सनातन भारतीय संस्कृति के मंडन में कवि का मन रमता है और श्रेष्ठ भारत के गौरवगान में कवि का प्राण जीवंत हो उठता है।प्रकृति पग-पग पर उसकी काव्य-संगिनी बन जाती है और भारत के संस्कृति पुरुष श्री राम और उनके दासों की झलक कवि की कृतियों में रूपायित होती रहती है।कवि का मिलनसार स्वभाव उसे विरासत में मिला है।एक बार जो संपर्क में आया वह सदा-सर्वदा के लिए इनका हो जाता है।ये गुणज्ञजनों का खुलकर समादर करते हैं,अपनी विनम्रता से सबको वशीभूत कर लेते हैं।कवि ने शांतिकुंज हरिद्वार की नवसृजन परंपरा से प्रेरित होकर ग्रामांचल में दो शिक्षण संस्थाओं की स्थापना भी किया है। भारतीय पौराणिक प्रज्ञा को आधुनिक संदर्भों में समाजोपयोगी रूप में प्रस्तुत करनेवाले,तटस्थ समीक्षक,लेखक,कालजयी लेखनी के माध्यम से एक भारत-श्रेष्ठ भारत,अखंड भारत-अतुल्य भारत,विश्वगुरु भारत-स्वर्णविहग भारत के महान गायक कविप्रवर विजय शंकर मिश्र 'भास्कर' का जन्म पाँच जुलाई उन्नीस सौ पचपन ई.को आदिगंगा गोमती के उत्तरी तट से दस किमी दूरी पर जनपद सुलतानपुर के ग्राम समुदा पत्रालय गौराटिकरी तहसील कादीपुर विकास खंड करौंदीकला में स्व.सुखपत्ती देवी एवं स्व.पंडित राम अकबाल मिश्र के पुत्र के रूप में हुआ था।संस्कारसंपन्न परिवार से बालक विजय शंकर को श्रेष्ठ संस्कार मिले।पिताश्री भागवतनिष्ठ पंडित थे और माता स्वधर्म पालिका गृहिणी।पूर्णमासी को सत्यनारायण व्रतकथा सुनती थीं और ब्राह्मणों को भोजन कराकर ही आहार ग्रहण करती थीं।आपने निकटस्थ विद्यालयों से बी.एस.सी.तक शिक्षा प्राप्त की।बागवानी,कविता पाठ और रामलीला देखना आपकी अभिरुचि रही।आपने बंगाल जाकर बिरला कॉलेज आफ साइंस एंड एजूकेशन कोलकाता से बी.एड्.का प्रशिक्षण प्राप्त किया और लगभग सात वर्षों तक बंगाल के हावड़ा जनपद स्थित सेंट एलॉएशिएस स्कूल में गणित-विज्ञान शिक्षक के रूप में सेवा प्रदान किया।तदुपरांत रामयश रामनिधि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मझगवाँ सुलतानपुर (उ.प्र.) में बत्तीस वर्षों तक सेवा पूर्ण करके सेवानिवृत्त हुए।बीच-बीच मेंअवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से हिंदी और संस्कृत में परास्नातक उपाधि भी प्राप्त की।विज्ञान का विद्यार्थी और शिक्षक होने के बावजूद कवि ने प्राचीन भारतीय साहित्य का गहन मनन-चिंतन कर हिंदी साहित्य को संस्कृतिपरक अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रदान किया है।
सनातन भारतीय संस्कृति के मंडन में कवि का मन रमता है और श्रेष्ठ भारत के गौरवगान में कवि का प्राण जीवंत हो उठता है।प्रकृति पग-पग पर उसकी काव्य-संगिनी बन जाती है और भारत के संस्कृति पुरुष श्री राम और उनके दासों की झलक कवि की कृतियों में रूपायित होती रहती है।कवि का मिलनसार स्वभाव उसे विरासत में मिला है।एक बार जो संपर्क में आया वह सदा-सर्वदा के लिए इनका हो जाता है।ये गुणज्ञजनों का खुलकर समादर करते हैं,अपनी विनम्रता से सबको वशीभूत कर लेते हैं।कवि ने शांतिकुंज हरिद्वार की नवसृजन परंपरा से प्रेरित होकर ग्रामांचल में दो शिक्षण संस्थाओं की स्थापना भी किया है।
कवि अखिलविश्व गायत्री परिवार का सदस्य है और उसकी प्रथम काव्यरचना ‘श्री गुरु चालीसा’ है जो गायत्री परिवार के अधिष्ठाता पं.श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ को समर्पित है।कवि अपनी काव्यप्रतिभा को गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ जी की ही कृपा मानता है।
सेवानिवृत्ति के पूर्व कवि की लेखनी ‘श्री गुरु चालीसा, श्री राम चालीसा और गोपाल चालीसा तक ही सीमित रही।विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वह स्वागत-गीत और भाषण एकांकी इत्यादि के लेखन तक ही सीमित रहा।सेवानिवृत्ति के बाद उसके गुरु ने उसे गुरुतर कार्य प्रदान किया और वह प्रबंधकाव्य के सृजन की ओर अग्रसर हो गया।उसने स्तोत्र काव्य के रूप में अवधी भाषा में ‘हरिः शरणम्’ और ‘जोहारी तोहैं बजरंगी’ की रचना की।’जोहारी तोहैं बजरंगी’ स्तोत्र काव्य पर उसे राष्ट्रकवि पं.वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्य प्रकाशन समिति लखीमपुर खीरी (उ.प्र.) द्वारा ‘अवधी वारिधि’ उपाधि प्रदान की गई।
इसी बीच कोरोना काल आ गया।इस कालखंड में उसने अपनी कोठरी को साधनाकक्ष बना लिया और गाउँ हमार देस हमार,जीवन बोध,कोरोना कालम् जैसे लघुसंग्रह लिखे।वनदेवी,विप्रवरेण्य सुदामा, रुक्मिणी मंगल,राघव चरित,युग ऋषि,बलि उत्सर्ग,रामदूत जैसे चरित्र प्रधान खण्डकाव्य कोरोना काल में ही सृजित हुए।उन्होंने पंचकन्याओं अहिल्या, मंदोदरी, तारा, कुंती और द्रौपदी पर सक्षम लेखनी चलाई और यशोदा के मातृत्व की प्रतिष्ठा में लघुकाव्य की रचना की।भारतीय संस्कृति में चिरस्मरणीय अष्ट चिरंजीवियों अश्वत्थामा, बलि,व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, वेदव्यास तथा परशुराम को अपने सृजन से प्राणवंत किया साथ ही साथ देहदानी दधीचि को भी महिमामंडित किया।भरत चरित, देवरहा बाबा,रुक्मिणी मंगल और उद्धवगीता की भी रचना हुई।पौराणिक देवता आदिपूज्य गणेश पर भी सुंदर खण्डकाव्य सृजित किया।इसमें गणेश की बाललीला और उनके अद्भुत पराक्रम का सरस वर्णन हुआ है।कवि में प्रबंधकाव्य सृजन की विलक्षण क्षमता के दर्शन होते हैं।रणधीर सुमित्रानंदन,स्कंद-विजय, विजयपथ,भए प्रगट कृपाला और शकुंतला ऐसे ही मनोहर और मनमुग्धकारी सृजन हैं।लगता है कि कवि को कालिदास बहुत प्रिय हैं।जहाँ विजयपथ में रघुवंशम् की कुछ कथाएँ हैं तो वहीं वाल्मीकीय रामायण के प्रसंग श्री राम के विजयपथ में बड़ी निपुणता के साथ समाहित हो गए हैं।कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तल पर आधारित शकुंतला, कुमारसंभव पर आधारित स्कंदविजय और मेघदूत पर आधारित यक्षप्रिया बहुप्रशंसित और आदरित ग्रंथ हैं।भए प्रगट कृपाला में श्रीरामजन्मभूमि की पाँच सौ वर्षों की संघर्ष गाथा है और मंदिर निर्माण तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है।इसमें श्री राम की वंशावली और उनके प्रमुख पूर्वजों का यशोगान भी हुआ है।भए प्रगट कृपाला को अनेकानेक प्रतिष्ठित संस्थाओं ने सम्मानित किया है।आचार्य अकादमी चुलियाणा हरियाणा द्वारा भए प्रगट कृपाला को वर्ष 2023 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है।कवि की सभी रचनाएँ अनेक साहित्यकारों,भक्तों और संतों द्वारा प्रशंसित हुई हैं।
राष्ट्रीय पत्रिका चेतनता के सितंबर 2020 में शकुंतला की समीक्षा करते हुए महामहोपाध्याय प्रो.जयप्रकाश नारायण द्विवेदी ‘विद्यावाचस्पति’ अपने समीक्षात्मक आलेख ‘लोकोपादेय कृति शकुंतला’ के सारांश में लिखते हैं कि,”निष्कर्षतः निस्संकोचभावेन यह कहा जा सकता है कि रामकथा की परंपरा में लगभग तीन सौ रामायणों के बावजूद रामचरितमानस को जो गौरव प्राप्त है; अभिज्ञानशाकुन्तलं के ऊपर शताधिक ग्रंथों के रचे जाने के बावजूद भास्कर द्वारा प्रणीत ‘शकुंतला’ को वही गौरव प्राप्त होना चाहिए जो काल की
अव्यवहित अपरिच्छिन्न गति के साथ सज्जनों की मैत्री एवं पूर्वाह्न में सर्वजनहिताय समुदीयमान भगवान भुवन भास्कर की तेजस्विता को नित्य प्राप्त होती है।
राष्ट्रीय पत्रिका चेतनता अंक 11-12 ईसवी सन् 2022 में डॉ.गोरखनाथ मिश्र ‘उत्कृष्ट श्लाघ्य रचना -स्कन्द विजय’ शीर्षक के अंतर्गत पृष्ठ 197 पर लिखते हैं,”शब्दों का चयन संदर्भानुकूल है।भाषा प्रांजल है,मँजी हुई शैली है और कवि की सृजनात्मक कल्पना में काव्यात्मक परिपक्वता है।
डॉ.विद्यानंद ब्रह्मचारी,संस्थापकाध्यक्ष रामायण प्रचार समिति खगड़िया (बिहार) ‘राघव चरित’ को रमणीय रचना मानते हुए अपना अभिमत देते हैं कि,” सुकवि भास्कर जी द्वारा ‘राघव चरित’ काव्य बहुत कारगर है।इनके अंतःकरण में कविता रचने की शक्ति विद्यमान है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण राघव चरित काव्यग्रंथ पाठकों के अक्षों के समक्ष उपस्थित है।इनकी कविता में सरसता और मोहकता कूट-कूटकर भरी है।
‘केरलज्योति’ मासिक पत्रिका के मुख्य संपादक प्रो.डी. तंकप्पन नायर ‘युगऋषि’ पर अपना अभिमत प्रदान करते हुए लिखते हैं,”भारतीय संस्कृति की सनातन विचारधारा ‘विश्व एक परिवार’ तथा ‘सभी सुखी सभी रोगरहित हों’ के प्रबल समर्थक श्री विजयशंकर मिश्र ‘भास्कर’ जी द्वारा प्रणीत एक लघु किंतु गरिमामय काव्य है ‘युगऋषि’।काव्य का नाम सार्थक करनेवाली यह रचना गुरुवर आचार्य श्रीराम शर्मा का जीवनचरित है और उनको सहयोग देनेवाली उनकी धर्मपत्नी की कीर्तिगाथा भी है।दोनों के उदात्त जीवन की प्रेरणादायक तेजोमय झाँकी प्रस्तुत काव्य में मिलती है।”
अधिवक्ता मधु.बी.मंत्री,केरल हिंदी प्रचार सभा तिरुवनंतपचरम् लिखते हैं कि मुख्य संपादक प्रो.डी. तंकप्पन नायर के सौजन्य से मुझको पं. विजयशंकर मिश्र ‘भास्कर’ द्वारा रचित प्रेरणादायक काव्य पढ़ने का अवसर मिला।इस लघु काव्य के पन्नों से गुजरकर मैंने स्वयं धन्यता का अनुभव किया क्योंकि इसमें उन्होंने युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ एवं परम वंदनीया माता भगवती देवी शर्माजी के जीवन वृत्तांत काव्यरूप में लोकहित को दृष्टि में रखते हुए किया है।इसमें दो राय नहीं है कि उपासना के मार्ग में उन्नति पाने के लिए सद्गुरु के मार्गदर्शन अत्यंत अपेक्षित हैं।विजयशंकर मिश्र जी को अर्जित पुण्यों के कारण ही उनको अपने परम गुरु श्रीराम शर्मा के शिष्य होने का सौभाग्य मिला है।
डॉ.अवधेश चंसौलिया ‘रुक्मिणी मंगल’ खण्डकाव्य को प्रेम का अद्भुत रूप मानते हैं और इसकी समीक्षा के उपरांत लिखते हैं,”भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टिकोण से समीक्ष्य खण्डकाव्य बेजोड़ है, इसमें कोई संदेह नहीं।भावपक्ष एवं कलापक्ष का ऐसा अद्भुत संयोजन कम ही देखने को मिलता है।यह काव्य श्रद्धा, प्रेम, त्याग और समर्पण का स्रोत है।
चिरकुमारी कुंती पर प्रो.कांतिकुमार तिवारी,पूर्व प्राचार्य-पूर्व कुलसचिव डॉ.हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय सागर (म.प्र.) ने अपना अभिमत इस प्रकार दिया है,
“विद्वान कवि ने प्रस्तुत खण्डकाव्य में सुख दुख की गहराइयों को झाँका है।उनकी कसौटी, प्रामाणिकता तथा उपादेयता को निर्दिष्ट किया है।सुख दुख की जोड़ी है,ये सिक्के के दो पहलू हैं,सबके जीवन में यह चक्र चलते रहता है।महाकवि भास नाटक स्वप्न वासवदत्ता में कहते हैं,’कालक्रमेण जगतः परिवर्तमाचंद्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्तिः।’दुःख में धीरज, सुख में उद्विग्नता से बचने का संदेश कविभूषण ने माता कुंती की चरित्रगाथा से दिया है।”
‘भए प्रगट कृपाला’ के विषय में अपनी सम्मति प्रदान करते हुए साहित्यभूषण डॉ. उमाशंकर शुक्ल ‘शितिकंठ’ लिखते हैं कि यह महाकाव्य रामजन्मभूमि विषयक लम्बे संघर्ष से लेकर मंदिर निर्माण तक की यात्रा का एक प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज ही बन गया है।कृतिकार की प्रभु श्रीराम के प्रति प्रगाढ़ और अखण्ड निष्ठा के कारण कथावस्तु के संगठन में किंचित् बिखराव और यत्र-तत्र दुहराव भी झलकता है,परंतु समग्र प्रभाव की दृष्टि से वह नगण्य है।कवि का अवधी और खडी़बोली पर अखण्ड अधिकार है,उसमें यथास्थान उर्दू,अँग्रेजी आदि के प्रचलित शब्दों का खुलकर व्यवहार हुआ है।मात्रिक तथा वर्णिक छंदों का साधिकार सहज प्रवाही प्रसाद,ओज एवं माधुर्य गुण समन्वित शैली में सफल निर्वाह हुआ है।
परधानी की भूमिका में श्री रामेश्वरनाथ मिश्र ‘अनुरोध’ (कोलकाता) का स्वस्ति-वचन उल्लेखनीय है।उसके कुछ अंश निम्नलिखित हैं,
“परधानी’ श्री विजय शंकर मिश्र ‘भास्कर’ जी की नवीनतम काव्य-कृति है।मिश्र जी उर्वर प्रतिभा के कवि हैं।अब तक उनकी उनचास पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘परधानी’ उनकी पचासवीं प्रकाशित पुस्तक है।भारतीय काव्यशास्त्रियों के अनुसार एक कवि में दर्शन और वर्णन के गुण होने चाहिए।मिश्र जी में ये दोनों गुण पर्याप्त मात्रा में दिखाई देते हैं।’परधानी’ के बहाने कवि ने गाँवों के बदलते परिवेश, स्वभाव, चरित्र, मनोवृत्ति, स्वार्थ और प्रवृत्ति आदि पर भी पैनी दृष्टि डाला है।आज भोले समझे जानेवाले ग्रामीणों के सोच- विचार का क्या स्तर रह गया है, उनमें स्वार्थ की प्रवृत्ति कितनी गहरी हुई है;आदि के वर्णन में कवि के मन की पीड़ा भी व्यंजित है।छोटे-मोटे स्वार्थ की सिद्धि के लिए आज ग्रामवासियों में नाते- रिश्तों का कोई मूल्य नहीं रह गया है।मानवीय मूल्यों का यह क्षरण भयानक है।कहना न होगा कि रचनाकार मिश्र जी कटाक्ष और व्यंग्य करने की कला में निष्णात हैं।उनकी भाषा चुलबुली,चुहलभरी, मनोरंजक एवं विषय और पात्र के अनुकूल है।ध्वन्यात्मक शब्दों, अलंकारों, मुहावरों और कहावतों से समृद्ध है।”
व्यंग्य काव्य परधानी पर डॉ.रामप्यारे प्रजापति का अभिमत है कि,”कवि ने अवधी भाषा के साथ व्यंग्यात्मक और चुटीली काव्यशैली का प्रयोग करके काव्य को जीवंत कर दिया है।शब्दों का सुंदर संगुंफन,आंचलिक वेधक शब्दावली, तर्क पर तर्क,चुनाव प्रचार का घिनौना परिदृश्य, हार की जीत से भाषा प्राणवान हो गई है।लोकगीत, चैता, आल्हा आदि विधाओं के समावेश से काव्य में रसानुभूति स्वतः बढ़ गई है।कुल मिलाकर भास्कर जी एक सधे-मजे गाँव की रीति-नीति के पारंगत लेखक और कवि हैं।लगता है वे इस कुव्यवस्था के परिवर्तन के लिए प्राणपण से लालायित हैं।’परधानी’ शासन और प्रशासन की आँख खोलने का दस्तावेज है।”
डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी,संपादक अभिदेशक पत्रिका,सुल्तानपुर ने परधानी कृति पर अपना अभिमत निम्नवत् प्रदान किया है,
“महाकवि विजय शंकर मिश्र भास्कर जी की प्रस्तुत कृति ‘परधानी’ चुनाव पर केन्द्रित हास्य व्यंग की शैली में पाठकों के अन्तर्मन को खूब गुदगुदाती है ,साथ ही विसंगतियों, मानसिक विकृतियों और चुनावी साजिशों के चक्रव्यूह का पर्दाफाश भी करती है।लोकोक्तियों की पीठिका पर इस कृति की विषयवस्तु का चित्रण सहज स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत किया गया है।भाषा,भाव और छान्दिक कसाव के निकष पर प्रस्तुत कृति का प्रभाव अपनी वेधक क्षमता के कारण अन्यतम प्रतीत होता है।”
साहित्यभूषण डॉ.सुशीलकुमार पाण्डेय ‘साहित्येंदु’ ने कवि की रचनाओं का समीक्षण करवाया है और उनके अनुसार,”भास्कर की रचना में भावभंगिमा की विविधता,भाषा की सहजता-सरलता और शैली की यथावसर समुचित प्रवाहमयता साहित्य संसार का अक्षय कोश है।उनकी पौराणिक पृष्ठभूमि की रचनाओं में वर्तमान युगबोध कालसापेक्ष रूप से परिलक्षित होता है।भास्कर की कविता काव्यशास्त्रीय मान्यताओं की पृष्ठभूमि में मानसरंजिनी और मानवशास्त्रीय दृष्टि से संजीवनी है।
खंडकाव्य-स्कंदविजय की समीक्षा में इंदौर की प्रखर कवयित्री वर्षा अग्निहोत्री का मंतव्य है कि ‘स्कन्द विजय’ खंडकाव्य कुमार कार्तिकेय द्वारा तारकासुर पर विजय प्राप्त करने के कथानक पर केंद्रित है जो कि महाकवि कालिदास द्वारा रचित ’कुमार संभव’ का हिंदी भाव पद्य रूपांतर है जिसकी भाषा अत्यंत सरल,सरस एवं सुरुचिपूर्ण है।कविकुल दीपक ‘भास्कर’ जी काव्य प्रतिभा के धनी हैं।हिंदी और संस्कृत भाषा पर उनकी समान पकड़ है।अभी तक उनकी लगभग पचास पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा वे अभी भी निरंतर लेखन कार्य में संलग्न एवं सक्रिय हैं।उनकी काव्य कृतियों से उनकी धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्र भक्ति की भावना परिलक्षित होती है।भास्कर विरचित लगभग सभी कृतियों पर देश भर के विद्वानों की सारगर्भित सम्मतियाँ प्राप्त हुई हैं।उ.प्र.हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा सन् 2021 में श्री विजयशंकर मिश्र ‘भास्कर’ को ‘साहित्यभूषण सम्मान’ देकर अलंकृत किया गया है।इसके अलावा भास्कर जी एक तटस्थ समीक्षक हैं और आपकी तलस्पर्शी समीक्षा समादर की पात्र है।आपने सुलतानपुर के अभिदेशक पत्रिका के संपादक डॉ.ओंकारनाथ द्विवेदी रचित अप्रतिम ब्रजभाषा काव्य ‘ब्रजविलास’ की
और श्रीनारायण लाल ‘श्रीश’ रचित खण्डकाव्य ‘अतुल्य शास्त्री जी’ एवं कलाधर कृष्ण शतक की,सुलतानपुर के ही श्री हनुमान प्रसाद सिंह ‘अभिषेक’ विरचित श्रीमद्भगवद्गीता के उत्कृष्ट अवधी पद्यानुवाद ‘श्री गीता’ की,कौण्डिन्य सेवा समिति कादीपुर, सुलतानपुर के संस्थापक साहित्यभूषण डॉ.सुशीलकुमार पाण्डेय ‘साहित्येंदु’ रचित भारतीय संस्कृति की जीवनी विद्या के दर्पण ‘योग तत्व चिंतन’,शब्द कहे आकाश,महाकाव्य कौण्डिन्य एवं अगस्त्य तथा लखनऊ के रससिद्ध महाकवि साहित्यभूषण डॉ. उमाशंकर शुक्ल ‘शितिकण्ठ’ के अनुपम स्तोत्र काव्य हनुमत हुंकार,धर्मरथी,छंद लहरी ‘क्रांतिवीर भगत सिंह’ एवं कोमल हृदय का राग गानेवाले गीतकार प्रो.विश्वंभरनाथ शुक्ल के ‘शब्दों की तरणी लहरों पर’ एवं ‘वंदे भारत मातरम्’ और डॉ. अर्जुन पाण्डेय के अवधी कहानी संग्रह ‘जब जागै तबै सबेरा’ की समीक्षा किया है और साथ ही साथ कोलकाता के प्रख्यात साहित्यकार श्री रामेश्वरनाथ मिश्र ‘अनुरोध’ प्रणीत महाकाव्य ‘राष्ट्र पुरुष नेताजी सुभाषचंद्र बोस’,और नेत्रभंग खण्डकाव्य एवं खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज-कोलकाता की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.शुभ्रा उपाध्याय की कृति -‘समानांतर चलती एक लड़की’ की,देवरिया की सशक्त कवयित्री सुनीता सिंह ‘सरोवर’ की कृति ‘श्रेष्ठ सनातन संस्कृति के निर्माण में संतों का योगदान’ जैसी श्रेष्ठ रचनाओं की श्लाघ्य समीक्षा किया है।
आप साहित्यसृजन में निरंतर लगे हुए हैं।आपकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं और साहित्य पटलों पर प्रकाशित होती रहती हैं।आप लघुकथा,लघुनाटिका और कहानी लेखन में भी प्रवीण हैं।आपके आलेख और संस्मरण मन को मुग्ध कर देते हैं।सोनार बाँग्ला संस्मरण आपके बंगाल प्रवास का जीवंत दस्तावेज है और ग्रामांचल आपके बचपन के ग्रामीण परिवेश का चित्र उपस्थित करता है।
आपकी रचनाएँ पाठकों को हर्षविभोर करती हैं और उनमें भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की महक भरी रहती है।श्री राम पर चालीसा से आरंभ करके आपने आठ पुस्तकों की रचना की है।
अब तक आपके सात साझा संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं।भास्कर जी की प्रतिभा बहुआयामी है,उनके चिंतन का परिसर व्यापक है और उनके हृदय में अध्ययन की असीमित प्यास है।
भास्कर जी को मिले अनेक स्तरीय सम्मानों में राष्ट्रकवि पं.वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्य प्रकाशन समिति लखीमपुर खीरी (उ.प्र.) द्वारा ‘अवधी वारिधि’ उपाधि, कौण्डिन्य साहित्य सेवा समिति कादीपुर द्वारा ‘सरस्वती भूषण सम्मान’,सुंदरम् साहित्य संस्थान लखनऊ द्वारा ‘सुंदरम् साहित्य रत्न’ सम्मान,उ.प्र.हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा वर्ष 2021में ‘साहित्यभूषण सम्मान’,शांति फाउंडेशन गोण्डा (उ.प्र.) द्वारा नेशनल पीस अवार्ड,ज्ञानमंदिर मदनगंज-किशनगढ़ (राजस्थान) द्वारा ‘काव्य कल्पतरु’ मानद सम्मानोपाधि, अखिल भा.हिंदी सा.सम्मेलन गाजियाबाद द्वारा श्री हरप्रसाद भार्गव सम्मान,कादंबरी अलंकरण समारोह जबलपुर द्वारा स्व.विमला दुबे सम्मान उल्लेखनीय हैं।
मेरी व्यक्तिगत सम्मति में वरेण्य साहित्यकार श्री विजयशंकर मिश्र ‘भास्कर’ जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं।उनकी कृतियाँ भारतीय संस्कृति की सौरभ से सुवासित हैं जिनमें लोक-जीवन के सुख-दुख का यथार्थ ध्वनित है और साथ ही समग्र मानवता की उत्तरोत्तर प्रगति के मांगलिक सूत्र भी संग्रथित हैं।राष्ट्रीय चेतना के ऊँचे स्वर से निनादित उनकी रचनाएँ युग-युग तक भावी पीढ़ियों के लिए अनवरत प्रेरणादायक बनी रहेंगी।अंततः कविवर डा.शितिकंठ के स्वर में स्वर मिलाकर यह कहना अनुपयुक्त न.होगा किः
“वाणी महाकवि भास्कर की, शुभदा प्रतिभान्वित मार्दव है।
सार्थक शब्द – विधान विभूषित ,बिम्ब प्रभाव-स्वरा रव है।
गुण औरअलंकृति है सहजा,ध्वनि संग रसामृत का स्रव है।
आदर्श-सनी शुचिता मुदिता,नरता-शुभकार सुधार्णव है।।”