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अनिश्चय में झूलती हिंदी-डॉ. राधा दुबे

भाषा उन महत्वपूर्ण इकाईयों में से एक है जो मानव जाति को एक सूत्र में पिरोकर रखती है। भाषा के स्वरूप का निर्धारण मानव समाज द्वारा होता है। निश्चित रूप से भाषा मानव की सहचारिणी है। शौक, आवश्यकता या कार्य की बाध्यता पड़ने पर जब मानव विश्व के दूसरे देशों में प्रस्थान करता है तो उसकी भाषा भी भौगोलिक विस्तार पाती है। कभी-कभी इच्छानुसार या आवश्यकतानुसार हम दूसरे देशों की भाषा का पठन-पाठन या उसमें शोध-अध्ययन भी करते हैं। मनुष्य को श्रेष्ठतम वरदानों में भाषा एक अनुपम सौगात है।हिंदी की बात करते हैं तो हमारा सीना गर्व से फूल जाता है। हिंदी के उत्थान की कामना सदैव प्रत्येक भारतीय की  रही है व जनमानस इस दिशा में सदैव प्रयासरत भी दिखते हैं।  हिंदी का विकास 10वीं व 12वीं शताब्दी से माना जाता है। हिंदी संस्कृत की बेटी है। हिंदी भारत का आत्म-गौरव है। देवनागरी लिपि कम्प्यूटर में लिखी जाए तो कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि यह बहुत वैज्ञानिक लिपि है। यह दुनिया की एक-मात्र लिपि है, जो  जैसी लिखी जाती है वैसी ही पढ़ी जाती है।
भारतेन्दु ने अपने जर्नल ’कालचक्र’ में नोट किया ’’हिन्दी नए चाल में ढली 1873’’। सौ वर्ष बाद हिंदी को ढालने का काम सरकार ने ले लिया। भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा माना गया है, परन्तु राजभाषा घोषित नहीं किया गया। इसके लिये कुछ वास्तविक और अधिकतर काल्पनिक समस्याओं को पिछले चार दशकों से उठाया जाता रहा है। कुछ तो राजनैतिक संदर्भो के प्रबल होने से और कुछ अंग्रेजी प्रभुता के समर्थक शक्तिशाली वर्ग की अभिसंधि से हिंदी के स्वरूप को लेकर ही संशय खड़ा कर दिया गया। राजभाषा हिंदी के लिए संघ सरकार की ओर से जो कोश और व्याकरण ग्रंथ बने वे निश्चय ही हिंदी के अपने विद्ववानों द्वारा तैयार किये गये हंै, पर उनकी नियामक नीति सरकारी है, जो स्वयं कभी जानकर और कभी अज्ञान के अनिश्चय में झूलती रही है।
संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी काम-काज की भाषा राजभाषा कहलाती है। राजभाषा का प्रावधान संविधान में 343 से 351 के अनुच्छेदों में र्विर्णत है। अनुच्छेद 343 में संघ की राजभाषा के रुप में हिंदी व देवनागरी को लिपि के रुप में मान्यता मिली। भारतीय संविधान में 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को मान्यता दी। इसी कारण 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है। अनुच्छेद 120 के अनुसार संसद का कार्य हिंदी या अंग्रेजी में होगा। अनुच्छेद 210 के अनुसार प्रांतों के राज्य विधान मंडलों का कार्य राज्य की राजभाषा में या हिंदी/अंग्रेजी में होगा। हिंदी जब राजभाषा के चुनौती भरे पद पर आसीन हुई है, तब उसे भाषिक दायित्वों का निर्वाह भी करना है। जो आवश्यकता पहले अनुभव की गई थी वह आज भी की जा रही है, क्योंकि आज हिंदी केवल साहित्य की ही भाषा नहीं बल्कि प्रशासन, कार्यालय और जनसंपर्क की भाषा भी है।

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प्रशासनिक सेवाओं में हिंदी की स्थिति

प्रशासनिक सेवाओं में अंगे्रजी को बढ़ावा देकर हिंदी को उपेक्षित रखा गया है। न्यायालयों का कार्य भी अंग्रेजी में होने के कारण वकीलों, न्यायधीशों को अंग्रेजी में ही व्यवहार करना पडता है, जिससे अंग्रेजी के प्रसार को बल मिलता है तथा हिंदी उपेक्षित होती है। हालाँकि कुछ न्यायधीश व अधिवक्ता विधिक क्षेत्र में हिंदी को बढ़ावा दे रहे है और अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद कर रहे है, लेकिन इनकी संख्या सीमित है। इस तरह की कुछ समस्याऐं हिंदी को पूर्णतः राजभाषा बनने में रूकावटें पैदा करती रही है। इस प्रकार के कई विरोधों व कठिनाईयों के बावजूद आज प्रशासनिक कार्यों में हिंदी की प्रधानता है।
हिंदी आज विश्व में अपने महत्व को रेखांकित कर रही है। संसार में हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसके नाम की उत्पत्ति से लेकर उसके व्याकरणिक विशेषताओं, साहित्यिक इतिहास लेखन व भाषा वैज्ञानिक अध्ययन तक सभी पहलुओं पर विदेशी विद्वानों ने अपनी रूचि दिखायी है, रूचि ही नहीं बल्कि पहली बार इन सभी बिन्दुओं पर अपनी कलम चलायी है।
आज हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि समयानुसार हिंदी में कई बदलाव आए व इसके स्वरूप में बहुत परिवर्तन आया जो इसे गति देने में सहायक हुए हैं और इसी कारण वर्तमान में मीडिया, इंटरनेट-ब्लाॅग, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि के कारण हिंदी की स्थिति समृद्ध हुई है। हिंदी विकासमान भाषा है, यह स्थिर नहीं है, यह गतिमान है इसी कारण यह कार्यालीन और प्रशासनिक भाषा की क्षमता से पूर्ण है। हिंदी ही वह भाषा है जो राष्ट्र में जन भाषा, संपर्क भाषा व संस्कार भाषा के रूप में विद्यमान है। हिंदी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शासन एवं प्रशासन स्तर पर प्रयोग करने के साथ-साथ कार्य व्यवहार में भी लाना होगा तभी हिंदी की स्थिति मजबूत होगी।  सुप्रसिद्ध भाषा विद् डाॅ0 रवीन्द्र श्रीवास्तव के अनुसार-’’यह कहा जा सकता है कि राजभाषा के रूप में हिंदी, अंग्रेजी की तरह न केवल प्रशासनिक प्रयोजनों की भाषा है बल्कि उसकी भूमिका राष्ट्रभाषा के रूप में भी है। वह हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता की भाषा है।’’

निष्कर्ष

वर्तमान समय में हिंदी विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है फिर भी भारत में यह उपेक्षित रही है। आज भी सरकारी काम-काज अंग्रेजी में ही होता है। इसका मुख्य कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का न होना है। यदि हमारी सरकार अदम्य इच्छाशक्ति रखे तो वह दिन दूर नहीं जब यह भाषा अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान पर आ जाए। हिंदी भाषा आज भी उपेक्षा का शिकार है। 1815 ई0 में जर्मनी के स्वतंत्र होने पर बिस्मार्क ने आदेश दिया था कि एक वर्ष के भीतर सभी काम-काज जर्मन भाषा में होंगे, जो नहीं करेंगे उन्हे नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा। एक वर्ष के भीतर ही जर्मन भाषा राष्ट्रभाषा बन गई परन्तु भारत में अंगे्रजी के भक्तों के कारण हिन्दी राजभाषा पूर्णतः नहीं बन पाई है।

डॉ. राधा दुबे

जबलपुर (म.प्र.)

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