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खुशियां लौट आई-अलका

कमलेश द्विवेदी लेखन प्रतियोगिता -4 संस्‍मरण
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बात उन दिनों की है जब मेरे पति का स्थानांतरण दिल्ली हुआ था। उस समय,हमने जो फ़्लैट किराए पर लिया, वहीं हमारे फ़्लैट के सामने वाले फ्लैट में राजकुमारी दीदी अपने पति के साथ रहती थीं। और इस कॉलोनी में सभी राजकुमारी दीदी को , “दीदी”और उनके पति को “भैया जी” कहकर बुलाते थे। उनका एक ही बेटा था जो कि पत्नी और एक साल के बेटे के साथ अमेरिका में ही बस गया था। दीदी का हँसमुख और स्नेह पूर्ण, मधुर व्यवहार से हमारे परिवार और दीदी, भैया जी के बीच बहुत आत्मीय संबंध बन गए थे। सब कुछ ठीक था , पंरतु जब भी बातों बातों में उनके बेटे , बहू, पोते की बात छिड़ जाती , तो उनकी आंखें भर आती और फिर नॉर्मल होने मे उन्हें कुछ समय लगता।
वैसे प्रत्येक त्यौहारों पर उनका उल्लास देखते ही बनता था। लेकिन भैया दूज और रक्षाबंधन पर तो वह बहुत ही ज्यादा उत्साहित रहती थीं। और कई दिन पहले से त्यौहारों की तैयारी शुरू हो जाती थीं । उनका एक ही भाई था। कभी उन का भाई आगरा से आ जाता था कभी वह कानपुर चली जातीं ।भाई-बहन हर भाई दूज और रक्षाबंधन पर जरूर मिलते थे। लेकिन कई वर्षों पहले, एक दुघर्टना में काल के निर्मम हाथों ने दीदी से उनके भाई को उनसे छीन लिया था। भाई के जाने का सदमा उन्हें इतनी बुरी तरह तोड़ गया कि धीरे-धीरे उन का स्वास्थ्य गिरता ही चला गया। उनके पति ने , हम सभी ने उन्हें हर तरह से खुश रखने की असफल कोशिश की।
बेटा , बहू बहुत अधिक व्यस्तता की बात कह, बस कभी कभी फ़ोन पर बात कर लेते थे। राजकुमारी दीदी अपने पोते को बिना कुछ बोले,बस निहारती रहती। फिर उधर से आवाज़ आती ” मां आप तो कुछ बोलती ही नहीं ,क्या फ़ायदा फोन करने का।” सही में बहू बेटे के व्यवहार, उनकी नई सोच विचार और भाई के जानें के दुःख से उनके शब्द, हँसी खुशी सब बिल्कुल मौन हो गए थे। अब हर त्यौहार पर उनके घर सन्नाटा पसरा रहता । लेकिन पिछली दीपावली की सुबह उनके घर से कुछ हँसने खिलखिलाने की आवाज सुनकर जब मैंने दीदी के घर में झांककर देखा तो बस देखती की देखती ही रह गई। सामने मेज पर दियों, मिठाइयों, उपहारों से सजे थाल रखे थे।और राजकुमारी दीदी के गले में हाथ डाले उनका 14 15 वर्षीय भतीजा पवन दिखाई दिया,जो कि कुछ कह रहा था और जिसको सुनकर राजकुमारी दीदी और भैया जी की हंसी नहीं रुक रही थी ।और वहीं फर्श पर उनकी भतीजी पीहू घर को जगमग करने के लिए बिजली की झालरों को सुलझा रही थी। और तभी दीदी की भाभी भी चाय का प्याला लेकर उन सभी के साथ बैठ गईं।
एक अरसे के बाद दीदी को इस तरह से हँसता हुआ देखकर मेरी आँखें खुशी से नम हो गईं । तभी अचानक राजकुमारी दीदी की निगाह मुझ पर पड़ गई “अरे पूनम देखो तो आज मेरे घर में रोशनी लोट आई है। देखो ये मेरा भतीजा, भतीजी ही नहीं, इनके रूप में मेरा भाई लौट आया, मेरे बच्चे के आने से देखो मेरी रौनक लौट आई,”कहते-कहते राजकुमारी की आंखें खुशी से छलक गईं। और उनकी भीगी पलकों को देख कर मैं भी अपने को रोक ना सकी। और बहाने से वहां से उठकर ,अपने घर आकर अपनी भरी आंखों व मन को हल्का किया और दीदी के चहरे पर फिर से हँसी लौटाने के लिए भगवान का धन्यवाद किया। अलका गुप्ता पता – ब्लॉक C- 24 , इन्दिरा एनक्लेव, नेबसराय (Near IGNOU) नई दिल्ली – 110068

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