कविता में कल्पना तत्व की प्रधानता होती है, कवि एक कल्पनाशील प्राणी है, प्रजापति की तरह वह स्वयं की कल्पना लोक का निर्माण करता है| शब्द मानव ध्वनियों का पहला संगठन और भाषा की पहली ईकाई है, शब्द का अपना जादू होता है, इसमें संदेह नहीं है| कवि शब्द रूपी …
Read More »बेदम साँस-नफे सिंह कादयान
जिस्म की बेचैनियों का कोई तो हल हो। एक आग सी है सीने में जो दिल से हरारत पा बुद्धि को रोशन रखती है। मस्तिष्क में फैली हुई हजारों मील लम्बी नाड़ियों की रक्तखुंबियों में हर समय जैसे बिजली सी चमकती है। ऐसे जैसे घनघोर काली घटाओं में कड़कती हुई …
Read More »अनिश्चय में झूलती हिंदी-डॉ. राधा दुबे
भाषा उन महत्वपूर्ण इकाईयों में से एक है जो मानव जाति को एक सूत्र में पिरोकर रखती है। भाषा के स्वरूप का निर्धारण मानव समाज द्वारा होता है। निश्चित रूप से भाषा मानव की सहचारिणी है। शौक, आवश्यकता या कार्य की बाध्यता पड़ने पर जब मानव विश्व के दूसरे देशों …
Read More »मेरा अभिमान-अर्चना
सुमित को नौकरी मिल गई थी। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। आज सुबह ही उसे फोन के माध्यम से सूचना मिली थी। वह एक माह पूर्व इस नौकरी के साक्षात्कार के लिए गया था, अपने दोस्त अमित के साथ। साक्षात्कार की उसने बहुत तैयारी की थी। अपने विषय की …
Read More »फ़्रीडम -रश्मि
सुबह से शीला तरह-तरह के व्यंजन बनाकर बच्चों को खिलाती जा रही थी। साठ वर्ष की उम्र में वो पच्चीस वर्ष की लड़की की तरह फुर्तीली हो गई थी। बहुत दिनों बाद सावन के महीने में उसके घर में बेटियों की हॅंसी गूॅंज रही थी। डिनर के लिए पूछने का …
Read More »अपनी दुनिया-राजेन्द्र कुमार सिंह
तकरीबन दस साल के बाद गांव के बस स्टैंड पर उतरा है रामधन।जब गांव छोड़ा था तो यह सड़क जहां अब बस स्टैंड के रूप में अवस्थित है वह मात्र खंडहर था।आजू-बाजू झुग्गी- झोपड़ी से सुसज्जित अस्थाई दुकान था जिसमें सिगरेट,बीड़ी, पान,गुटखा,चाय,पकौड़ी वगैरह इत्यादि मिलता था। कभी-कभी इक्के-दुक्के सब्जी वाले …
Read More »दलजीत की लघुकथा
वे सज-धज कर बल खाती हुईं आती हैं और अपने जैसी किसी कवयित्री से नागिन-सी लिपट जाती हैं ।कविता मंच पर बैठी है ।उस पर उनका ध्यान नहीं है ।वे आपस में सूट -साड़ी पर बात करती हैं ।नेलपालिश की तारीफ़ करती हैं ।जूते -चप्पल की तारीफ़ करती हैं । …
Read More »सबसे कीमती चीज-सिद्धार्थ शंकर
एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पाँच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार -रु39यारू की, हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा, “ये पाँच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठाना शुरू हो गए। फिर उसने कहा, “मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को …
Read More »राम जी की फोटो-महेश शर्मा
दरअसल गलती मेरी ही थी । यदि उस दिन मेले में जाकर माँ के लिये रामजी का फोटु पसन्द करके मैं ना लाता तो घर में इतना बखेडा ही ना होता |रामजी के फोटो को लेकर घर में घमासान मचा हुआ था | माँ और छोटा बन्टी एक तरफ थे …
Read More »डॉ प्रदीप की लघुकथाएं
हमारे साहित्य सरोज के फेसबुक पेज को लाइक व फालो करें “बेटा, यदि सारा खाना लग गया हो, तो यहां तुम भी अपनी प्लेट लगा लो।” रमा बोली।“पर मां जी, मैं यूं… आप लोगों के साथ…?” हिचकते हुए सुषमा बोली।“क्यों ? क्या हो गया ? क्या मायके में अपने मम्मी-पापा और भैया के साथ खाना खाने नहीं …
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