गाँव के पास एक बहुत पुराना पीपल का पेड़ था और उस पर एक झूला बंधा हुआ था। कहा जाता था कि ये झूला बहुत ही खास है। कोई नहीं जानता था कि किसने इसे यहाँ बाँधा लेकिन गाँव के बच्चे कहते थे कि रात में ये झूला अपने आप हिलने लगता है। इस झूले के बारे में सुनकर बच्चों में हल्की-हल्की डर और रोमांच की भावना पैदा होती थी।एक रात की बात है राधा और मोहन जो गाँव के बहुत ही साहसी बच्चे थे, तय करते हैं कि आज रात इस झूले का रहस्य जानकर रहेंगे चुपके से दोनों दोस्त घर से निकलते हैं और पीपल के पेड़ के पास पहुँच जाते हैं चारों ओर सन्नाटा और पेड़ की परछाई उनके दिल की धड़कन बढ़ा रही थी लेकिन उनका उत्साह उन्हें डरने नहीं दे रहा था।
जैसे ही आधी रात हुई ठंडी हवा चली और अचानक से झूला अपने आप हिलने लगा। राधा और मोहन के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। लेकिन तभी उन्हें एक हल्की सी हंसी सुनाई दी। उन्होंने देखा कि एक प्यारी सी छोटी परी झूले पर बैठकर झूल रही है और मुस्कुरा रही है। परी ने उन्हें देखकर कहा डरो मत, मैं इस झूले की रखवाली करती हूँ। ये झूला साधारण नहीं है, इसमें खुशियाँ और सपनों की शक्ति है। जो भी सच्चे दिल से यहाँ झूले पर झूलता है, उसकी हर ख्वाहिश पूरी हो जाती है।राधा और मोहन ने खुशी से झूले पर बैठकर झूलना शुरू कर दिया। अगले दिन से दोनों ने ये रहस्य सब बच्चों से साझा किया और सबने मिलकर झूले का आनंद लिया। लेकिन उन्होंने तय किया कि परी का रहस्य वे केवल दिल में छिपाकर रखेंगे ताकि झूले की जादुई शक्ति हमेशा कायम रहे।इस तरह झूला अब गाँव में केवल खेल का साधन नहीं था बल्कि एक सपना और आशा की निशानी बन गया।
रेखा थवाईत
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़ )
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