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पुनीता की कहानी असलियत

कहानी संख्‍या 30 गोपालराम गहमरी कहानी लेखन प्रतियोगिता 2024

अनिल जी को रिटायर हुए कई साल बीत गए। अपनी बेटी सुधी के लिए उन्हें एक सुयोग्य वर की तलाश थी। बेटी सुधी की जॉब लगे हुए भी लगभग दो साल हो गए थे । अनिल जी चाहते थे कि छोटी फैमिली में अच्छे जॉब का लड़का और कोई ठीक- ठाक हैसियत वाले लोग मिल जाए।एक दिन अनिल जी के दोस्त राजेन्द्र जी ने अपनी रिश्तेदारी में एक लड़का बताया, जो अनिलजी को बहुत पसन्द आया। अमीर और अच्छी सामाजिक हैसियत वाले लोग हैं। लड़के के पिता ने शहर में अच्छी कोठी बनवा रखी थी अपने इकलौते बेटे के लिए। उन्हें भी जॉब वाली सुन्दर, आकर्षक,लंबी दुल्हन की तलाश थी। सुधी तो थी बहुत सुन्दर और संस्कार वाली लड़की,कोई ना पसन्द कर ही नहीं सकता था। अनिल जी की बेटी सुधी उन्हें तुरन्त पसन्द आ गई और सुधी के घरवालों को विवेक। घर में खुशियों भरा माहौल था। अब शादी के बाकी मुद्दों को लेकर बातचीत चल रही थी। दोनों के पिता आपस में बैठे। विवेक के पिता ने बताया कि दो सौ लोगों की बारात आयेगी।

शहर में हमारी जान पहचान बहुत ज्यादा है।अनिल जी ने विनम्रता से कहा- “ये तो बहुत ज्यादा है।दिल्ली की शादियां तो वैसे भी बहुत मंहगी होती हैं। अच्छा खाना- पीना, वैन्यू सजावट, रिश्तेदारों के शगुन के लिफ़ाफे आदि मिला कर बजट बहुत आगे निकल जाएगा। हम नौकरी पेशा लोग कहां से इतना लायेगे। कुछ कम करिए।”लड़के के पिता कुछ नाराजगी से बोले – “आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे कपड़ा खरीदने आए हैं, कुछ कन्सेशन दीजिए। भाई जिन्होंने हमें निमंत्रण दिया, खिलाया है, हमें भी तो उन्हें खिलाना होगा। ये तो कांट – छांट कर बताया है, आपकी सहूलियत के लिए वरना पचास लोग बैठे हैं रूठे हुए जिन्हें शादी की लिस्ट में शामिल नहीं किया है ।”लड़के के पिता ने समझौता किया ।वो अच्छी कमाऊ लड़की और दहेज़ देने वाली पार्टी को जल्दी छोड़ना नहीं चाहते थे ।बहुत दिनों से ख़ोज बीन चल रही थी। बड़ी मुश्किल से अच्छा मुर्गा फंसा था उन्होंने तुरन्त अपना दिमाग लगाया- “अच्छा फिर कैश में कुछ कटौती कर दो आप। अब दस लाख की जगह छः लाख और बाकी सामान जो आप अपनी बेटी की सुविधा के लिए देना चाहें।”जैसे दिया गया सामान सिर्फ बेटी ही इस्तेमाल करेगी। बाकी किसी को कोई सुविधा नहीं होगी उससे।खैर कुछ मतभेदों के बाद यह रिश्ता तय हो गया ।

 बेटी सुधी उसका भाई और मां ज्यादा संतुष्ट तो नहीं थे।”एक तो अच्छी सुशील कमाऊ लड़की दो, ऊपर से इतना खर्चा। कैसे अमीर लोग हैं ?कैश मांग रहे हैं और शादी वाले दिन की पार्टी में अपने सारे रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोस वाले और जिनसे सिर्फ़ हाय हैलो है उन्हें भी निमंत्रण दे दिया है।अलग से अपने मित्रों के लिए प्रीति भोज रखो खूब खिलाओ – पिलाओ ।”बड़बड़ा कर अनिल जी के बेटे ने अपनी भड़ास निकाली ।पर वही बेटी का मजबूर पिता जिसने आज भी समझौतों को अपनी नियति मानना नहीं छोड़ा है। अनिल जी ने सोचा- “इतने सालों में बड़ी मुश्किल से अच्छा रिश्ता मिला है।अब सब कुछ तो मिलता नहीं है।”अनिल जी का बजट उनकी सोच से काफी आगे ही चल रहा था अभी तो प्री-वेडिंग सूटिंग, रिंग सेरेमनी, मेंहदी,हल्दी और भी जाने क्या- क्या चल पड़ा है आजकल । जहां फालतू दिखावे में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है।सर्दियों में शादी है किससे उधार मांगे। रिश्तेदार,दोस्त मना ही करेंगे ।आखिर सब के खर्चे हैं हमारी ही तरह। मांगने पर रिश्ता और खराब हो जाता है। लोन के भी सौ लफड़े हैं।वैन्यू भी कई महीने पहले बुक करना होता है। अपनी, अपने बेटे और बेटी की सारी जमा पूंजी का हिसाब लगाते – लगाते अनिल जी डिप्रेशन में रहने लगे। शुगर के पेशेंट थे।

किसी से कुछ जाहिर न करते पर भारी चिंता में एक दिन मॉर्निग वॉक पर गए हुए थे तो बेहोश हो कर वहीं पार्क में गिर गए। दोस्तों ने अस्पताल में भर्ती करवा दिया। कई दिन हो गए,होश ही नहीं आ रहा था उन्हें। बेटी सुधी ने घबड़ा कर मंगेतर विवेक को सूचित किया,वो फ़ौरन अस्पताल पहुंच गया ।दो चार घंटे व्यतीत कर दिलासा देता रहा पर रात को रुकने को कहा तो वो जॉब का बहाना बना कर टाल गया।तीन दिन बाद अनिल जी को होश आ गया।अभी टेस्ट चल रहे थे। डॉक्टर बीमारी का कारण ढूंढने के लिए अस्पताल से छुट्टी नहीं दे रहे थे। दिनों दिन अस्पताल का बजट बढ़ता ही जा रहा था।एक दिन सुधी की मां ने समधी जी को फ़ोन किया- “आपके पास बारात में शामिल होने वाले जो दो सौ लोगों की लिस्ट है उनमें से यदि किसी का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव हो तो कृपया अनिल जी को देने को कहें। उनको बहुत जरूरत है। डॉक्टर ने कहा है।””मैं पता करता हूं”.दूसरी तरफ से बुझी हुई आवाज़ सुनाई दी समधी जी की।

कई दिन बीत गए फिर उधर से कोई रिस्पॉन्स ही नहीं मिला। शायद उन्हें पता चल चुका था कि अस्पताल में काफ़ी पैसा खर्च हो रहा है तो हाथ की तंगी हो सकती है।दरअसल अनिल जी को खून की ज़रूरत थी ही नहीं।धीरे – धीरे लड़के वालों की असलियत सब के सामने खुलकर आ चुकी थी।अब अनिल जी मन ही मन दहेज़ लोभी, स्वार्थी लोगों से नाता तोड़ने का सख्त निर्णय ले चुके थे। उनका स्वास्थ्य तेजी से सुधरने लगा।”बेटी को कहां नर्क में भेजने वाला था मैं ।

हे प्रभु मुझे अस्पताल पहुंचा कर आपने बड़ा उपकार किया मुझ पर वरना इन लोगों के असली रूप को अच्छे से पहचान ही नहीं पाता।”सोचा अनिल जी ने और अपने आप को एक दम स्वस्थ और हल्का महसूस किया।बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद के आगोश में पहुंच गए। डॉक्टर ने उन्हें अगले दिन अस्पताल से डिसचार्ज कर दिया।

पुनीता सिंह दिल्ली मोब – 8447997023

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4 comments

  1. सामाजिक कुरीति को दर्शाती हुई सुंदर कहानी जो दहेज के प्रलोभियों की कुटिल मानसिकता को दर्शाती है और समय रहते उनकी पोल खोल देती है। कहानी में मजबूर पिता की विवशता और मनोदशा का यथार्थ चित्रण किया गया है। समय रहते फैसले बदलाव सही सोच को दर्शाता है।

  2. प्रस्तुत कहानी शीर्षक अहमियत कुछ सत्य और कुछ अपनी वैचारिक कल्पना के विषय को लेकर एक रची बुनी रचना है। हमारे समाज में बेटी के विवाह को लेकर एक मीडिल क्लास इन्सान किस तरह परेशान रहता है और जब साहस के साथ दहेज लोभियों का सामना किया, तो सब ठीक हो गया।एक सुशिक्षित जॉब वाली बेटी के लिए बहुत रिश्ते मिलेंगे। आखिर क्यों इतना तनाव झेला जाय कि जान पर बन आय।
    पुनीता सिंह

  3. गोपालराम गहमरी कहानी प्रतियोगिता एक बेहतरीन तरीके से आदरणीय अखण्ड प्रताप सिंह जी साहित्य सरोज के मंच पर अयोजित कर रहे हैं। मुझे सबसे उल्लेखनीय और अच्छा लगा इस प्रतियोगिता में शामिल प्रतिभागियों की उत्तम सलाह को वरीयता दी गई है जो कहीं नहीं मिली मुझे। मैं साहित्य सरोज के उज्जवल भविष्य की कामना करती हूं।
    पुनीता सिंह दिल्ली

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