवाह पद्धति की देन मानी जाती है। जब कन्या-पक्ष उसका निर्धारित मूल्य चुकाकर विवाह किया जाता है तब वह *अर्श विवाह* कहलाता है। भोजपुरी के सेक्सपियर भिखारी ठाकुर ने *बेटी बेचवा* नामक नाटक में इस विवाह पर तीखा प्रहार किया है।
प्रजापत्य विवाह की प्रथा आजादी के पूर्व प्रचलन में थी। उस समय कन्या की सहमति बिना उसका विवाह किसी दबंग एवं धनवान वर (सामंत) से कर देना *प्रजापत्य विवाह* कहलाता है। कालांतर में इस प्रथा का नाम *कन्यादान* पड़ गया और वह प्रथा रूढ़ हो गई। इस प्रकार के विवाह में वर (राजा) का निर्णय अंतिम होता था। राज्य की प्रजा का इस मामले में वश नहीं चलता था। इस विवाह पद्धति के कारण राजाओं की अनेक रानियां हो जाती थीं। आधुनिक युग में प्रेम विवाह का चलन जोरों पर है। परिवार के लोगों की सहमति के बिना वर और कन्या मान्य रीति- रिवाजों को किनारे करके विवाह कर लेते हैं। ऐसा विवाह *गंधर्व विवाह* कहा जाता है। गंधर्व विवाह को प्रेम विवाह अर्थात *Love Marriage* भी कहा जाता है। इस विवाह का एक नया रूप *लिव इन रिलेशनशिप* के नाम से आजकल चर्चा में है। भारतीय आख्यानों में दुष्यंत और शकुन्तला का संबंध को प्रेम विवाह का एक उदाहरण है।
कन्या को आर्थिक आधार पर खरीद कर विवाह कर लेना *असुर विवाह* कहलाता है। कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण कर के जबरदस्ती विवाह कर लेना *राक्षस विवाह* कहलाता है। आधुनिक युग की संचार क्रांति ने सामाजिक परिवर्तन की गति को पंख लगा दिए हैं। फिल्म, वीडियो तथा सोशल मीडिया का युवा मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ा रहा है। असमाजिक तत्त्व उसका फायदा उठाते हैं। इस क्रम में कन्या की मदहोशी, मानसिक दुर्बलता आदि का लाभ उठाकर उससे शारीरिक संबंध बना लेते हैं। इस तरह संबंध बनाने को शास्त्रों में *पैशाच विवाह* की संज्ञा दी गई है।
मानव मनोविकारों मोटे तौर पर पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है। विकारों की अति को पंच महा विकार कहा जाता है। तथागत बुद्ध ने इन महा विकारों से छुटकारा पाने हेतु पंचशील का अनुशासन किया था। संसार कभी पूरी तरह से सभ्य नहीं रहा है। समय समय पर सभ्यता के मानक बदलते रहे हैं। कल जो नैतिक और सर्वमान्य था आज वह अनैतिक माना जा रहा है। देवदासी प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, कन्यादान प्रथा, सती प्रथा, बहुत पत्नी विवाह, नर बलि प्रथा आदि कभी सामाजिक रूप से मान्य था। आज इन प्रथाओं को अपराध माना जाता हैं। सरकार को ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए कि युवा वर्ग को स्थानीय स्तर पर अच्छी शिक्षा और रोजगार मिल सके। वे देश के लिए अच्छे नागरिक बन सकें। उनके जीवन में दर-दर पर भटकाव न हो और वे गुमराह होने से बच सकें।
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