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छत्तीसगढ़: संस्कृति और संसाधन की धरती-गीता

“अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार, इँदिरावती हा पखारय तोर पईयां, महूं पांवे परंव तोर भुँइया, जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया!”
इस गीत की पंक्तियाँ छत्तीसगढ़ की समृद्ध और विविधतापूर्ण संस्कृति का जैसे जीवंत कर देती हैं । घने जंगलों और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच बसा हुआ छत्तीसगढ़, आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की गहरी जड़ों के साथ मजबूती से खड़ा है।

छत्तीसगढ़ की धरती प्राकृतिक संसाधनों का अद्वितीय खजाना है। यहाँ की जमीन से निकलने वाले हीरा, लोहा, कोयला, और बॉक्साइट जैसे बहुमूल्य खनिजों से न केवल प्रदेश बल्कि पूरे हिंदुस्तान की जरूरतें पूरी होती हैं। यह राज्य देश की प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छत्तीसगढ़ की जनता, विशेष रूप से आदिवासी समुदाय, अपनी सरलता और आत्मनिर्भरता के लिए प्रसिद्ध है। अपने मजबूत विचारों और कर्मठता के साथ यहाँ के लोग शांतिप्रिय जीवन जीना चाहते हैं।

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत अमूल्य और गहरी है। यहां की परंपराएं इतनी मजबूत हैं कि यह प्रदेश आज भी अपनी जड़ों से मजबूती से जुड़ा हुआ है। महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, और अरपा जैसी नदियों के किनारे बसा यह राज्य, जहां कभी मराठों ने तो कभी अंग्रेजों ने अपने पैर जमाने की कोशिश की, लेकिन यहां के स्वतंत्रता प्रेमी लोगों ने अपनी विरासत को बचाने के लिए डटकर मुकाबला किया।
धान का कटोरा कहा जाने वाला यह प्रदेश प्राकृतिक सुंदरता और शहरी-ग्रामीण जीवन के अद्वितीय संगम का प्रतीक है। जितना धार्मिक और सांस्कृतिक संपन्नता है उतनी ही यहां के लोग विकासशील विचारधारा के न केवल समर्थक हैं बल्कि करके भी दिखाते हैं और इसी का उदाहरण है यहां स्त्री और पुरुषों में भेदभाव ना होना जिसके परिणाम स्वरूप लैंगिक समानता में छत्तीसगढ़ आज पूरे भारत में दूसरे स्थान पर है। यहां की 70% से अधिक साक्षरता हैं छत्तीसगढ़ी भाषा के समृद्ध व्याकरण के बावजूद हिंदी को यहां गहरी श्रद्धा और सम्मान प्राप्त है।

छत्तीसगढ़ के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल भी अत्यंत पौराणिक है। दंतेश्वरी और बमलेश्वरी मंदिरों में मां दुर्गा का वास है, और रतनपुर जैसे स्थलों की अटूट श्रद्धा और विश्वास से भरी गाथाएँ यहां के लोगों की धार्मिक आस्था का प्रमाण हैं। चित्रकूट और अमरकंटक की प्राकृतिक सुंदरता यहां के धरोहरों में शामिल है, और छत्तीसगढ़ की ताकत इसके खूबसूरत जंगल और झरने हैं, जिनमें अनेक औषधीय गुणों की भरमार है!
छत्तीसगढ़ का डोकरा शिल्प जिसे यहां के आदिवासी समुदाय ने आज भी सम्भाल कर रखा है जो हड़प्पा का समकालीन माना जाता है इतिहास की ऐसी संपन्नता बहुत कम जगह पर देखने को मिलती है

कांकेर को छत्तीसगढ़ का प्रथम द्वार माना जाता है, और यहां का भोरमदेव और लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर इसकी पहचान है। भगवान राम को बेर खिलाने वाली माता शबरी, जो शिवरीनारायण की निवासी थीं, की यादें आज भी यहां जीवित हैं। यह प्रदेश महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी अग्रणी रहा है। प्रथम महिला शासिका प्रफुल्ल कुमारी देवी, जो एक जनजातीय समुदाय से थीं, ने महिलाओं के उत्थान और शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

और इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की महिलाएं आज सशक्तिकरण की नई मिसाल कायम करने के लिए तैयार हैं। महिलाओं के द्वारा महिलाओं के लिए ऐसा कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है, जो महिलाओं को उनके गौरव को लौटाने और उनके सपनों को उड़ान देने का अवसर देगा। यह मंच महिलाओं को उनकी मेहनत का सम्मान देगा और उन्हें वह स्थान दिलाएगा, जिसकी वे हकदार हैं।

छत्तीसगढ़ की महिलाओं का यह मंच पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यह प्रदेश अपनी सांस्कृतिक, राजनीतिक, और ऐतिहासिक संपन्नता के साथ अब महिला सशक्तिकरण का परचम लहराने के लिए पूरी तरह तैयार है। आइए, छत्तीसगढ़ की इस अद्वितीय धरोहर और संघर्षशील महिलाओं का सम्मान करें और उनके साथ मिलकर एक उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ें।
गीता सिंह
रायगढ़, छत्‍तीसगढ

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One comment

  1. Pradeep Kumar Sharma

    बहुत सुंदर चित्रण छत्तीसगढ़ राज्य की।
    कुछ और भी महत्वपूर्ण चीजों का उल्लेख किया जा सकता था। जैसे रामगढ़ की पहाड़ी, मैनपाट, कौशल्या माता मंदिर, चंद्रहासिनी देवी का मंदिर, राजा चक्रधर सिंह का संगीत प्रेम, मुकुटधर पांडेय द्वारा छायावाद का प्रवर्तन, महात्मा गांधी जी के द्वारा सामाजिक चेतना एवं अश्पृश्यता उन्मूलन के क्षेत्र में पं. सुंदरलाल शर्मा को अपना गुरु स्वीकार करना आदि। इनसे हम छत्तीसगढ़िया लोगों को गर्व की अनुभूति होती है।

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