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  प्रकृति मै और यायावरी

                                            पूर्वोत्तर के सभी राज्य हमेशा से मेरे लिए आकर्षण का केंद्र रहे  हैं। वहां के अनछुए ऊँचे –ऊँचे पहाड़, अलग-अलग तरह की वनस्पति, पहाड़ों से गिरते  झरने, चट्टानों को काटकर बनाई हुई गुफाएं, इन सब के अलावा कल-कल कर बहती हुई नदियाँ जिनमें  किसी भी तरह की गंदगी या प्रदुषण  नहीं है। वहां की नदियों या झीलों के साफ़ पानी में नौका विहार करना और चारों तरफ पहाड़ और हरे भरे किनारों को देखना मन को आह्लादित कर जाता है । मेघालय में स्थित चेरापूंजी की मावम्लूह गुफाएं हों  या वहां का हाथी झरना हो, उमीयम झील हो या खासी हिल में स्थित लैटलम ग्रैंड कैन्यन हो या दावकी नदी जहाँ का पानी बहुत ही साफ़ है बिल्कुल आईने की तरह  । शिलांग में आना एक अच्छा अनुभव रहा था । शिलांग  की खूबसूरत वादियों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा सुना हुआ था । रूबरू देखने से वो सब सच भी लगा स्वर्ग सा सुन्दर।  उसके बाद अगरतला आने का एक अलग मकसद था । वहां  के लोगों से खासकर जनजातीय लोगों को जानना और उनकी संस्कृति को पहचानना उनके रहन-सहन के  बारे में जानने की  अलग तरह की जिज्ञासा थी। अगरतला पहुँचने के बाद उस छोटे से शहर में घूमना बड़ा सुखदायी लगा । अगर आप  अगरतला गए  हैं और वहां के  जयंतिया पैलेस को नहीं देखा शायद आपने  बहुत कुछ खो दिया  है । अपनी खूबसूरती के साथ-साथ वो अपनी  महान  संस्कृति को  समेटे हुए है  जो आप का मन  मोह लेगा ।   राजमहल की   विशालता और सुन्दरता को देखने पर उस समय के राजाओं के बारे में भी बहुत कुछ पता लगता है ।
 इस राजमहल में  1909 से लेकर 1947 तक के सभी हिंदू राजाओं की तस्वीरें लगी हुई  हैं  अब इस जगह को  संग्रहालय  का रुप दे दिया गया है वहाँ  जाकर मुझे अगरतला की प्राचीन संस्कृति को जानने  देखने का मौका मिला ।  इस  संग्रहालय में मछुआरों द्वारा प्रयोग में लाई  गई  प्राचीन वस्तुओं को दिखाया गया है । खेती करने के प्राचीन औजारों और  साधनों को , अनाज को साफ करने की विभिन्न तकनीकों को दर्शाया  गया है । इसके अलावा  उस समय में औरतों द्वारा पहने जाने वाले गहनों के साथ- साथ , प्राचीन हिंदू संस्कृति को, प्राचीन दैवीय मूर्तियों को , प्राचीन गुफाओं  को भी बड़ी खूबसूरती से  दर्शाया गया है ।
                                 कुछ फोटोज भी दीवारों पर लगे हुए  मिले जो स्थानीय लोगों के साथ अंग्रेजों ने खिचवायें हुए है जो दिखाती है कि किस  तरह से अंग्रेज आए और धीरे- धीरे सारी संस्कृति को , मान्यताओं को , विरासत और  धरोहर  को  कैसे विनाशकारी मोड़ पर छोड़कर चले गए  । एक ऐसा राज्य जो हिन्दू संस्कृति को समेटे हुए था अंग्रेजों के आने के बाद उस पर इसाई संस्कृति का प्रभाव बढ़ने लगा ।                             
बहुत अच्छा लगा यह सब देखकर कि  लुप्त प्राय होती संस्कृति को इतने अद्भुत और सलीके से  सहेजा गया है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां इस संस्कृति को देख सके , परख सके और यह जान सके कि किसी भी राज्य को विकसित अवस्था में लाने के लिए लोगों के द्वारा कितना कुछ किया गया है और किस तरह से उन्होंने उन सब बातों को सहेज कर भी रखा है  यह भी एक बड़ा प्रशंसनीय कदम है । जिसके लिए त्रिपुरा के उन सभी लोगों को मेरा हार्दिक सलाम है |त्रिपुरा के बारे में और ज्यादा जानने के लिए और उसकी जो प्रकृति है उसको और अच्छे से समझने के लिए  अगरतला से मैंने  टैक्सी ली झम्पोई हिल्स  के लिए | सुंदर सफर था प्रकृति अपने पुरे शबाब पर थी | अहा ! क्या अद्भुत नजारा था | बहुत सुंदर खिले हुए फूल अपनी सौन्दर्य छटा को बिखेर रहे थे ।  पेड़ पौधों , सुंदर फूलों की बिखरती छटा को  देखना हो तो मुझे लगता है त्रिपुरा राज्य बहुत सुंदर है । वहां पर उदय होते सूरज को देखने के लिए लोग जाते हैं । किसी समय में वहां पर ट्रैकिंग होती थी जो अब किन्हीं कारणों से बंद कर दी गई है।                                
एक बात जो दूसरे राज्यों से अलग देखने को मिली वो है अगरतला में  स्थित हैरिटेज पार्क । इस में पुरे त्रिपुरा  राज्य के सभी जिलों का नक्शा दिखाया गया है , वहाँ के दर्शनीय स्थलों और स्मारकों के माडल  को दिखाया गया है और वहाँ पर पंहुचने के सभी मार्गों और साधनों को भी दर्शाया गया है । अगर आप त्रिपुरा के सभी जिलों में नहीं पहुँच सकते तो वहां पर बनाये हुए माडल को देखकर बहुत कुछ जान सकते हैं । यहाँ आकर सुकून मिला की त्रिपुरा भ्रमण के दौरान जो छुट गया था उसे एक माडल के रूप में देखने का मौका मिल गया ।
         त्रिपुरा के  सिपाहीजाला जिले में बना हुआ नीर महल अगरतला से 53 किलोमीटर दूर रुद्रसागर झील में स्थित  है । यह भारत का सबसे बड़ा जल महल भी है जिसे  देखने के लिए नौका के द्वारा जाना पड़ता है । चारों तरफ पानी  से घिरा लाल और सफ़ेद रंग से बना हुआ महल किसी का भी मन मोह लेगा । इसे हिन्दू राजा के द्वारा बनवाया गया है परन्तु यह  हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य  कला का एक बेहतरीन नमूना है । आश्चर्यजनक लगता है कि उस ज़माने में भी ,सीमित साधनों से ऐसी इमारत बनाई गई जो  आज भी अपनी उत्कृष्टता को संजोये हुए है ।
                   उनाकोटी नाम तो सुना ही होगा ना आपने ? त्रिपुरा राज्य के उनाकोटी जिले के  कैलाशहर में स्थित एक ऐतिहासिक व पुरातत्विक हिन्दू तीर्थस्थल है यहाँ भगवान् शिव और उनके परिवार  को समर्पित मूर्तियाँ है जिन्हें देखने पर ऐसा लगता है कि चट्टानों को काटकर  मूर्तियाँ उकेरी गई हैं । इनका निर्माण ७वीं – ९वीं शताब्दी में किया गया है । यह मूर्तियाँ बहुत ज्यादा ऊंचाई पर बनाई गई है जिनको देखने पर हैरत होती है कि आखिर इतने सीमित साधनों में इतनी ऊंचाई पर इतने  सधे हाथों से  और खूबसूरती से बनी हुई है कि आँख और नाक के आकार  कहीं से भी थोड़ी सी भी बिगड़ी हुई नहीं लगती । मूर्तियों में इतनी विलक्षणता,सजीवता  और सुन्दरता को देखकर लगता है मूर्तियाँ  बनाने वाले  लोगों में कितना संयम और सामर्थ्य होगा । होता है ना अचरज  सोचकर !  अब बात करते हैं  अगरतला के रेलवे स्टेशन की जो बहुत ही साफ सुथरा और छोटा सा  बहुत अच्छा बना हुआ है। उदयपुर जाने के लिए  वहां से मैंने ट्रेन पकड़ी हालाँकि उसमें बहुत ज्यादा भीड़ थी लेकिन बहुत सारी मशकत करनी पड़ी और आखिरकार  15 मिनट के सफर के बाद ही मुझे खिड़की वाली सीट मिल गई जहां से मैं बड़ी आसानी से बाहर के सारे दृश्यों को देख सकते थी। यहाँ की पेड़ पौधों की विभिन्नता देखते ही बनती थी | ऊँचे ऊँचे देवदार के वृक्ष, सुपारी के पेड़ , साल, चामल, गरजन आदि के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं | मै महसूस कर रही थी अगर ट्रेन की स्पीड कम हो जाए तो इन भागते हुए पेड़ों को आराम से निहार लूँ उन्हें अच्छे से आँखों में बसा लूँ |
            उदयपुर पहुंचकर वहां से टैक्सी ली डम्बूर सागर लेक के लिए । कुछ जगह तो सड़क अच्छी थी कहीं बिल्कुल कच्चा रास्ता था । वीरान सा सफर था ऐसा लग रहा था यहाँ बहुत ही कम पर्यटक आते  है ।  डेढ़ घंटे के सफर के बाद डम्बूर लेक पहुँच गई । टैक्सी से उतरकर देखा वहां ना तो कोई बड़ी दूकान थी ना ही खाने का कोई इंतजाम |एक बार तो लगा कहीं गलत जगह तो नहीं आ गई । इतने में मेरी नजर पड़ी एक  छोटी सी  टपरी पर  जिसके पास चाय थी वो भी बकरी के दूध से बनी हुई | दो तीन तरह के बिस्कुट और चिप्स के पैकेट । खैर चाय पीकर कच्ची सी सीढियों से नीचे की ओर डरते डरते उतरी तो देखा 41 वर्ग किलोमीटर का एक विशाल और लुभावना जल निकाय | चारों ओर शानदार हरी वनस्पतियों की अंतहीन जादुई और आकर्षक रेखा | मै  मंत्रमुग्ध सी अपनी सारी थकान भूल गई।
            हाथ से चलाने वाली  नौका थी और मोटर से चलने वाली भी । मुझे बहुत देर इन्तजार करना पड़ा कुछ लोग ओर आए फिर नौका पर बैठ चले पानी पर सैर करने । पूरी झील पर 48 छोटे छोटे द्वीप है।| प्रवासी पक्षी और जल क्रीड़ायें नौका विहार के आकर्षण को और भी बढ़ा रही थी । झील के पास एक हाइडल परियोजना है जहाँ से  गोमती नदी का उद्गम होता है । करीब आधा घंटा की नौका विहार के बाद एक द्वीप पर उतरे जहाँ सरकार द्वारा बहुत ही आलिशान रेस्टोरेंट बना हुआ था जहाँ दोपहर का खाना खाया | वहां पर रात को रुकने के लिए कॉटेज भी बने हुए थे और फलों के पेड़ भी लगे हुए थे । वहां से वापिस आने का मन नहीं हो रहा था लेकिन आना ही पड़ा । टैक्सी से वापिस आते हुए रास्ते में बारामुडा वॉटरफॉल देखा | इतनी ऊंचाई से गिरता हुआ पानी अपने तेज शोर के साथ मन को भी अपनी और खींचे जा रहा था ।
                  अगले दिन का मेरा  प्रोग्राम था त्रिपुरा के गोमती जिला में जाना जो गोमती नदी के किनारे  पर स्थित  है और जिसकी प्रसिद्धी को विश्व में पहुँचाया है  वहां की  छाबिमुडा की गुफाओं ने  । गोमती नदी के किनारों पर इसके दोनों तरफ की पहाड़ की   चोटी पर बहुत बड़ी बड़ी शिव, विष्णु ,कार्तिक, महिषासुर, दुर्गा आदि की छवि बनी हुई थी जो चट्टानों पर उकेरी गई हैं | इसके अलावा पहाडों को काटकर बड़ी बड़ी गुफाएं बनाई हुई है जिनके अंदर मूर्तियाँ रखी हुई है | उन गुफाओं को देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाते हो कि मानव ने इतनी ऊंचाई और इतने पानी के अंदर वो आकृतियाँ कैसे उकेरी होंगी ओर इतने सौ सालों के बाद भी वो वैसी ही दिख रही हैं | मनुष्य की कला का एक ओर उत्कृष्ट नमूना जो किसी को भी दांतों तले ऊँगली दबाने के लिए काफी है |
                 त्रिपुरा राज्य की मेरी ये यात्रा बहुत ही खुबसूरत रही । अगर आप प्रकृति प्रेमी है और प्रकृति के सानिध्य में अपने कुछ दिन बिताना चाहते है तो अगरतला और उसके आसपास की जगहें आप को आनन्दित कर देंगी । ये हसीं वादियाँ आपको  परम सुख, परम सुकून और आत्मिक शांति से लबरेज कर देंगी।  बहुत कम पर्यटक यहाँ आते है तो आप अनछुई पगडंडियों ,वनस्पतियों पहाड़ों चट्टानों को देखकर ख़ुशी महसूस कर सकते हो । लेकिन यह ओर  बात है कि आपको सुविधाएँ कम मिलेंगी । पर्यटकों को आकर्षित करने  और पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होने में अभी इसको बहुत समय लगेगा ।
नीलम नारंग
ग्रेटर मोहाली (पंजाब ) 
मोबाइल 9034422845

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