जनवरी 2023
सेवानिवृत्त रामाधार जी का साधारण सा परिवार था जिसमें पत्नी जानकी,पुत्र राजे और पुत्री रोज़ी।राजे एम.बी.ए.करके नौकरी की तलाश भर हैं, और एक बढ़िया कंपनी में नौकरी लग गई घर में बहुत ही खुशी का माहौल बन गया।माँ जानकी कहने लगी कि कोई अच्छी सी लड़की और मिल जाए तो राजे की शादी और हो जाये, सुनते ही सब मुस्कुरा उठे।राजे का पहला दिन,जहाँ ऑफिस काफी बड़ा था जब वह दूसरे दिन तो फर्नीचर वाला वर्ग उसे दे दिया गया। ऑफिस में पहचान भी बढ़ती गई। बाबूजी की बात को उसने गाँठ बाँध ली थी,वे कहते हैं,”बेटा हमेशा अपना काम सच्चाई से करना,कंपनी तुम्हारे अच्छे काम के लिए पैसा देती है।”
जब वह अपने काम में व्यस्त था तभी एक युवा महिला आयीं, उन्हें उसने इससे पहले कभी नहीं देखा था।वे सीधे राजे के चेम्बर में आईं और बोलीं,”आज का ऑर्डर पूरा कर दिया मि.राजे? मैं जया हूँ , अग्रवाल सर की पर्सनल सेकेट्री “। जिस कंपनी में आप कार्यरत है वे उसके मालिक हैं अग्रवाल जी।
राजे ने आँख उठाकर जब उनकी तरफ देखा , तो देखता ही रह गया। ।वे बहुत ही खूबसूरत महिला थीं, उनका आकर्षक व्यक्तित्व और सुंदर नेत्रों में वह ऐसा खो गया कि देखता ही रह गया। उन्होंने कोई बढ़िया सा परफ्यूम लगा रखा था जिससे एक मन को खींचने वाली खुशबू चारों तरफ व्याप्त हो गई थी।वे पुनःबोलीं,”मि.राजे आप क्या सोच रहे हैं ?आज का ऑर्डर पूरा कर दिया आपने ?
जी हाँ, जी हाँ पूरा हो गया।”।अभी भी खुशबू से सारा चेम्बर महक रहा था।समय बीतता गया।
आज सबेरे बहुत जल्दी तैयार हो गया खूब देर तक नहाया,माँ ने खटकाया भी कि बाथरूम में सो गया क्या?
कंघी गीले बालों में ही की क्योंकि बाल फिर सेट हो जाते हैं। समय बीतता गया आज जब ऑफिस पहुँचा तो,सामने जया जी खड़ी थीं,बोली मि.राजे सर अग्रवाल जी आपसे बहुत खुश हैं। आपने सबपर जादू सा कर दिया है ।अग्रवाल सर कह रहे थे जैसा हम चाहते थे वैसा व्यक्ति मिल् गया।
राजे –“आप मेरी तरफ से सर को धन्यवाद दे दीजिएगा। मुझे भी सभी अपने से लग रहे है।।जया जी रोजाना अग्रवाल जी के साथ राउंड पर निकलती थीं।रोज सुबह- शाम उनका मुख देख लेता था और मानो मेरा तो दिन ही बन जाता था।कुछ लोग होते ही ऐसे हैं।धीरे -धीरे ना जाने कुछ- कुछ हो रहा था।जया जी का धीरे से मुस्कुराना घायल कर जाता था।
। सुना है,जब एक बार आदमी प्यार खोज लेता है तो भीतर ही भीतर उसकी अनुभूति होने लगती है और उसकी अस्फुट झलक भी दिखने लगती है।प्रेम की अद्वितीयता और उसके महत्व का एहसास होने लगता है।मैं अपने चेम्बर में आ गया और सोचने लगा कि अभी जुम्मे- जुम्मे नौकरी में आये चार दिन हुए हैं और ये उसे क्या हो रहा है।
वक्त की प्रतीक्षा करनी चाहिए। प्रेम के मुख्य तत्त्व हैं-आलाप मिलाप और आवेग।अभी तो गाड़ी आलाप पर भी नहीं आई।
अरे ये में क्या सोच रहा हूँ।यह तो मेरे मन की सोच है। प्यार के मामले में
कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि जो भाव हमारे मन में हैं वही भाव उनके भीतर भी उठ रहे हों जिसे हमने अपना
प्रेम बिन्दु माना है।अनेक बार कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते।कभी एकांत मिलता ही नहीं।हर वक्त यही आभास होता है कि कहीं कोई
देख तो नहीं रहा।जया जी को जब भी मैंने देखा तो कुछ लगता तो है कि उनकी चितवन भी मुझ में अपने प्रीतम को खोज रही हैं।मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे वे मुझसे कुछ कहना चाह रही हैं।आज जब वे राउंड पर आईं तो उनके चेहरे पर एक विचित्र सा भाव नजर आया।मन किया कुछ कहूँ,कुछ पूछूं बस उनकी आवाज ही सुन लूँ। जया जी का मदभरी निगाहों से हमारी तरफ यूँ देखना,मैं तो पानी- पानी हो गया।मुझे लगा कि ये हवा की मरमरी चाल, ये क्यारियों के फूलों की ताजी महक, ये डालियों का झुकाव,सब कुछ मेरी ओर इंगित हो रहा है।एक फुरफुरी सी होने लगी। कानों के पर्दों में सुरसुरी जैसे दिशाऐं कह रही हों पागल तू कब समझेगा। “कुछ तो समझ ऐ भोले सनम” दोनों तरफ प्यार उमड़ रहा हैै।जया जी को भी लगता है कुछ तो हुआ है।वह शान्त सा व्यक्तित्व मचलने लगा है। इससे पहले ऐसा उन्हें कभी नहीं हुआ ।बस तीन शब्दों में समाधान निकल आता।इतना ही तो कहना था ।हम क्यों नहीं कह पा रहें।
आज सबेरे से ही मुझे लग रहा था कुछ तो अच्छा होने को है।कभी -कभी मन में एक सुखद अनुभूति सी होती है ।अचानक जया जी चेम्बर में आईं और मैं उनकी तरफ भोंचक्का सा देखता रह गया क्योंकि ऑफिस से संबंधित बातें तो सबेरे ही हो चुकी थी।वह सोचने लगा कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं हो गई।जया जी को स्वयं आना पड़ा –“राजे जी ब्रेक में मिलियेगा,आपसे मुझे कुछ काम है”
जया जी ब्रेक में आईं और मैं अपना टिफिन लेकर उनके पीछे -पीछे चल पड़ा।दिल धक- धक कर रहा था।
वे ही बोलीं,”राजे जी आपसे मुझे कुछ निजी बातें करनी हैं।”
मैं सोच रहा था कि वे शायद मुझे विश्वास योग्य समझने लगी हैं।-राजे जी यह बताइये कि क्या आपकी शादी हो गई है? या आपको कोई पसंद है?
राजे -जी नहीं जया जी,माँ खोजती रहती हैं पर अभी तक खोज जारी है।”
मैं भी अविवाहित हूँ।वे बोलीं,”मुझे घुमा फिरा कर बातें करना नहीं आता राजे जी,क्या आप मुझे अपनी जीवन संगिनी बनायेंगे?आप सोच रहे होंगे राजे जी कि आज मैं आपसे कैसी बातें कर रही हूँ। मैं आपको बहुत समय से देख रही हूँ आप एक अच्छे भले इंसान लगे।हाँ या ना जो भी हो मैं बुरा नहीं मानूंगी।पर अभी ऑफिस में किसी से भी चर्चा मत करिएगा।आप पर मुझे विश्वास है इसलिए बात की।”
राजे तो यह सुनने के लिए कबसे बेचैन था।आज तो खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था।घर जाकर अम्मा का हाथ जोरों से पकड़ बैठक में ले आया।
अम्मा–अरे रे रे ..क्या हो गया रे, इतनी जल्दी प्रमोशन?
राजे-“अरे प्रमोशन नहीं अम्मा,आज तो गजब हो गया।आप अब तैयारी करलो बहू आने की,”
और पूरा किस्सा माँ को सुना डाला।
राजे -अम्मा जया जी अपने घर आकर खुश तो रहेंगी ना?
माँ–हाँ, शुरुआत में तो अनुशासन में रहना होगा, फिर तो आज़ादी है।
अगले दिन राजे ने इशारे- इशारे में वह बात कह दी,जिसका इंतजार जया जी कर रहीं थीं। विवाह तय हो गया।सब
कुछ भलीभांति निपट गया।जया के घर के सभी लोग बेहद प्रसन्न थे।इधर राजे के घर के लोग तो खुशी से झूम रहे थे।घर में नववधू का प्रवेश हुआ,आस-पास की बूढ़ी बुजुर्ग महिलाओं ने रीतिरिवाज़ों के गीत गाना प्रारंभ कर दिए।शाम होने को थी सारे रीतिरिवाज़ निपट चुके थे,उनको निभाते- निभाते जया थक कर चूर हो चुकी थी।सासू माँ ने कहा बहूरानी आज तुमको उपास करना पड़ेगा रात में भी फलाहार करना है।जैसे ही कमरे में से सब निकले जया ने तुरंत दो किलो की चुनरी उतार कर पलंग पर रख दी और अब वह वास्तव में बहुत हल्का महसूस कर रही थी।शीशे में अपना चेहरा निहारने लगी।नाक पर लगा सिंदूर पूरे गाल पर बुरी तरह फैल गया था।गर्मी के कारण और इतने भारी भरकम कपड़ों को पहनने के कारण काजल और सिंदूर का मिश्रण पूरा मुखड़ा “कालीमाई “सा लग रहा था। कोई मायके में देखता तो कहता–“कालीमाई कालीमाई दीयासलाई ,भागो रे बच्चों भुतनी आई” राजे की माँ ने कह रखा था जया बेटा ये टटका सिंदूर है इसे ना धोना होगा ना पोछना होगा।यह सिंदूर सुहाग का होता है,इसे धोना तो कभी नहीं चाहिए ,दूसरे दिन स्नान करते में भले ही धो लो।अपने फैले हुए बालों को ऊपर की तरफ कंघी करके द्वार पर खड़ी हों गई।सामने ही आम का वृक्ष था जिसपर बौर आ रहा था। मन किया,जाकर पेड़ के नीचे लेट जाऐं,बौर झरता रहे परंतु एकदम से ख्याल आया कि “जया तू ससुराल में है ।मैं धड़ाम से पलंग पर जा गिरी।मैं सोच में पड़ गई कि जो इंसान मुझे देखने के लिए इतना व्यथित रहता था ।मुझे देखे बिना उसे चैन नहीं पड़ता था,आज उसके पते नहीं हैं।आज मैं उसके आगोश में खो जाने को तैयार हूँ मगर जनाव गायब हैं,अब तो डाँट भी नहीं सकती।जी और हाँजी ,सुनिये जी! बस यही कहना होगा।पता चला श्रीमान आगरे वाली बूआजी को स्टेशन छोड़ने गए हैं।थोड़ी देर तो बैठी रही पर थकान की वजह से नींद कब लग गई पता ही नहीं चला जैसे ही आँख लगी थी कि ननदोई जी गुनगुनाते जा रहे थे–मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता है”।वे ना जाने अब तक कितने गाने गा चुके थे।मन में खीज भी हो रही थी पर रिश्ता कुछ ऐसा था कि जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ता था। ससुराल में थे वर्ना ऐसे लफूटों को कान के नीचे दो लफाड़े धर देते अबतक और फिर इसके बाद कभी हमारी तरफ देखता भी नहीं।ये ननदोई लोग कितने गए गुजरे होते हैं पर ससुराल में इतनी खातिर तबज्जो होती है कि ये सबकी खोपड़ी पर चढ़ जाते हैं।वैसे दुल्हन का हँसना तो सख्त मना था ।
अभी तक राजे लौटे नहीं थे।मैं दूध पीकर व सेब फल खाकर सोने की कोशिश कर रही थी तो समय देखा रात के ग्यारह बज चुके थे।सब रिश्तेदार सोने चले गए ।नीचे खिड़की से झाँका तो चाँदनी का मजा लेते हुए सब लोग खुले आकाश में सो गए थे,ना उढ़ैया की फिक्र ना बिछैया की फिक्र कुछ ने तो फर्श पर ही लोट लगा ली।
मुझे ना जाने कब नींद लग गई पता ही नहीं चला और जब नींद खुली तो देखा राजे की गोद में मेरा सिर था और वे धीरे- धीरे पंखा झल रहे थे।
जया–“अरे आप कब आये”?
राजे–बस थोड़ी देर हुई,आप जाग क्यों गईं?
जया–“अरे नींद खुल गई,आप सो जाइए ना!कितनी गर्मी है,पंखा झल देती हूँ”
यह कहते हुए मैंने राजे जी के हाथ से पंखा ले लिया।
राजे–“गर्मी बहुत है ,बाहर चलेंगी?”
जया–“अरे नहीं अम्मा गुस्सा करेंगी,यदि उन्हें मालूम पड़ा तो।
राजे–“थोड़ी देर के लिए चलते हैं फिर आ जाऐंगे हम लोग पिछले दरवाजे से चलेंगे किसी को पता नहीं चलेगा।”
जया तो यही चाहती थी,उसका बड़ा मन कर रहा था बाहर की हवा खाने का।जैसे ही बाहर निकली तो पायल बज उठी और चूड़ियाँ खनकने लगीं।तभी राजे ने जया को गोद में उठा लिया,अब पायल बजना बंद हो गया।राजे और जया के दिलों में धक-धक तो हो रही थी और साथ ही सुखद मिलन की घंटियाँ भी बज रही थीं।अगले ही पल दोनों आम के पेड़ के नीचे थे।हल्की-हल्की हवा के साथ आम का बौर मेरे मुख को मानो चूम रहा हो,राजे जी उन नन्हें फूलों को समेटने में अपना सौभाग्य समझ रहे थे। परंतु ननदोई जो अभी तक सोये नहीं थे आँखे खोल- खोल कर नयन सुख ले रहे थे,अभिनय ऐसा था कि गहरी नींद में हैं।अब थोड़ी आहट होना स्वाभाविक था और तभी…
अम्मा जी -(खिड़की से झाँकते हुए)”अरे उठो जी,देखो ये दोनों बाहर क्या कर रहे हैं।गजब हो गया!!?वे जोर से आवाज लगाने ही वालीं थीं कि ससुर जी ने उनके मुँह पर ऊंगली रख दी और चुप रहने का इशारा किया।चाँदनी प्रेम बरसा रही थी।पति -पत्नी के विविध रसमय कल्लोल को देखकर बाल बच्चों का स्वाभाविक सरल सुखद हास्य देखकर बोले”,जानकी जी हमारे जीवन में रस नहीं था,रस था भी तो रस का आश्रय लेने के लिए हमारे चित्त में रस का नितान्त अभाव रहा यह तो आप मानती हैं ना?हमारी जीवन लता को प्रफुल्लित करने के लिए कभी प्यारा बसंत आया ही
नहीं और हमारे हृदय की कलियों को खिलाने के लिए मलयानिल कभी बहा ही नहीं ।जानकी, रामाधार जी के गले में बाँहें डालकर छाती से लग गईं।उस समय पर एक साथ कई दिल दूल्हा दुल्हन बन मिल रहे थे।आज बाबूजी और अम्मा जी दिव्यानंद में खो गए।
डॉ रंजना शर्मा
C -24 , सिद्धार्थ लेक सिटी
रायसेन रोड
भोपाल –462022
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