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प्रतिभा की कहानी जादूगर

कहानी संख्‍या 37 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024      

“अरे पापा, राम नवमी की छुट्टी पर जादूगर का शो देखने लोग थोड़े न आयेंगे ? आपको शो कल की जगह किसी और दिन से शुरू करना चाहिए।” पांचवीं कक्षा का रोहन अखबार में अपने पापा के कल से शुरू होने वाले ‘अद्भुत जादूगर’ शो के उद्घाटन की जानकारी पढ़ते हुए बोला। ।“अरे बेटा, सभी के नवरात्रि के व्रत चल रहे हैं फिर पूजा पाठ में लोगों को समय ही कहाँ मिलता है और कल तो राम नवमी पर जगह जगह सुंदरकांड के पाठ होंगे तो लोग वहाँ जायेंगे कि… पहले ही कहा था लेकिन …”, और निशा नवरात्रि पर बाजारों, भजन संध्याओं की गर्मजोशी सोचते हुए मोहन को देखने लगी।“मैं तो अपना काम करूंगा, जैसे वो करता है। उसे भी तो गरीबों का जादूगर कहते हैं, तो यहां शुरूआत उसी के दिन से।” मोहन उठकर अपनी डायरी में कार्यक्रम की डिटेल देखने लगा जो कल राम नवमी से ही ‘धीरज टॉकीज’ में शुरू होने वाला था। यदा कदा उसका फोन बजता और कार्यक्रम की तैयारियों में खोया देख निशा और रोहन अपने कामों में व्यस्त हो गई।“मम्मी, आप कीर्तन में जायें तो वहाँ सभी से पापा के जादूगर शो के लिए आग्रह करना।”, रोहन के कहते ही मोहन की नजरें निशा की ओर गई।“मैं कह तो दूँगी और जादूगर के पेम्पलेट भी दे दूँगी लेकिन …”, निशा जानती है कि नवरात्रि में ‘जादूगर’ की जादूगरी ही मोहन के काम आ सकती है।“प्लीज, प्लीज..”, रोहन जिद्द करने लगा तो मोहन ने उसे हल्का डाँट ही दिया।

“चुप हो जा बेटा, उम्र निकल गई मेरी। मेरी जादूगरी ही भीड़ इकट्ठा कर लेगी। मुझे किसी की सिफारिश की जरूरत नहीं है”, मोहन चिढ़ उठा तो उसे देख निशा मुस्करा दी।सुबह घर से टॉकीज जाते हुए मोहन की निगाह जगह जगह सज रहे पंडालों पर पड़ी। वह वहाँ लोगों की चहलकदमी देख सोचने पर मजबूर हो गया कि आज से शो शुरू करने में उसने कही जल्दबाजी तो नहीं कर दी।बाज़ार में फूलमाला बेचने वाले के ठेले पर खड़ा होकर उनसे माला खरीदी और वहीं एक बच्चे को भी माला खरीदते देख वह उसे देखता ही रह गया क्योंकि बच्चे की जगह जगह से फटी कमीज उसकी गरीबी उजागर करने में कोताही नहीं बरत रही थी।दोपहर में अपने शो के लिए टिकट खिड़की पर लगी दर्शकों की कतार देख मोहन ने दीवार पर सुशोभित राम दरबार की ओर प्रणाम करते हुए अपनी कृतज्ञता प्रकट की।“सॉरी प्रभु, तुम्हारे भक्तों को तुम्हें को छोड़ अपने पास बुलाने के लिए लेकिन पेट भी तो तुमने ही दिया है”, और मोहन मंच की ओर चल दिया।शो का आगाज बड़ी ही धूम धाम से हुआ। मोहन का स्टाफ उसके हर जादूई कारनामे के दौरान क्षण-क्षण ईमानदारी बरतता, जिससे मोहन अपनी जादूगरी से लोगों की वाहवाही लूट लेता।समय जैसे जैसे सरकने लगा तो सामने बैठे दर्शकों की आवाजों से लगने लगा कि अब पंडालों के कीर्तनों की उमंग उन्हें अपनी गलियों से पुकारने लगी है।मोहन ने दूसरे करतबों को दरकिनार कर अपना सबसे अच्छा और रोचक करतब पहले दिखाने की ठानी जिससे ‘धीरज टॉकीज’ में बेसब्री लिए बैठे दर्शकों में धीरज उभर आये।

मोहन स्टेज पर आया औऱ अपने इस अद्भुत करतब की जानकारी देते हुए उल्लास से बोला, “देखिये, अब मेरे इस अद्भुत करतब को देख आप को यकीन हो जाएगा कि मोहन ने अपने शो का नाम अद्भुत क्यों रखा।”, और यह सुन दर्शकों की तालियों से पूरा हॉल गूंज उठा।मोहनके इस करतब में मंच पर एक बड़ा लेकिन ऊँचाई में कम बॉक्स रखा जाता है। मोहन इसमें लेट जाता है और ऊपर से स्टैंड पर लटकी क्रेन से तलवार आकर उस बॉक्स पर बने निशान से बॉक्स में उतरती चली जाती है। लेकिन यहाँ मोहन का जादू यह है कि जब बॉक्स खुलता है तो वह हाथ हिलाते हुए मुस्कुराता हुआ बाहर निकलता है।अब इस जादूगर बॉक्स की जादूगरी यह है कि मोहन बॉक्स में लेटे हुए उसमें सामने लगी चिटकनी खोल सामने का ढक्कन खोलता है और पर्दे से उसका स्टाफ उसे खींच लेता है और उसके बाद तलवार अपना काम करती है। तलवार के हटाये जाने के बाद मोहन फिर से पर्दे की आड़ से बॉक्स में लेट जाता है और लेटे हुए इस छोटे सी ऊँचाई वाले बॉक्स में अपने एक हाथ से चिटकनी सरका कर लोगों के सामने का ढक्कन खोलकर मुस्कुराते हुए प्रकट हो जाता है।यह करतब शुरू हुआ और मंच पर बॉक्स को रखा गया। मोहन मुस्कुराते हुए आया और उसमें लेट गया। बॉक्स का ऊपर का ढक्कन बंद किया गया और अब स्टेज के ऊपर क्रेन से तलवार के आने का डरावना संगीत शुरू हुआ। दर्शकों में भी सन्नाटे की वजह से हॉल में सिर्फ वह ख़ौफ़ज़दा आवाजें ही गूंज रही थीं।

मोहन बॉक्स में लेटे हुए बॉक्स की चिटकनी खोलने लगा। लेकिन यह क्या यहाँ तो चिटकनी खुल ही नहीं रही थी और तलवार की आवाजें पास आने लगीं। अब तो इस एक पल मोहन का शरीर पसीने से तर हो गया और उस क्षण उसकी आँखों में टॉकीज की दीवार पर लगे रामदरबार की तस्वीर उभर आई। उसने अपने हाथ जोड़ दिए।अब उसने धीरज धर एक बार फिर चिटकनी पर अपना हाथ चलाया तो चिटकनी में अटका छोटा सा फटे कपड़े का टुकड़ा सरका और चिटकनी खुल गई। बॉक्स का साइड का ढक्कन खुलते ही पर्दे की आड़ में खड़े पसीने और आँसुओं में भीगे स्टाफ के चेहरों पर मुस्कान आ गई। उन्होंने पर्दे के पीछे से उसे झट से खींचा और सभी उससे लिपट गए।इस करतब में तलवार के हटाये जाने के बाद आखिरी पड़ाव पर बॉक्स में से निकला मोहन मुस्कुराते हुए स्टेज पर आया और अपना हाथ हिलाते हुए दौड़ पड़ा टॉकीज में लगी रामदरबार की तस्वीर की तरफ। वह अपनी आंखों में आँसू लिए वह तस्वीर के सामने जमीन पर ही लेट गया।उसका स्टाफ भी दौड़ आया उसके पास तो वह बोला, “आज

इतना ही शो काफी है। चलो, अब इस असली जादूगर के रंग में डूबेंगे। कल से सब समय पर आ जाना।”, मोहन वहीं से पार्किंग में खड़ी अपनी कार की तरफ चल दिया।
प्रतिभा जोशी अजमेर, मोबाइल नंबर- 9460241859

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