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उफ्फ्फफ्फ्फ़ ये प्री -वेडिंग शूट-सीमा”मधुरिमा”

संस्कृति कैसे बदलती है धीरे धीरे ये समझना होगा । अभी तक तो शादी विवाह में सेल्फी और डि जे पर थिरकना ही फैशन था । अब एक नया फैशन ट्रेंड में आ गया है । अब जब किसी नई जगह शादी विवाह में जाईयेगा तो गौर करियेगा । जहाँ ये ट्रेन्ड न दिखे आप समझ लीजियेगा की अत्यंत ही पिछड़े लोग हैं । तो चलिए अब उस ट्रेण्ड की बात कर लेते हैं । आजकल सेल्फी के पागलपन में और आधुनिकता के दौर में बीस किलो का लहँगा और जेवर पहने और दस किलो का शेरवानी पहने दूल्हा-दुल्हन को एक प्रकार से खारिज ही किया जा चुका है । जब उसी कार्यक्रम में कई अत्याधुनिक ड्रेसेस पहने सुंदरियाँ अगल-बगल थिरक रही होती हैं, तो कौन दूल्हा दुल्हन का मेकअप और भारी भरकम ड्रेस देखने की जहमत उठाएगा । ज्यादातर पुरुष वर्ग की निगाहें अगल बगल की सेल्फी लेती इन परियों की हरकतों पर ही रहता है। शायद इन्ही परिस्थितियों से ईजाद हुआ होगा ‘प्री वेडिंग शूट’ । तो आईये फिर ले चलते हैं आपको इस प्री वेडिंग शूट की तरफ । इसके अंतर्गत भावी दूल्हा दुल्हन को अलग अलग जगहों पर ले जाया जाता है , कभी किसी महल में तो कभी किसी बगीचे में तो कभी किसी फुलवारी में भी जहाँ वो तरह तरह के अत्याधुनिक ड्रेसेस पहने दुल्हन दूल्हा की बाँहों में झूलती नजर आती है। कभी वो भागती और दूल्हे द्वारा स्लो मोशन में उसको पकड़ने का सीन होता है तो कभी हाथ में हाथ लेकर आसमान से बातें करते और कभी तो दुल्हन शर्माती और दूल्हे द्वारा उसकी जुल्फों को संवारते दिखाया जाता है । कहने का मतलब है की आम जन भी बिल्कुल फ़िल्मी हुयी गवा है । तीन-चार घंटे का ये शूट एक ही दिन में तो कत्तई सम्भव नहीं इसलिए भावी दूल्हा दुल्हन और कैमरामैन की ये डेटिंग विवाह के पूर्व कई बार होती है और फिर उतनी ही बार दोनों के अलग अलग सुंदर ड्रेसेस और उनसे मेल खाते गहने और फिर पारलर की सजावट सबका खर्च ।
अब प्रचलन में चलने वाले दहेज की नहीं वरन आने वाले दिनों में कैसे अच्छे से अच्छा प्री-वेडिंग शूट ले लिया जाए इसकी चिंता सताएगी लोगों को । फिर तो आने वाले दिनों में घरों में बहू को घूँघट की आड़ में छुपने की जरूरत भी न होगी क्योंकि ससुराल के लगभग सभी मुख्य किरदारों के समक्ष तो वो अपने भावी दूल्हे की बाँहों में झूल जो चुकी है और वो भी कभी शोल्डरलेस ड्रेस में कभी गाउन में तो कभी जीन्स टी शर्ट में । एक और संस्कृति मुँह दिखाई का प्रचलन भी समाप्त ही हो जाएगा क्योंकि अब आधुनिक संस्कृति की दौड़ में मुँह दिखाई की जगह देह दिखाई पहले ही हो चुका होगा वो भी ,फ़ोकट में और दुल्हन को एक प्रकार से आर्थिक घाटा भी उठाना पड़ेगा । चलिए यहाँ तक तो गनीमत है पर आगे चलकर ‘संस्कृतिकरण की भाग दौड़ में कहीं ‘ सुहाग रात का वीडियो बनाने का प्रचलन भी आ गया तो उफ्फ्फफ्फ्फ़ हद्द है ….मेरी कल्पना भी कहाँ कहाँ चली जाती है …अब इतना भी आधुनिकीकरण नहीं होगा ।
हमें ऐसे में याद आता है जब मेरी छोटी बहन का विवाह तय हुआ था तो हमारे बड़े पापा और भाई ने कड़े शब्दों में सख्त हिदायत दी थी कि भूल कर भी कभी लड़के को तुम लोग फोन मत कर लेना। कोई जरूरत नहीं है ज्यादा गुफ्तगू की। और फिर जब उन्ही भाई साहब का विवाह तय हुआ तो अगले तीन माह में फोन का बिल पचास हजार पहुँच गया । बस गनीमत यही थी की होने वाली भाभी फोन से बाहर नहीं निकल आयीं अगर एक दो महीने और डेट आगे बढ़ जाती तो वो कसर भी पूरी हो जाती ।
हम सब इस समय संस्कृति का बदलाव होते देख और सुन रहे हैं साक्षी हैं । अक्सर जिन कपड़ों के पहनने पर भाईयों की आँखें हमें घूरती रहती थीं और जब तक उन कपड़ो को बदल न लिया जाता था भाई लोगों को चैन न आता था आज उनसे भी ज्यादा बोल्ड कपड़े उनकी बच्चियाँ पहनतीं हैं और वो सहज रहते हैं …. और कैसा बदलाव चाहिए समाज को ।

सीमा”मधुरिमा”
लखनऊ

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