भारत चांद पर पहुंच गया। पर क्या हमारा समाज भी इतना ही उन्नत हो पाया है? चलिए आज इसी पर विचार किया जाए। भारतीय समाज में आज भी भूत प्रेत की नौटंकी चली आ रही है। न जाने कितनी औरतें चुड़ैल घोषित कर मार दी जाती हैं और कितनी भूत द्वारा ग्रसित बोल कर ओझाओं से पिटवाई जाती हैं।
नहीं मैं हरगिज़ यह नहीं कह रही कि भूत या आत्मा का अस्तित्व नहीं है। भूत, प्रेत, यक्ष, किन्नर सभी का अस्तित्व है परंतु जिस रूप में भारत के गांवों में इसका पसारा है वह केवल नौटंकी है। हालांकि खुद को प्रोग्रेसिव कहने वाले लोग इसी बात को केंद्र में रख कर पूरे देश की आलोचना किया करते हैं। यह एक कटु सत्य है कि हमारे गांव ऐसे बहुत से ओझाओं के चंगुल में हैं जो भूत प्रेत को पकड़ने के नाम पर न केवल भोले भाले गरीब ग्रामीणों से पैसे लूटते हैं बल्कि उनकी बहन बेटियों की इज़्ज़त से भी खेलते हैं। कई बार सही शिक्षा न मिलने पर औरतें परिवार के अत्यधिक दबाव को न झेलते हुए खुद ही भूत द्वारा ग्रसित होने का ढोंग करती हैं। जिसका यह ओझा लोग फ़ायदा उठाते हैं।
इस सब को रोकने और ओझाओं की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए शिक्षा का प्रसार प्रचार होना अति आवश्यक है। औरतें आज भी परिवार के सामने अपने विचार नहीं रख सकतीं। आज भी उन्हें पिता और पति के समक्ष बोलने का अधिकार नहीं है। आज भी उसे भेड़ बकरी की तरह ससुराल में धकेल देते हैं। और ससुराल वाले उसे काम करने और बच्चा पैदा करने की मशीन से अधिक कुछ नहीं समझते। ऐसे में मन की कुंठाएं, मन के अंधेरे गिरि गह्वरों को चीरती जब बाहर निकलती हैं तो विस्फोटक हो उठती हैं। अपनी बात मनवाने हेतु औरतें कभी भूत द्वारा ग्रसित होने अथवा किसी देवी देवता के शरीर में आने का ढोंग करती हैं। परिवार अपनी अज्ञानता के चलते उनके सामने झुकता है और उसकी हर बात मानने पर मजबूर होता है।
कितना फ़र्क है न, एक वो औरतें हैं जो देश के सब से बड़े स्पेस प्रोग्राम को लीड करती हैं और चांद तक पहुंचने वाला यान बना कर उसे चांद तक पहुंचा भी देती हैं। और एक यह औरतें हैं जो अपनी छोटी से छोटी बात मनवाने के लिए यहां तक कि अपने जिंदा होने के मूलभूत हक़ को पाने के लिए भी भूत होने या देवी आने की नौटंकी कर के कुछ पल सांस ले पाती हैं। एक अजीब विरोधाभास है हमारे देश में। आइए अपने घर परिवार की औरतों बच्चियों को खुल कर जीने दें। और एक औरत होने के नाते खुद से वायदा करें कि हम खुद को सांस लेने देंगे। बकौल दुष्यंत कुमार जी जिएं तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।
डॉ प्रिया सूफ़ी
होशियारपुर, पंजाब