कभी सोचा नहीं था कि यूँ चुपके से चला जायेगा वह हंसते चेहरे का प्रेरणा श्रोत, जिसने दिया था मेरे जीवन को एक नईदिशा। अखबार की दुनिया में आज अखबार का नाम एक ऐसा नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वर्ष 1980 के दशक में आज समाचार पत्र दैनिक जागरण जैसे समाचार पत्रों को पनपने नहीं देता था। उसी आज समाचार पत्र का के डूबते समय में भी गाजीपुर जनपद में एक मजबूत पीलर के रूप में स्थापित आज के ब्यूरो चीफ का निधन हो गया। सत्येंद्रनाथ शुक्ल पत्रकारिता जगत में एक सज्जन, निष्ठावान और परिश्रमी व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने लगभग दो दशकों तक ‘आज’ समाचार पत्र में अपनी सेवाएं दीं और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। वे लंबे समय से गंभीर बीमारी से पीड़ित थे। तबियत बिगड़ने पर पहले उन्हें वाराणसी के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत में सुधार न होने पर उन्हें बीएचयू के अस्पताल में स्थानांतरित किया गया, जहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली।सत्येंद्र कुमार शुक्ला जी से मेरा परिचय अमर उजाला अखबार में कार्यरत होने के बाद एक आम संवाददाता के संबंधों जैसा ही था। हस-मुख प्रवृति के शुक्ला जी आज के जमाने में टेक्नोलॉजी से बहुत दूर हस्त लेखन और संवाद के धनी थे । उनका संवाद उनके बोलने की शैली उनकी जानकारी प्रेरणा दिया करती थी।
गाजीपुर के महुआबाग स्थित आज कार्यालय पर स्वर्गीय मुधरेश जी, पदमाकर पाण्डेय जी एव तमाम हम-उम्र मित्रों के साथ बैठ कर हसते हुए बाते करने वाले शुक्ला जी किसी के पहुँचने पर चाय मंगाना उसे आशीर्वाद देना नहीं भूलते थे। उनके साथ बैठ जाने पर समय का पता ही नही चलता था। गंम्भीर से गंम्भीर बात को इतनी आसानी और सहजता से कह देते थे जिसकी कोई सीमा ही नहीं ।
गाजीपुर के श्रमजीवी पत्रकार संघ के अघ्यक्ष पदमाकर पाण्डेंय जी का सानिध्य मुझे शुरू से रहा। और उनके साथ रहते हुए ही मुझे शुक्ल जी के पास जाने का मौका मिला। दो ऐसे संस्मरण है शुक्ला जी के साथ मेरे जो मैं आपके साथ साझा कर रहा हूॅं।
बात 4 जुलाई 2014 की है। गहमर में श्रमजीवी घटना के बाद मैं अमर उजाला छोड़ चूका था, यहॉं पहले की तरह फिर एक बात लिखता हूँ कि कुछ लोग कहते हैं मुझे हटा दिया गया था। दोनो में जो लेकिन मेरा संबंध अमर उजाला से टूट चूका था।
मैं उस समय के अमर उजाला के ब्यूरो-चीफ के साथ कुछ प्रतिवाद करने गुस्से में गाजीपुर पहुँचा था। शाम के तीन बज रहे थे। मैं महुआबाग की तरफ से आ रहा था। वह अपने आफिस के बाहर यादव के दुकान पर चाय पी रहे थे। मैंने देखा तो प्रणाम किया, वह मुझे बुला लिये। शाम को आने का कारण पूछे तो मैं बता दिया कि आज अमर उजाला में हंगामा करने जा रहा हूँ।
उन्होनें ने मुझे सीधे कहा कि ‘अखंड करोगें तो अपने मन वाली ही, मगर इतना यह ब्राहम्ण कह रहा है कि तुम्हारा जन्म सिमटने के लिए सिमटाने के लिए हुआ, जरूर विधाता ने कुछ बड़ा तुम्हारे हाथ से लिखा है, नया सोचो आगे बढ़ो”, कभी न कभी गाजीपुर और गहमर की पहचान में तुम्हारा नाम प्रमुखता से लिया जायेगा। उन्होनें अपने काम छोड़ कर आधे घंटे का अधिक समय दिया। और मेरा पूरा ब्रेन-वाश किया।
उसी समय गाजीपुर के श्रमजीवी पत्रकार संघ के पदमाकर पाण्डेंय जी भी आ गये, मैनें उन्हें श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्यता वाला कार्ड यह कह कर लौटाया कि अब मैं पत्रकार नहीं तो यह कार्ड रख लें। इतना सुनते ही शुक्ल जी ने एक कागज पर मुझे आज अखबार का पत्रकार बनाते हुए कहा कि आज से आज के रिपोर्टर हो। लेकिन इतना तय है कि आने वाले भविष्य में आप इस मुकाम पर होगें कि आप खुद अपना संवाददाता बनायेगें। उसके बाद हमेशा के लिए मैं शुक्ला जी के सम्पर्कं में आ गया। गाजीपुर जाता तो वही बैठता, उनकी सुनता समझता।
मेरा दुर्भाग्य है कि वर्ष 2025 का आधा समय बीत चुका है लेकिन सप्ताह में 5 बार गाजीपुर जाने वाला मैं विगत 6 महीनों में गाजीपुर जा ही नहीं पाया। लेकिन जो उन्होेनें 2014 में कहा आज मेरे लिए सत्य हो चुका है।
बड़े दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि गाजीपुर में आज अखबार का अंतिम पीलर ही नहीं ढहा, बल्कि एक गाजीपुर का एक हंसता चेहरा जो नवयुवको की प्रेरणा श्रोत था, वह सदा के लिए विलीन हो गया। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।
अखंड गहमरी
संपादक
साहित्य सरोज

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