बात चालिस पैंतालीस वर्षों की बनीं लम्बी कहानी है। मैं तब छोटा बच्चा ही था और हमारे घर के दक्षिण दिशा की ओर एकं विशाल घना पिपल का विशाल वृक्ष था। जो गर्मी के दिनों में दोपहर 3 बजे बाद से यह पिपल की सीतल छाया हमारे घर आंगन में आना सुरु हो जाती थी और साम होते होते 150×100 का पुरा मैदान में छांव एवं ठंडक से सबको शांति और सगुन प्रदान करतीं थी आस पास सड़क उस पार के लोग भी यही आ जातें थें और पुरा माहौल खुशनुमा हों जाया करता था। रात्रि को सभी बच्चे बुड़े जवान सब बहार आंगन में अपने दरवाजे के सामने पलंग खाट बिस्तर लगा कर सोते थे। क्या थंठक रहतीं थीं याद कर ही मन सीतल हो जाता है कितनी सितल हवा चलती थी मैं बयान नहीं कर सकता। इसी प्रकार बचपन में पतंग उड़ानें से लेकर अनटी भंवरी और किर्केट खेलने का हमने भरपूर आनंद उठाया कभी भिषन गर्मी का आभास ही नहीं हुआ पतंग के दिनों में हम बहुत पतंग उड़ाते थे तब पतंगें भी बहुत उड़ती थी पर जब दक्षिण दिशा की हवा होती थी तो हमारी पतंग अक्सर पिंपल में अटक जाती थी बाल मन को तब यह बलिदान बिल्कुल मंजुर न था और अनजाने में ही सही बाल अभोद अज्ञानी मन को पिपल का यह वृक्ष बहुत खलता था हमारी पतंग पिपल में उलझ जातीं थीं बाल मन ठहरा जैसे जैसे प्रकृति का ज्ञान हुआ पिपल बढ नीम के वृक्ष के लाभ पता चले यही वृक्ष हमारे मान सम्मान गौरव की पहचान बने। शुद्ध हवा सघन छांव निशुल्क आक्सीजन का हमने पुरा पुरा बहुत लाभ उठाया पर एक दिन वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन भी आया जब जमीन मालिक ने अपनी जमीन से इस पिपल के वृक्ष को कटवा दिया। अब हमें देर सायं तक सूर्य ताप झेलना पड़ता है। और कल वृक्ष की छाया तले साम से पुरी रात तक पतरे के मकान सितल सगुन प्रदान करते थे वे ही मकान आज गर्मी में जीना दुश्वार कर रहे हैं क्योंकि आज इस की बस मेरे पास इस पिपल के वृक्ष की बस यादें शेष है।
कुंदन पाटिल देवास
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